श्री अनिल मित्तल 

Shree Krishna Plywood Industries


श्री अनिल कुमार मित्तल और उनके सुपुत्र श्री शुभम मित्तल के कुशल नेतृत्व में Shree Krishna Plywood Industries ने आज बाजार में विशेषकर प्लाईवुड और ब्लाॅक बोर्ड में एक खास पहचान बनाई है।


आज के बाजार में अच्छी क्वालिटी के माल की कितनी डिमांड है?

जो होलसेलर दिल्ली की मार्केट में (अगर मुंबई, नागपुर से तुलना की जाए तो) हल्का माल मांगते थे। वो भी बोलते हैं कि अब तो बढ़िया माल के ही जमाने आ गए हैं। हल्का माल लेने की किसी की इच्छा नहीं है सब क्वालिटी माल का काम करना चाहते हैं। सब परेशान हो गए हैं इन चक्करो में कि ये खुल गया वो हो गया। तो बढ़िया माल के ही जमाना आ रहा है, आज सभी यही बोलते हैं कि जब भी डिमांड उठेगी। अगर डिमांड ही जल्दी नहीं उठेगी तो हम क्या करेंगे। फिलहाल बड़ी दिक्कत यही है कि डिमांड नहीं उठ रही है किसी भी तरीके से। उसके लिए जरूरी यही है कि ज्याद दूर दूर तक पहुंचा जाए यानी डिस्टेंस एरिया को कवर किया जा सके। लेकिन उसमें कैश पेमेंट कितने करेंगे आज के टाइम में। कुछ तो क्रेडिट बेसिस पर काम करना ही पड़ेगा। एक बार वहां से इनक्वाइरी आने के बाद पार्टी की इनक्वाइरी तो करनी ही पड़ेगी। पुराना आदमी अगर कोई है तो उसके उपर विश्वास भी करना पड़ेगा। काम में ज्यादा तकलीफ है। पर आज कंडिशन ऐसी नहीं है कि हम ज्यादा ऐक्सपेरिमेंट कर सके। हालात और बिगड़नी ही है सुधरने के तो कोई चांस दिख ही नहीं रहे। वैसे सिर्फ दिल्ली या नजदीक की मार्केट के उपर तो डिपेंडेंट रह सकते ही नहीं। दूर की मार्केट थोड़ी बहुत मार्किट को चला ही रही है, प्रोफिट नहीं देगी लेकिन खर्चे बराबर तो कर ही देगी। हमारा यही मोटिव है। ज्यादा से ज्यादा बाहर की मार्केट एक्सप्लोर हो तभी फायदा है। एक जगह नहीं बैठ सकते हैं । आज के टाइम में बहुत दिक्कत है। काम तो खैर इसी में करना है। खोजना पड़ेगा कि काम कैसे किया जाए कि आपकी पहुंच दूर-दूर तक हो।

लकड़ी की क्वालिटी से कस्टिंग में क्या फर्क पड़ता है?

हम पीलिंग से प्लाईवुड पर आए हैं इसलिए हम पीलिंग की नजर से देखते हैं कि टिंबर की रियलाइजेसन कैसी मिल रही है। अगर हम प्लाईवुड की नजर से देखें वो चीज नजर आती नहीं। आपके बी ग्रेड टिंबर में जो गांठ होती है वो झड़ जाती है। जितना माल झडे़गा, प्लाई बनाने के लिए उसको भरना पड़ेगा। उसमें भी तो कोर एकस्ट्रा लगेगा। हमने बहुत बार कैलकुलेट करके देखा है नौ सौ साढ़े नौ सौ का भी लेंगे तो भी साढ़े आठ सौ से सस्ता पडेगा। ये जो कैलकुलेशन हम बता रहे हैं वो बिल्कुल सही है। ये जो फाली और दूसरी वेस्टेज निकलती है उसमें वो सारी चीज कवर हो जाती है। फाली तो आँख से दिखती है। मैं उन चीजों की बात कर रहा हूं जो नरमल आँख से नहीं दिखती। ये जो काली गांठ होती है हमारी पूरी फैक्ट्री यार्ड में एक भी पोरी में काली गांठ नहीं है। खाली सफेद गांठ का माल मिलेगा। काली गांठ के अलावा बक्कल की वजह से जो छेद होते हैं वो भी भरना पड़ेगा। आप यूपी का सफेदा पील करके देखिए उसमें क्या लालच रहता है कि उसमें ओवर है। दोनों माल का वजन करा कर देखिए जमीन आसमान का फर्क मिलेगा। कम से कम डेढ़ गुना माल निकलता है। टिंबर की जो क्वालिटी है वो बहुत बारीकी की चीज है। जिसको समझ आ गया वो इसका रेट देने को तैयार है।

