अरडु की लकड़ से मार्किट में बैलेंसिंग हो जाएगी, सप्लाई अवेलबल हो जाएगी। अगर ये लकड़ी ली जाए तो और सस्ता पड़ता है ये तो कोर की बात है। लकड़ी जो लेते हैं उसमें आधी लकड़ कोर के लिए होती है बाकी लकड़ आरे पर लेनी पड़ती है। आरे की फट्टी का ट्रीटमेंट पाॅसीबल नहीं है। कोर ही ट्रीट हो सकती है आरे वाली नहीं, मोटी होती है। डिपींग करके 3 प्रतिशत बोरी में या 1 परसेंट और डाल दिया जाए तो और बढिया है। लेकिन करता कोई नहीं। नाॅलेज होने के बाद भी लेता कौन है भगवान नाम। यही एक सबसे बड़ा ड़र है। उसमें हालांकि रेट की बैलेंसिंग हो जाएगी। फिर राजस्थान वाले भी ज्यादा सस्ता माल नहीं दे पाएंगे। यहां कोर डायवरट हो जाएगा तो वहां भी बैलेंस हो जाएगा रेट का।

अरडू के अलावा भी दूसरी लकड़ को अगर ट्रिट किया जाए 3 परसेंट के साथ तो कोई भी लकड़ी यूज हो सकती है। आईएसआई में तो लिखा ही है और जो लकड़ियों के नाम है उसके अंदर टिक मार दिया गया कि ये सब लकड़िया ट्रिट होनी चाहिए। उसमें मैंगों भी शामिल है। सिमल भी है।

च्प् अरडू के अलावा मेलिया की नर्सरी श्री गुरप्रीत सिंह ने ली है। वो कह रहे थे कि उसकी मिनिमम सपोर्ट प्राईस का बैनर साईज बनवाकर शहर में 2 से 3 जगह लगवा दें।

श्रज्ञ पेड़ 5-6 साल में तैयार होगा। तो 6 साल की कमिटमेंट कौन करेगा। अगर कोई कहता है कि मैं 600 में ले लूंगा और रेट हो गया 900 तो 600 मेें तो ले कर आएगा नहीं उसके पास।

च्प् उनके कहने का मतलब था कि इसे लगाने के लिए खेत वाले आगे नहीं आ रहे ऐसा कुछ सपोर्ट मिल जाए जिससे कि लोग या खेत मालिक, किसान इसके प्रति सोचने लग जाएं।

श्रज्ञ वो अपनी नर्सरी लगाए हम मानते है कि मेला दुबिया भविष्य की लकड़ी है।

मेला दुबिया अच्छी लकड़ी है। बैनर से कुछ नहीं होता। अब वो बेचेगा तो पाँच – छह साल में फसल आएगी तो आज के बैनर को कोई मतलब नहीं है। और पौध लगाने की बात है तो वो लोगों से थोड़ा इंटरैक्सन करे। थ्त्प् ने तो लिया था प्रोग्राम इस बारे में उन्होंने बताया था कि मेला दुबिया रिसर्च हुई है और फतेहाबाद में लगी हुई है कुछ एकड़ में। और हिमाचल वाले बोल रहे थे कि मेला दुबिया अच्छी है। उसे कंपोजिटा बोलते हैं।

च्प् मेला दुबिया भविष्य की लकड़ी है और इसे अप्रुव किया है। यह बातें उन किसानों तक पहंुचे तब कोई बात होगी जो किसान वहां पर लगाने के लिए आते हैं वो प्रेरित हो।

श्रज्ञ किसान को कोई नहीं समझा सकता। जब मंदा होता है पोपलर तो वो लगाना बंद कर देता है। जबकि वही लगाने का टाईम है जबकि उसके बाद तो तेज ही होना है उसे। ये तो देखा देखी काम करते हैं लोग यहां। आस पास 10-5 खेतों में लग गई फिर सब लोग लगाना शुरू करेंगे। इतना जल्दी इसका प्रसार होना मुश्किल है। कोई चीज प्रैक्टिल आने के बाद ही सही ढंग से होती है।

यानी की बाजार में आकरके बिकनी शुरू होती है उसक बाद से सक्सस स्टोरी शुरू होती है

इसका प्रचार एफआरआई और ईपीरीटी कर रही है और कर्नाटक में लग रहा है और यहां लगना शुरू हो गया है, तो ये धीरे-धीरे इसका प्रचार होगा। पोपलर का भी रातों-रात नहीं हुआ था।

च्प् उसमें विमको वालों ने गारंटी ली थी, उनकी अपनी कंजप्शन थी कि मैं इस माल को वापिस में इस रेट में खरीद लूंगा। अब मेला दुबिया के लिए कोई और दूसर आदमी खड़ा होगा तो कोई बात बनेगी।

श्रज्ञ अकेला कोई खड़ा नहीं हो सकता। विमको एक बड़ा ग्रुप था। इसकी कोई गारंटी नहीं ले सकता क्योंकि पता नहीं कितना माल तैयार हो जाए। क्या पता कितनी फसल हो जाए कि संभले या न संभले। किसान जब कोई चीज उगाने लगता है तो फिर वो किसी के बस में नहीं है कि कोई उसे खरीद सके। सरकार या विमको जैसी कोई बड़ी कंपनी तो खरीद सकती है। समय के साथ होगी, धीरे-धीरे प्रचार करना पडेगा।

जो आदमी लगाने के लिए कोशिश करेगा उसे अपने दम पर ही ये सब कोशिश करनी पड़ेगी।