बैंकों का तेजी से बढ़ता एनपीए वित्तीय क्षेत्र की सबसे गंभीर समस्या बना हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार एनपीए का आंकड़ा 10 लाख करोड़ के ऊपर ही रहा है। जाहिर है कि बैंकों की यह रकम कर्जदारों के बीच फंसी हुई है जिसे बैंक वसूल पाने में नाकाम रहे हैं। बैंको को इस स्थिति में लाने में बड़े कारोबारियों की मुख्य भूमिका रही है। रिजर्व बैंक ने अब एनपीए की वसूली के लिए जो नए दिशानिर्देश जारी किए हैं इससे कर्जदारों को भी कुछ राहत मिल सकेगी। अब बैंकों को डिफाॅल्टर की पहचान के लिए 30 दिन का वक्त दिया गया है। अब बैंक खुद ही तय करेंगे कि किस डिफाॅल्टर के साथ क्या करना है। वास्तव में इस नियम का मकसद यही है कि कर्जदार को जरा समय दिया जाए ताकि वसूली का रास्ता बंद नहीं हो। अधिकतर मामले कानूनी जाल में फंस जाते हैं और कर्ज वसूली की संभावनाएं क्षीण हो जाती हैं। कर्जदारों का बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो मामले को कानूनी जाल में उलझाकर उसका फायदा उठाता है और लंबे समय तक मामले को लटकाए रखना चाहता है। एनपीए ऐसे ही कर्जदारों से बढ़ा है। एनपीए के बढ़ते बोझ से चिंतित रिजर्व बैंक ने पिछले साल बैंकों पर सख्ती की थी और एनपीए वसूली के लिए कड़े दिशानिर्देश जारी किए थे। इसलिए बैंकों को सुदृढ़ बनाना और आवश्यक हो जाता है।