टिंबर की पकड़ तो आज के टाइम में बहुत गडबड़ा गई है। सुपर माल सस्ता पड़ेगा बी ग्रेड पर। आज मोइस्चर का टाईम आ गया, गर्मी से पहले कोई बात नहीं थी। आपके पास ऑप्शन है हम अड़ती को बोलते हैं या तो आप सोखते में डाल दीजिए या फिर आप इसे वापस ले जाइए। आजकल तो सोख्तेे में आ ही रहा है 8 इंची। तो अगर आपके पास 18-19 इंच का माल सोख्ता में आ जाये। वो भी तो एक तरह से फायदा ही है। बढ़िया रेट देकर माल लेने में हमेशा फायदा मिलेगा नुकसान नहीं मिलेगा। हां पर उसमें एक बात है कि माल का पारखी होना चाहिए ये नहीं कि हम सवा नौ सो लगाकर आ जाएं। और अंदर गलत माल भरा हुआ हो।

हम फाली बाहर से बिल्कुल भी नहीं खरीदते। जितनी अपनी पीलिंग से निकलती है खाली वो इस्तेमाल होती है। फाली में बहुत डिफरेंस है वेस्टेज में, 50 भी नहीं 60 ही परसेंट है। लेकिन अगर आप अपने घर में फाली कटवाते हैं तो फिर तो आप उसे ढाई इंची नहीं कटवाएंगे आप उसे 4 इंची में ही कटवाने की करेंगे। साढ़े तीन से चार इंच ही कटेगा। घर में निकलती ही कितनी है, इसलिए गोला बढ़िया लिजिए बहुत बढ़िया रहेगा। गोला बढ़िया होने से जहां फाली निकलनी होती है वहां हाफ कट की कोर ही निकलती है। भरा हुआ होता है, न बक्कल होता है, बक्कल बिल्कुल बारीक होता है। न माल में वेट होता है। अब पंजाब के रेट बहुत ज्यादा हो गए हैं लगभग 1000 हो गए हैं। पंजाब का माल उन सभी के लिए तो कामयाब है ही जो बिल्कुल सौ परसेंट कोर इस्तेमाल करते हैं।

अरडु के आने से बाजार में क्या फर्क पड़ा?

जो ये अरडू का माल बाजार में जाएगा और लोगों को दिक्कत देगा, वो महीने में या छह महीने में देगा। जिस फैक्टरी ने अरडू चलाई अब वो न पोपलर लगा सकता है न वो अरडू खरीद सकता है। उसके लिए तो कब्र खुदी हुई कि उन्हें तो फैक्टरी बंद करनी ही पडेगी। पोपलर की मार्केट बनाई उसमें दिक्कत आई, अरडू की मार्केट बनाई वो बंद हो गई और दोबारा पोपलर पर आने की औकात नहीं है कि 1000 रू. की लक्कड़ ले सके। न ही खरीद पाएगा और न ही बेच पाएगा। अरडू में ही ज्यादा दिक्कत है। उसमें कीड़ा ज्यादा लगता है। लेकिन अगर कोई चोरी करता है कोई 10 परसेंट या 50 परसेंट लगा रहा है। गलत चीज तो गलत है। थोडी बहुत तो अगर आटे में नमक जितना डालते है। अगर उसको बिल्कुल नमक में डुबा देंगे तो बिल्कुल बेकार हो जाएगा।

