COVID affects Bank's Performance

COVID affects Bank’s Performance


Even his worst detractors can’t accuse State Bank of India Chairman Rajnish Kumar of being economical with optimism. So, when the head of the country’s largest bank says, “I have money, but there are no takers of the money,” the signal is loud and clear: India’s bank credit market is in the midst of one of its worst crisis.

Due to low credit offtake, banks are straddled with huge liquidity, on which they have to pay interest to the depositors, but can’t earn interest by deploying loans, their core business.

That explains Kumar’s desperation. Speaking at a meeting of the Confederation of Indian Industry this month, he said, “I hear a lot about risk aversion (among bankers). But isn’t there risk aversion among borrowers also …?”
That’s a valid question as India’s bankers have been under fire for supposedly lazy banking. The Reserve Bank of India (RBI) data shows credit growth has fallen 50 per cent to barely 6 per cent year-on-year. And the prediction is dire. Ratings agency CRISIL estimates credit growth for the fiscal year could be 0-1 per cent.

CRISIL Senior Director Krishnan Sitaraman says “this crisis is unprecedented and so will its economic fallout be — such as lower capex demand as well as lower discretionary spends, to name some — which will slow down credit offtake significantly across segments in the current fiscal year. The corporate loan portfolio is expected to be the worst-hit.”


महामारी से बैंकों की सेहत पर भी असर


देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन रजनीश कुमार जब कहते हैं, ‘मेरे पास पैसा है, लेकिन पैसा लेने वाला कोई नहीं है।’ तो इस बात से स्पष्ट संकेत मिलता है कि देश में बैंक का ऋण बाजार भी इस दौर के सबसे बड़े संकट से प्रभावित हो रहा है।

कम कर्ज लिए जाने की वजह से बैंकों के पास इस वक्त काफी नकदी है जिस पर उन्हें जमाकर्ताओं को ब्याज का भुगतान करना पड़ता है लेकिन इस वक्त अपने मुख्य कारोबार से उन्हें महरूम होना पड़ रहा है जो कर्ज देकर ब्याज कमाने से जुड़ी है। इससे कुमार की निराशा साफतौर पर झलकती है। इस महीने भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की बैठक में उन्होंने कहा, ‘मैं बैंकरों के बीच जोखिम से बचने के बारे में बहुत कुछ सुनता रहता हूं। लेकिन क्या कर्ज लेने वालों के बीच भी जोखिम से बचने की धारणा नहीं बनी है?’

यह एक वैध सवाल है क्योंकि आमतौर पर देश के बैंकरों पर आलसपन के साथ बैंकिंग करने को लेकर सवाल खड़े होते रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के आंकड़ों से पता चलता है कि ऋण वृद्धि 50 फीसदी गिरकर बमुश्किल साल-दर-साल 6 फीसदी रह गई है। यह भविष्यवाणी बेहद गंभीर है। रेटिंग एजेंसी क्रिसिल का अनुमान है कि वित्त वर्ष के लिए ऋण वृद्धि 0-1 फीसदी रह सकती है .

क्रिसिल के वरिष्ठ निदेशक कृष्णन सीतारमण का कहना है, ‘यह संकट अभूतपूर्व है और इसका आर्थिक नतीजा भी कुछ ऐसा ही होगा। मसलन कम पूंजीगत खर्च की मांग के साथ-साथ लोग सोच-समझ कर खर्च करेंगे। इससे चालू वित्त वर्ष में सभी क्षेत्रों में कर्ज लेने की दर काफी धीमी होगी। कॉरपोरेट ऋण पोर्टफोलियो के सबसे ज्यादा प्रभावित होने की उम्मीद है।’