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देश में लॉकडाउन से प्लाइवुड इंडस्ट्री को बड़ा झटका, स्पेशल पैकेज की उम्मीद में उद्योगपति : अशोक अग्रवाल


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कोरोना वायरस को लेकर देशव्यापी लॉकडाउन ने प्लाइवुड इंडस्ट्री की कमर तोड़ दी है। लंबे अंतरराल की वजह से निर्माण कार्य एक दम से ठप हो गया है। इसका सीधा असर प्लाइवुड की डिमांड पर पड़ने वाला है। यूपी के प्लाइवुड संचालक अशोक अग्रवाल ने बताया कि तीन मई को लॉकडाउन यदि खुल भी जाता है तो इसका यह मतलब नहीं कि प्लाइवुड का उत्पादन शुरू हो जायेगा। क्योंकि माल की डिमांड आने में तो कम से कम तीन से चार माह लग सकते हैं। इसके बाद ही यूनिट चल पायेगी। इसलिए संचालकों के सामने यह बहुत ही मुश्किल भरा समय है। अक्टूबर नवंबर तक ही हालात सामान्य होने की उम्मीद हम कर सकते हैं। क्योंकि लॉकडाउन का असर तो लंबे समय में सामने आयेगा। अब लोग खर्च करने से बचेंगे। जो है, इसमें ही गुजारा करना चाहेंगे। जाहिर है इससे माल की डिमांड नहीं उठेगी।

अशोक अग्रवाल ने बताया कि इस वक्त हर संचालक को अपने खर्च कम करने की दिशा में सोचना चाहिए। इसके साथ ही उन्हें क्वालिटी भी अच्छी देनी होगी। क्योंकि जब जब डिमांड कम होती है तो निश्चित ही क्वालिटी मायने रखती है। उन्होंने यह भी बताया कि अब प्लाइवुड संचालकों को सोच समझ कर कदम उठाना होगा। इसके लिए कॉस्ट कटिंग भी करनी पड़ सकती है।

उन्होंने प्लाइवुड संचालकों को सलाह दी कि डिमांड है तो फैक्टरी चलायें। क्योंकि ठेकेदार को पैसे भी देने हैं। लकड़ी महंगी खरीदनी पड़ेगी। माल भी कम पैसे में बेचना होगा। लेबर को भी देखना होगा। ऐसे में एक ही तरीका निकलता है कि जब डिमांड अच्छी हो तो माल तैयार करें। क्योंकि इस स्टेज पर जो पार्टी माल लेगी वह पैसा नहीं देंगे। इस वक्त आप अपना उत्पादन कम करें। डिमांड को देखते हुये ही उत्पादन शुरू करें। विशेषज्ञों का कहना है कि जून से पहले फैक्टरी चलने के आसार तो बेहद कम है। जुलाई अगस्त में बरसात का सीजन रहता है। ऐसे में कम से कम छह माह का समय प्लाइवुड के लिए मुश्किल वाला साबित हो सकता है। इसके बाद भी प्लाइवुड संचालकों को वक्त देख कर काम करना होगा। क्योंकि पुराने से पुराने डीलर भी अब पैसा नहीं दे रहे हैं।

प्लाइवुड विशेषज्ञों का कहना है कि हर इंडस्ट्री एक चेन के तहत चलती है। चेन में यदि थोड़ी सी दिक्कत आती है तो पूरी चेन को ही नुकसान उठाना पड़ेगा। जाहिर है कि इसका असर प्लाइवुड मशीन उत्पादकों पर भी पड़ सकता है। क्योंकि जब इकाई संचालकों के पास ही पैसा नहीं है तो वह मशीन बदलेंगे क्यों?