बाजार में दिक्कत नहीं आनी थी। सिर्फ अरडू के लिए प्रोबलम हो गई। अगर अरडू का नाम नहीं आता बाजार में कि अरडू कि लक्कड चल रही है तो निश्चित रूप से जो रेट बढ़ने की स्पीड चली थी, वह बरकरार रहती। एक ढेढ़ महीने के अंदर ठीक हो जाएगा। अगर अरडू नहीं आता तो फिर तो एक महीने पहले हो जाता।

हमारी एक पार्टी है अहमदाबाद गुजरात की, हमने उन्हें जो रेट दिया था आज से 15 दिन पहले, उनने किसी और फैक्ट्री में 5/7 रु कम में माल मिला , उन्होंने जैसी ही ट्रक को अनलोड़ करना शुरू किया तो उनके आधे माल में कीड़ा लगा हुआ था। माल काट कर देखा तो बुरादा निकल रहा था प्लाई में से। पेमेंट इन सभी चीजों की एडवांस होती है और आप बोल सकते नहीं हो और अगर बोलेंगे तो कहेगा कि मैंने तो बोल कर दिया था। अब बताइए नुकसान किस में है। मन समझाने वाली बात है। यमुनानगर में लकड़ी कभी 1200 थी आज तो फिर भी नौ सौ में ही खरीद रहे हैं हम लोग। पर 1200 में जो हमने खरीदी थी उसमें तैयार माल का रेट मिल रहा था। डिमांड भरपूर थी। प्रोडक्सन कम थी। पेमेंट रूकती नहीं थी एडवासं हो जाती थी। एक लिमिट होती है किसी चीज की जितनी अब इनवेस्टमेंट बढ़ानी पड़ रही है। 6 गुना इनवेस्टमेंट बढ़ गई है।

ब्रांड बनाने के क्या फायदे हैं?

अब तो ब्रांड में काम करने का टाईम आ गया है। दिल बहुत मजबूत करना पडेगा टाईम बहुत खराब आता जा रहा है। जैसे अरडू वालों को टाईम नहीं लग रहा फैक्टरी बंद करते हुए। कल हम ब्रांडेड लोग भी इसकी चपेट में आने वाले हैं। ग्रीन सेंचुरी क्या है, कोई भी माल के उपर ग्रीन सेंचुरी का ठप्पा लगा देगा तो वो भी बिक जाएगा। लेकिन कई चीजें मिसअंडरस्टूड हो रही है जैसे आज भी दुकानदार के उपर ज्यादा निर्भर करता है कि बडे ब्रांड की बजाए आपका माल बेचेगा। उसे ज्यादा आमदनी होगी। पर अगर मेरे ब्रांड की डिमांड है तो लक्कड़ की कमी परेशान करेगाी। डिमांड अगर आती रहेगी फिर माल की सप्लाई अपने आप पूरी होगी। ऐसी आशा है। टिंबर के रेट जो मर्जी हो जाए।

उतनी ज्यादा ब्रांड की पहुंच बनाने की कोशिश करनी पड़ेगी। कुछ भी करके ब्रांड को प्रमोट करिए और बचिए। वो तो हर आदमी अपने लेवल पर कोशिश करेगा। लेकिन अगर वो ग्रीन के साथ या सेंचुरी के साथ कंपेरिजन करे तो हम इंडीविजुअली वो नहीं कर सकते। इंडीविजुअल लेवल पर हमारी जो कोशिश है कि हम 30 गाडी या 25 गाड़ी हम बनाते हैं वो 25 गाड़ी माल को हम अगर ब्रांड से बेच सके तो वो ज्यादा अच्छा है। वो बहुत बड़ी अचीवमेंट होगी आज के समय में। जिस आदमी ने इस पर मेहनत कर ली या कर चुके हैं वो ठीक रेट कमा रहे हैं और जिन लोगों नहीं किया उनके साथ सेल्स की प्रोबल्म हमेशा रहेगी भले ही वो रेट उनको मिल जाए।

इस मंदी में कोस्टींग को कैसे मेन्टेन किया जाए?

