श्री अनिल घई


Hind Timber Industries


मेरी फर्म मैसर्स हिंद टिम्बर इंडस्ट्रीज की स्थापना 1952 में यमुनानगर में मेरे पिता स्वर्गीय श्री कृष्ण कुमार घई द्वारा की गई थी। हमारा सेल्स ऑफिस कलकत्ता में था जो कि असम के सभी प्रमुख चाय बगानों में पाइन वुड के बक्से और टी चेस्ट बैटन की आपूर्ति करता था। हम टी चेस्ट बैटन के लिए आईएसआई चिह्न प्राप्त करने वाले पहले फर्म थे। फिर पैकेजिंग गनी बैग्स में बदल गये। बहुत पुराना स्थापित बाजार खो दिया और कलकत्ता ऑफिस बंद हो गया। पीलिंग और sawing शुरू किया। आज हम डोर साइज कोर बनाने में माहिर हैं और हरियाणा, गुजरात और महाराष्ट्र में प्लाईवुड निर्माताओं को आपूर्ति कर रहे हैं। हम हमेशा गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं। आज हमारा कोर विनीयर बाजार में मानकों का पैमाना है।


टिंबर मार्किट में अनिश्चितता बढ़ती जा रही है।

वर्किंग में ब्रेक लगा हुआ है, आगे रेट नहीं मिल रहे। बहुत मुश्किल स्थिति आ गई है। पंजाब का माल की आवक तो ऑलमोस्ट फिनिस है। 16 इंच से उपर दे रहे हैं। अंडर में तो गोला रहा ही नहीं। कोस्टिंग पुराने के हिसाब से भी 25-30 परसेंट उपर पहुंच गयी। क्योंकि अंडर मिक्स हो गया। उस समय 18 इंच था अब 16 इंच भी आ रहा है। मतलब सोख्ते का आइटम भी बीच में आ गया है। पहले डिस्काउंट होता था और फिर 3 परसेंट काट होती थी तो पहले 7-9 परसेंट नीचे आ जाता था। अब वो 3 परसेंट उपर दे रहे हैं। तो वो 10-12 परसेंट रेट से भी उपर हो जाता।

आउटपुट इतनी कम आती है हम हिसाब रोज लगाते हैं। ओवर डील कर रहे हैं 99 परसेंट। आउटपुट ही नहीं है। जो ट्रक बनता था 1200 गोले में वो आज बनता है 1700-1800 गोले में। सीधा डेढ़ गुना का फर्क पड़ गया। एक साल के अंदर 50 परसेंट आउटपुट कम हो गयी है। वोल्युम कम होता जा रहा है। लोगों के माइंड में है लो सस्ता। ये बैठता ही नहीं है कि जितनी पतली चीज लगेगी उतना ही माल कम निकलेगा। यहां पर तो आदमियों की ये सोच है कि वजन कम है, अन्डर के माल में। वजन तो 5-10 परसेंट कम है, सो तो ठीक है, लेकिन 50 परसेंट जो आउटपुट कम आएगा, वो क्या करेगा। 10 परसेंट थोड़ा पूरा करेगा। सभी को समझ ही नहीं आती कि जितनी मोटाई घटती जाती है आउटपुट कम हो जाती है। रास्ता ही नहीं है। अब तो हम न किसी को ब्लेम कर सकते हैं और न ही आड़ती को बोल सकते हैं। क्योंकि मार्किट जो है आउटआफ रिच है और आदमी भी आउटआफ रिच है।

आने वाले दिनों में स्थिति कुछ सुधरेगी?

ये स्थिति और खराब होगी। मेरे ख्याल से तो अगले साल तक। यूपी में फैक्ट्रीयां अभी लगनी है। अभी यूपी में ये ट्रेंड हो गया कि जिन्होंने 3-4 एकड़ जमीन ली थी प्लाइवुड के लिए उन्होंने पीलिंग लगा ली है। एक तो एक्सपीरियंस गेन कर लिया और वो तीन-चार एकड़ में दो दो पीलिंग लगा लिये हैं और वो दबा के काम कर रहे हैं और उनको उसी में मजा आ रहा है। डबल सिफ्ट चला रहे हैं दो दो पीलिंग। जब सारे लोग रो रहे हैं, तो प्लाइवुड लगाओ ही मत। यूपी में बता रहे थे कि वहां पर माल मिल रहा है डेढ़ सौ रू के डिफरेंस पर।

