भारी छूट को कारोबार से न जोड़ें

भारी छूट को कारोबार से न जोड़ें

नीतिगत मोर्चे पर ई-काॅमर्स दिग्गजों फ्लिपकार्ट और एमेजाॅन इंडिया की आगे की राह और कठिन होने जा रही है। डिजिटल कारोबारियों को सरकार साफ करने की योजना बना रही है कि भारी छूट की अनुमति देना और कारोबार के लिए सकारात्मक माहौल प्रदान करना एक चीज नहीं है। सरकार यह साफ करने की योजना बना रही है वह इन कारोबारियों को प्रीडेटरी प्राइसिंग और भारी छूट के मसले पर आगामी ई-काॅमर्स नीति में कोई ढील नहीं देगी।

मंत्रालय से जुड़े सूत्रों के मुताबिक अधिकारियों का मानना है कि छूट देने को स्थायी प्रोत्साहजनक कारोबारी वातावरण मुहैया कराने से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए। भारी छूट और प्रीडेटरी प्राइसिंग के मसले पर व्यापारियों और आॅफलाइन कारोबारियों से लगातार शिकायतें मिल रही हैं।

वाणिज्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ मंत्री ने कहा, ‘ई-काॅमर्स कंपनियां हमेशा कहती हैं कि कारोबारी वातावरण में सुधार करने की जरूरत है। इसमें और अधिक सुधार करने की जरूरत है। इसमें और अधिक खुलापन लाने की जरूरत है ताकि अधिक से अधिक निवेश आ सके। लेकिन विवाद की वजह इन कंपनियों की ओर से दी जाने वाली छूट और आयोजित की जाने वाली सेल है जिसका परंपरागत कारोबारी विरोध करते हैं। कारोबारी सुगमता और भारी छूट देने की अनुमति देना दोनों अलग अलग बाते हैं और ई-कामर्स नीति में हम इसे स्पष्ट करेंगे। किसी भी सूरत में हम प्रीडेटरी प्राइसिंग की अनुमति या उसे प्रोत्साहन नहीं देंगे। ’पता चला कि आगामी ई-काॅमर्स नीति में आॅनलाइन मार्केटप्लेस को इसका खुलासा करना पड़ सकता है कि छूट की भरपाई कहां से हो रही है। यह उत्पाद की कीमत के साथ ही बतानी होगी। इस नीति को लाने में पहले ही देर हो चुकी है अब अधिक संभावना है कि यह अगले वर्ष तक आएगी।

सूत्रों के मुताबिक आगामी ई-काॅमर्स नीति में प्लेटफाॅर्मों को छूट के साथ दिए जाने वाले प्रत्येक उत्पादों पर इस बात का सबूत देना होगा कि कीमत में कटौती विक्रेता की ओर से की गई है न कि ई-काॅमर्स पोर्टल ने अपने स्तर पर इसे घटाया है। आगामी ई-काॅमर्स नीति न केवल किसी उत्पाद पर अधिकतम छूट संबंधी नियम होंगे बल्कि यह भी सुनिश्चित करना होगा कि विक्रेता ही छूट दे रहे हैं।

नीति तैयार करना सभी देश का अधिकार क्षेत्र है और यदि बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपना कारोबार करना चाहती हैं तो वे उसका अक्षरशः पालन करने के लिए बाध्य हैं। नीति पर कुछ भी बोलने से पहले इन कंपनियों को सोचना चाहिए कि उनका कारोबारी माॅडल पूरी दुनिया में विवादस्पद और सवालों के घेरे में है।’

सरकार और ई-मार्केटप्लेस के बीच अंतिम विवाद इस बात को लेकर बनी हुई है कि क्या उन्हें समय समय पर दिए जाने वाले भारी छूट के लिए जिम्मेदार माना जा सकता है।

ई-काॅमर्स मार्केटप्लेस लगातार अपने ब्रांड नाम के साथ दिवाली या नव वर्ष पर महासेल आयोजित करने का विज्ञापन दे रही हैं। विज्ञापनों में छूट मुहैया कराने वाले बड़े विक्रेताओं को कोई जिक्र नहीं होता है।