BJP wants Sitharaman to give rural,
infrastructure push

The Bharatiya Janata Party (BJP) has recommended to Finance Minister Nirmala Sitharaman that the Government should strive to shift the focus from macroeconomic parameters, such as reining in fiscal deficit and inflation, to “real problems” facing the economy.

The party has diagnosed that emphasis on meeting fiscal targets and controlling inflation needs to be overcome to spur growth.

It has suggested an inflation linked monetary policy. Interestingly, none of the stakeholders the BJP consulted demanded any reduction in direct income tax, neither has the party recommended any relaxation.
Sources said not only the government currently faces resource constraint, but much has been done to ease the tax burden of the middle classes in the last five years. Also, it was argued that such a measure affects a limited segment of people when the focus should be to put money in rural areas.

The BJP has suggested that revenue constraints facing the government can be resolved through disinvestment of PSUs, monetisation of government assets and improving the primary and secondary bond markets.

The corporate sector, it has said, currently suffers from “twin risk averseness”, including with supply credit from banks, leading to deleveraging and problems in capital formation.

While this can be addressed by spurring consumer demand, the party has recommended the government should look at NBFCs, where it can remove capital formation restrictions and excessive oversight wherever public money is not involved.

Party sources said the BJP was committed to its philosophy of inclusive growth, but with a market friendly face. For a more transparent market system, it has suggested doing away with dividend distribution tax, as also CTT (commodity transaction tax) and STT (securities transaction tax). It has observed that not much tax revenue accrues from CTT and STT, but it hurts financial markets with increase in cost of transaction causing a shift to Singapore and Hong Kong.

For increasing liquidity in the rural economy, it has recommended more budgetary allocation for schemes that have worked – PM-KISAN, MNREGA and Ayushman. Its feedback is that the direct transfer of MSP to farmers has helped, and should be expanded to rid the system of middlemen.

The BJP has stressed that all FTAs (free trade agreements) with the ASEAN countries should be renegotiated. It has argued that import duty on inputs should be aligned with that on custom duty on finished products.

While not a recommendation, the IT sector flagged to the party the issue of Indian companies operating in the US and Europe must have a level playing field. From the feedback, the BJP has observed that the Insolvency and Bankruptcy Code (IBC) resolution process has become clogged after inclusion of homebuyers’ interests leading to judicial delays, and real estate needs a separate process to reduce delays in the IBC resolution process.

On MSMEs, it has asked for services and industries, and micro and small industries, should be dealt separately as they face distinct issues. Similarly, MSMEs should have a different financial resolution mechanism. It has recommended decriminalisation of some of the provisions of the Company Law.


असल समस्याओं पर हो ध्यान


भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को सुझाव दिया है कि राजकोषीय घाटे और महंगाई दर जैसे वृहद आर्थिक मानकों से हटकर अर्थव्यवस्था की वास्तविक समस्याओं पर ध्यान देने की जरूरत है। पार्टी ने कहा है कि ग्रामीण इलाकों में सरकारी व्यय को बढ़ाकर, बुनियादी ढांचे के सृजन के माध्यम से उपभोक्ता मांग में कमी जैसी असली समस्याओं का समाधान करने की जरूरत है।

भाजपा ने सुझाव दिया है कि सरकारी कंपनियों में हिस्सेदारी बेचकर, सरकारी संपत्तियों के मुद्रीकरण और प्राथमिक व द्वितीयक बाॅन्ड बाजारों की स्थिति में सुधार करके राजस्व की कमी के मसले का समाधान किया जा सकता है।

दिलचस्प है कि भाजपा ने जिन हिस्सेदारों से बात की, किसी ने भी प्रत्यक्ष आयकर में कमी किए जाने की मांग नहीं की। पार्टी ने अपनी ओर से भी प्रत्यक्ष आयकर में किसी तरह की राहत की मांग नहीं की है। सूत्रों ने कहा कि सरकार इस समय संसाधनों की कमी से जूझ रही है और पिछले 5 साल में बहुत कुछ किया गया है लेकिन इसका असर कुछ सीमित लोगों पर पड़ा है।

ऐसा पाया गया है कि राजकोषीय लक्ष्य हासिल करने पर बहुत ज्यादा जोर दिए जाने व महंगाई पर काबू पाने की पिछले 5 साल की कवायदों ने आर्थिक मंदी में अहम भूमिका निभाई है। इसमें कहा गया है कि काॅर्पोरेट क्षेत्र इस समय दो तरह के जोखिमों से जूझ रहा है, जिसमें बैंकों से आपूर्ति क्रेडिट और पूंजी सृजन की समस्या शामिल है।

पार्टी की सिफारिशों में कहा गया है कि मंदी की समस्याओं का समाधान उपभोक्ता मांग बढ़ाकर किया जा सकता है। पार्टी ने कहा है कि सरकार को एनबीएफसी पर ध्यान देना चाहिए, जिससे पूंजी सृजन की बाधाओं को दूर किया जा सके और जहां सार्वजनिक धन नहीं लगा है, एनबीएफसी प्रमोटरों व मित्रों द्वारा समर्थित हैं, वहां कड़ी निगरानी रखने जाने की जरूरत है।

पार्टी के सूत्रों ने कहा कि भाजपा अपने अत्ंयोदय या समावेशी विकास के दर्शन को लेकर प्रतिबद्ध है, लेकिन वह बाजार के प्रति मित्रवत चेहरा होना चाहिए। ज्यादा पारदर्शी बाजारों के लिए लाभांश वितरण कर (डीडीटी), जिंस लेनदेन कर (सीटीटी) और प्रतिभूति लेन देन कर (एसटीटी) से दूर रहने की सिफारिश की गई है। सीटीटी या एटीटी से बहुत ज्यादा राजस्व नहीं आता है, लेकिन वित्तीय बाजारों पर इसका बुरा असर पड़ता है, जिसकी वजह से लेन देन की लागत बढ़ने पर कारोबार सिंगापुर और हाॅन्गकाॅन्ग जाता है।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था में नकदी बढ़ाने के लिए इसमें कहा गया है चल रही योजनाओं पीएम किसान, मनरेगा और आयुष्मान का बजट आवंटन बढ़ाया जाना चाहिए।

अपने फीडबैक में पार्टी ने कहा है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के प्रत्यक्ष नकदी अंतरण से किसानों को मदद मिली है और इसका विस्तार किया जाना चाहिए जिससे कि बिचैलियों या आढ़तियों को दूर किया जा सके।

पार्टी ने खाद्य प्रसंस्करण की जरूरतों पर ध्यान केंद्रित करने की भी सिफारिश की है, जिस पर फिर से विचार करने की जरूरत है। साथ ही कोआॅपरेटिव को भी छूट और लाभ उसी तरह से मिलना चाहिए, जैसा सरकार की ओर से काॅर्पोरेट्स को मिल रहा है।