किसान और आढ़ती दोनों को ही बिलकुल भी इंतजार नहीं है। लेकिन वो भी क्या करें सारी की सारी चेन ही इस तरह हो गई है। एडवांस पेमेंट खेतों में हो रही है। जिस तरह प्रोपर्टी और शेयर में आस हो गई थी लोगों को कि ये तो रेट अभी और बढ़ेगा, तो महीना और इंतजार करके कटवा लेंगे। इस वजह से हमारे पास माल फालतू नहीं आ पा रहा है। अभी जैसे पंजाब में एक रूटिन बना हुआ था कश्मीर, श्रीनगर से कोर आ रही थी। वो कोर, कश्मीर बंद होने से वहां से सारी लेबर निकल गई, जिसकी वजह से इतना ओर गैप वहां पर एकस्ट्रा पैदा हो गया। धीरे-धीरे मुझे लगता है कि कोई न कोई अल्टरनेटिव ओर निकलेगा, जैसे जैसे लक्कड़ और महंगी होगी। अभी तो दो तीन साल डाउन नहीं आता 2022 तक। ये तो अब प्लांटेशन लग रही है पिछले साल से। इस साल थोड़ा और बढ़ेगी। रियल एस्टेट भी आपका 3-4 साल बाद ही उठेगा। 2021-22 से पहले रियल अस्टेट भी नहीं उठता।

सरकार से हम क्या अपेक्षा रख सकते हैं?

ब्याज घटाएंगे, आपूर्ति बढ़ाएंगे तभी होना है। इंडस्ट्री को हेल्प करेंगे मुसीबत से निकालने में तभी बनता है। मतलब जितना भी इंडस्ट्री से रूपया पिछले साल उठाया था सरकार ने वो सारा इंडस्ट्री को वापस देंगे तब बात बनेगी। क्या-क्या चीज करेंगे। लोगों को सब्सिडी बाटेंगे, किसानो को, बेरोजगारों को।

इन सारी चीजों के बीच आशा की किरण कहां पर है?

Demand is the only factor that can save industry, otherwise there is no chance. और अगर इसका उलट अगर हम सोचें कि हम अपनी लागत को ही घटा लें, काम को घटा लें। काम तो घट ही गया। काम नहीं घटाएंगे तो फसेंगे। मैं तो ये सोचता हूं कि मेरा कुछ ब्याज कम हो जाए। अगर सरप्लस लेबर हैं तो वो निकालु और अगर परचेज को अगर लिमिट कर दूं तो उसमें बच जाए। काम थोड़ा कम करेंगे, कोस्टिंग को घटाएंगे, वेस्टेज कंट्रोल करेंगे। तो ये सारा कुछ देख कर 5-10 परसेंट निकलेगा मेरी जैसी फैक्टरी का। वो भी चारो ऐंगल से प्रैशर देकर। प्लाईवुड वालों को कहां गंुजाइश है। हमें भी चिंता पड़ी है कि कैसे कंट्रोल करें अपने आप को। पिछले 6 महीने में कैपीटल ही कम हो रहा है। बहुत टफ सिवचेवशन है। ये खाली प्लाइवुड वालों को ही दिक्कत नहीं है। बात तो सारी लक्कड़ की है। हमारे अपने जो दोस्त हैं वन सेवन का माल पिल करते हैं। पीलिंगे बंद कर दिए हैं। बाजार से लेते हैं। वो आदमी बोल रहा है जो फाइनैंनसली बहुत वैल है। मतलब सिर्फ नाक के लिए फैक्टरी नहीं चलानी है। इसमे दो राय नहीं है कि अभी तो अगस्त का महीना चल रहा है तो चार महीने तो इसी साल में बाकी है और ये चार महीने भी लोगों के काफी परीक्षा में निकलेंगे। और सभी कोई इसी आशा में हैं शायद कि कोई फलां साहब कुछ गलत तरीके से चला रहे हैं, या फलां कुछ गलत तरीके से चला रहे हैं, मैं थोड़ा समझदार आदमी हूं इसलिए मैं अपने आप को बचा कर निकल रहा हूं। हर आदमी की ये सोच है। इसलिए 3-4 महीने जो ये काम होना है उसमें एक दूसरे के सहयोग से कौन आदमी किस तरह से बेनिफिट अपना निकाल कर ले पाएगा, इस के उपर बात है। अपने आप को माइनस न करे।