लेबर की भी कमी का सामना करना पड़ सकता है। प्रवासी मजदूर वापस चले गये हैं। जो रह गये है, वह वापस जाने की कोशिश में जुटे हुये हैं। हालांकि प्लाइवुड संचालक उन्हें हर तरह की सुविधा दे रहे हैं। यूपी में स्थिति कुछ अलग है। वहां 70 से 80 प्रतिशत लेबर स्थानीय ही रहती है। लेकिन हरियाणा और पंजाब के प्लाइवुड में बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरोंपर निर्भर है। पंजाब से ज्यादातर मजदूर हरियाणा में अभी रूके हुये हैं। वह भी वापस जाना चाह रहे है। इसी तरह से प्लाइवुड युनिट में रह रहे मजदूर भी वापस जाने की जिद कर रहे है। ऐसे में उद्योगपतियों के पास ऐसा कोई जरिया नहीं है कि उन्हें उनके घर तक पहुंचाया जा सके। इस स्थिति पर अशोक अग्रवाल ने बताया कि 20 मई के बाद रेल यातायात शायद खुल सकता है। इसके बाद ही मजदूरों को उनके घरों तक पहुंचाना संभव हो पायेगा। हालांकि इसके साथ ही वह यह भी जोड़ रहे है कि यदि एक बार मजदूर इस हालात में चला गया। उसका वापस आना भी मुश्किल है।

क्योंकि मजदूरों का अनुभव बहुत खराब रहा है। वह घर से बाहर निकलना शायद ही पसंद करें। क्योंकि इसकी दो वजह है, एक तो उन्हें अपने घर पर ही काम आसानी से मिल सकता है। दूसरा वह बाहर आने का जोखिम नहीं उठाने से बचेंगे। इस वजह से लेबर की कमी आ सकती है। इसके साथ ही लकड़ी का भाव भी तेज रहने की संभावना है।

अशोक अग्रवाल ने बताया कि यूपी, हरियाणा में तो नियम है कि फिक्स चार्ज नहीं छोडे़ंगे। पंजाब में फिक्स चार्ज हटाने की बात चली थी। लेकिन वह भी सिरे नहीं चढ़ी। बिजली का बिल यूपी में तो जून में लिये जायेंगे। सरकार ने इस बारे मे लिखित में आदेश जारी कर दिया है। प्लाइवुड विशेषज्ञों का कहना है कि यह समय उनके लिए बहुत ही मुश्किल भरा है। क्योंकि कम से कम एक साल तक डिमांड बहुत ज्यादा रहने की उम्मीद नहीं हैं। इस दौरान कई फैक्ट्रियां बंद भी हो सकती है। कुछ के बैंक खाते भी एनपीए हो सकते हैं। क्योंकि आने वाला समय बहुत ही अंधकारमय वाला है। पता नहीं है आगे क्या होगा?

प्लाइवुड का इस्तेमाल तब होता है जब निर्माण कार्य पूरा हो जाता है। ऐसे में ढांचागत विकास कम होने की संभावना है। यूं भी लॉकडाउन के बाद बाजार में मंदे के आसार बन सकते हैं। ऐसे में रोजगार भी कम होंगे। जाहिर है ऐसे में बाजार में पैसे की कमी रहेगी। इसका भी सीधा असर मांग पर पड़ सकता है।

प्लाइवुड संचालकों का कहना है कि अब सरकार को इस उद्योग को बचाने के लिए आगे आना होगा। यदि ऐसा नहीं होता तो उद्योगपतियों के लिए इस स्थिति से निकलना आसान नहीं होगा। उन्होंने कहा कि इसके लिए सरकार को कोई योजना बनानी चाहिए। क्योंकि यदि ऐसा नहीं हुआ तो उनके सामने जबरदस्त आर्थिक संकट आ जायेगा। उनकी मांग है कि पहले तो कर्ज पर छूट मिलनी चाहिए। बिजली बिलों को लेकर कोई योजना बननी चाहिये। क्योंकि उनकी यूनिट तो लंबे समय से बंद है। ऐसे में बिजली का बिल इसी हिसाब से तय होना चाहिए। क्योंकि इस मुश्किल घड़ी में वह मजदूरों को वेतन भी दे रहे हैं। इसलिए सरकार को चाहिए मजदूरों के वेतन में भी उन्हें आर्थिक मदद दी जाये। उनका यह भी कहना है कि हरियाणा और पंजाब में इकाई संचालन की इजाजत तो दी जा रही है। लेकिन इसके लिए शर्त इतनी ज्यादा लगा दी कि संचालक यूनिट चला ही नहीं पायेंगे। क्योंकि यदि एक भी मजदूर को किसी कारण से संक्रमण हो जाता है तो उसे लेने के देने ही पड़ जायेंगे। इसलिए सरकार इस नियम में भी ढील दें।