YES BANK

जनता की कमाई पर लालच की नजर


बैंकिंग व्यवस्था में विश्वसनीयता को लेकर पिछले कुछ समय से लगातार नकारात्मक खबरें सुनने को मिल रही है। कुछ महीने पहले पंजाब ऐंड सिंध बैंक (पीएमसी) में घपलेबाजी की खबर हो या फिर अब येस बैंक का संकट। सभी में एक बात समान रूप से नजर आ रही है कि व्यवस्था के भीतर और बाहर बैठ लोग आपसी सांठगांठ से बड़ी चतुराई से जनता की गाढ़ी कमाई पर हाथ साफ कर रहे हैं। ठीक है कि सरकार ने बैंक में बचत की गारंटी को 1 लाख रुपये से बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर दिया है लेकिन इसका मतबल यह तो नहीं कि इन घोटालों का नजरअंदाज कर दिया जाए। फिर जमाकर्ताओं के विश्वास का भी प्रश्न है। बैंकों में एक ओर जहां जैसे तैसे रकम जुटा कर भविष्य के लिए पैसे जोड़ने वाले लोग हैं तो वहीं सैकड़ों करोड़ रुपये जमा करने वाला जगन्नाथपुरी ट्रस्ट भी है। इस तरह की घटनाओं का एक स्पष्ट सबक यह भी है कि कहीं न कहीं नियामक के स्तर पर घोर लापरवाही बरती जा रही है या फिर इसके नियमों में ही कुछ ऐसे लचर प्रावधान हैं जो बैंकर को अपने परिजनों से मिलीभगत कर पैसे हड़पने से रोक पाने में नाकाम है। इसी तरह चंदा कोछड़ पर भी आरोप है कि कैसे उन्होंने नियमों को ताक पर रखकर अपने पति की कंपनी को फायदा पहुँचाया था। लोकतंत्र में व्यवस्थाओं पर जनता का भरोसा ही उसके टिकाऊपन की धुरी होती है। ऐसे में सरकार और न्यायपालिका को इसका स्मरण रखते हुए व्यवस्था की ऐसी नजीर पेश करनी चाहिए कि फिर कोई इस तरह के दुस्साहस करने से पहले बार बार सोचे। साथ ही आरबीआई को भी नियामकीय स्तर पर आमूलचूल बदलाव कर ऐसे घपलों को तुरंत रोकने की जरूरत है।