अभी तक की यमुनानगर वालों की जो पाॅजिशन है कि जब वो रेट गिनवाते हैं तो कोर ये रेट, फेस ये रेट, ग्लू ये रेट। न वो मशीनरी की कोई डेप्रीसीयेसन कोस्टिंग करते हैं न कोई इंटरेस्ट जोडते हैं और न ही वेस्टेज बी ग्रेड को जोड़ते हैं। लोग कहते हैं आप स्टाफ कम करिए और खर्चे भी, मैं कहता हूँ यही तो स्टाफ रखने का टाईम है। कहते हैं जितना आपके उपर लोड कम होगा उतना ही आप डिसिजन सही ले पाएंगे। डूबती हुई नय्या को किसी के सहारे से बचाएंगे या अकेले बचाएंगे। लोग डर चुके हैं क्योंकि सारे रास्ते बंद हैं इस टाईम। सब लोग कोस्टिंग के पीछे भाग रहे हैं, सभी को पता है रेट बढ़ रहे हैं, तो कोस्टिंग कैसे कम होगा। हम उसको मोडिफाई कर सकते हैं, मशीनरी डेवलप करके या किसी अन्य तरीके से। पर स्टाफ कम करने से नहीं हो सकती हैं। आज लक्कड़ इतनी महंगी हो गई बल्कि स्टाफ को बढाए कि वेस्टेज कम करो। अगर आप वेस्टेज भी कंट्रोल कर लेते हैं, तोे भी आप प्रोफिट में हैं। लोग जिन चीजों के पीछे पड़े हैं उसकी बजाय अपने आप को शांत रखकरके, अपने दिमाग से दूसरी जगह पैसे बचाने का या बढ़ाने की जरूरत है। लोग गलत जगह दिमाग लगा रहे हैं और नुक्सान उठायेंगे बहुत ज्यादा। क्योंकि मेंटली तो अपसेट हो ही चुके हैं। अगर प्रैस का ऑपरेटर छुट्टी पर जाता है एक महीने के लिए, तो मैं नहीं मानता कि आपका हर दिन बढ़िया जाएगा। किसी न किसी दिन माल खुलेगा, बेंड होगा। क्योंकि नया हाथ आया है काम करने के लिए। जिसकी जहां पाॅजिशन फिक्स हो गई है, उसको हटाने के लिए मत सोचो। पीलिंग के लिए एक आदमी होना चाहिए। कोर ड्रायर पर एक स्पेशल होना चाहिए। जैसे स्टीम बाॅयलर में एक आदमी होना चाहिए जो फ्यूल को बचा सके। बाकी हर तरीके की दुनिया है हर कोई अपने हिसाब से सोचते हैं। फिर वो ऑब्जरवेशन पर नहीं जाते बल्कि बाहर की चीजों पर ध्यान देते हैं। पुरा यमुनानगर इसी चीज में उलझा हुआ है सफेदा सस्ता है, पोपलर महंगा है, खर्चा ज्यादा है इसके अलावा कुछ नहीं सोच रहे यहां पर। न कोई ब्राडिंग की सोच है न कोई खर्चे तरीके से करने की सोच रहा है। बी ग्रेड बनता है बन जाने दो कोई बात नहीं। अगर मान लिजिए आपकी फैक्टरी में बी ग्रेड कुछ कम होता है तो फिर वो भी तो कुछ प्रोफिट ही है।

अब तो बिलिंग वाला जो इशू है बहुत जबरदस्त है कि अब तो ये 65-70 परसेंट होना ही चाहिए। थोड़ा आप कोशिश करेंगे थोड़ा हम कोशिश करेंगे तो वो सबके लिए फायदेमंद रहेगा। अभी पिछे जो वीडीयो वायरल हुआ था कि राजस्थान में रेड पड़ी थी वो सिर्फ अंडरबिलिंग के चक्कर में थी। जीएसटी का रेड हुआ था, दो चार फैक्टरी थी और एक दो होलसेलर थे। जितना सावधानी से और शांतीपूर्वक अपने आप को संतोष रखते हुए काम करेंगे उतना सभी के लिए सही रहेगा।