वेस्टेज भी तो कोस्टिंग में अहम रोल निभाता है।

हम लोगों में पहले वेस्टेज की रिकवरी अच्छी होती थी जब पहले तेजी थी उस समय हमारा फैक्टरी को वेस्टेज अच्छे दामों में बिक जाता था। आज हमारी वेस्टेज उस तरह नहीं बिकती। एक बड़ा गैप तो हमारा वेस्टेज और उसकी रिकवरी में ही हो गया। कुछ तो प्रोडक्शन भी डाउन हुई होगी उसकी वजह से भी कम हुआ होगा। परचेज हमारी महंगी हो गयी है। आज हमारी प्रोडक्शन पहले से 20-25 परसेंट कम है। रियलाइजेशन फुल कोर की और फाली की। जैसे 1 क्विंटल में हमारी 400 फुट कोर का माल निकल जाता है। हर एक ट्रक का अलग आएगा।   हम तो महीने के महीने ओपनिंग स्टाॅक और क्लोजिंग स्टाॅक कर लेते थे। अब विकली स्टाॅक लेते हैं। 10, 20, 50  हजार की गलती लग जाए तो अलग बात है लेकिन मोटा मोटा तो पता होना चाहिए कि कहां जा रहे हैं। लेकिन हर हफ्ते में सिचवेशन बहुत ग्लूमी है। माइनस है। लेबर और डायरेक्ट एक्सपैनसेस वो निकल आते हैं। ऑफिस , स्टाॅफ, इंश्योरेंस, ट्रैवलिंग, इंटरेस्ट, बैंक इंटरेस्ट ये सब नहीं निकलता। फैक्टरी एक्सपैनसेस मैन्यूफैक्चरिंग कोस्ट जो एक प्रोडक्ट में आता है वो वेस्टेज में से निकल जाता था। जब हम पहले अच्छे पैसे कमाते रहे हैं तब एक सीधा कैलकुलेशन होता था लकड़ के पैसे कोर से पूरे होंगे फाली को हम प्रोफिट गिनते थे। अब तो सब कुछ डाल के देखते हैं कि पैसे पूरे हुए कि नहीं। जो उपर के एक्सपैंसेस जो ऑफिस , स्टाॅफ और ओवरहेड हैं वो पल्ले से जा रहे हैं जिसके जितने ज्यादा हैं वो उतना ही माइनस है।

इन्डस्ट्री के काम करने के तरीके में बदलाव आने की संभावना?

कईं लोग अभी भी कहते है कि हमें घाटा नहीं है। मुझे लगता है कि सबसे ज्यादा दिक्कत इंडस्ट्री को इन्हीं जैसे लोगों से होगी। अपनी कोस्टिंग में अपने मशीनों की डेप्रीसीयेसन तो खैर हमें भी जोड़ना नहीं पड़ रहा है अभी। लेकिन अगर दिमाग में रखते हैं कि हमारा कुछ ऐसा ऐक्सपेंसेस है। आदमी की लाईफ में इस तरह की सिचवेशन आती जाती रहती है बहुत ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं है, हौसला तो रखना ही पड़ता है। अगर हम उस समय से बाहर निकल आए तो इस समय से भी बाहर निकल आएंगे।

गुडविल की कीमत आज भी है?

गुडविल की कीमत बाद में भी जाकर रहेगी हालांकि बाजार में हम इस तरह के किस्से बहुत सुनते हैं कि वो आया, लिया, भाग गया। लेकिन उस 2001 और आज 2019 इस गुडविल में बहुत अलग तरह का डिफरेंस होगा। अब वो चीज नहीं है। जो काम करने वाले पुराने हैं वो पहचानते हैं अब नए नए तरह के बच्चे जो आ गए हैं। हम सब से डीलिंग करते भी नहीं है। शाॅर्ट टर्म वाली सोच है इनकी और है भी चालू टाइप। कब कहां पर गडबड मचा दे कुछ नहीं पता। हमारी तो कोशिश रहती है कि आठ दस गिने चुने आदमियों से ही डीलिंग करें जिनका स्वभाव अच्छा है।

पोपलर और सफेदा से हटकर कोई टिंबर?

कुछ हार्डवुड टिंबर जो ज्यादा मोटे आ जाए तो उनको हाइड्रोलिक में राउंड करके फिर चला रहे हैं। पुरानी हाइड्रोलिक की फिर डिमांड आ गयी। लोग फिर खरीद रहे हैं यमुनानगर में जितनी पड़ी थी सब बिक गई। इसमें हार्ड और मोटी मोटी लकडियां पील कर रहे हैं । सस्ता ऑप्शन देख रहे है। बाजार में तो काफी लक्कड मिल जाती है हार्डवुड में। यमुनानगर भी आती है मिक्स होती है सब। उसमें से 50 परसेंट आरे पर चला दिया और 50 परसेंट पील कर दिया। 50 परसेंट से उपर पील होता नहीं। कभी कभी 25 परसेंट ही निकलता है। लोगों ने अरडू मंगा कर भी कमाल कर दिया। अब थोड़ा कम हो गया। या तो कंप्लेंट आई होंगी लोगों की। बाकि राजस्थान वाले रो रहे होंगे कि अरडू भी खत्म कर दिया यमुनानगर ने। जो 20 साल चलना था वो 5 साल में मुका देना है।