rohit kaya

 


सकारात्मक सोच से बेहतर की उम्मीद रखें : रोहित काया


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निश्चित ही नुकसान हुआ है। सरकार जब तक आदेश नहीं करेगी तब तक यूनिट चलाने का कोई मलतब नहीं बनता। लेकिन जब आदेश आ जाता है तो यूनिट चलानी चाहिये। क्योंकि यूनिट चलेगी तभी हालात सामान्य होंगे। लॉकडाउन के बाद प्लाइवुड संचालकों को अब आगे क्या करना चाहिये। इसी सीरिज में इस बार रोहित काया से बातचीत की गयी। पेश है उनसे बातचीत के मुख्य अंश।


जब भी सरकार यूनिट चलाने के आदेश हमे देती है, तो क्या जो हमारे मुख्य बाजार है, वह तो बंद रहेंगे, तो इस स्थिति में आप क्या समझते हैं?

हर वर्ष की 31 मार्च को एक बैलेंसशीट बनाते हैं। इसमें कुछ देनदारियां है, कुछ लेनदारिया है। यदि देनदारी ही देखेंगे, तो कुछ नहीं कर पायेंगे। अब यदि मुख्य बाजार नहीं खुलता तो क्या हुआ। हमें दूसरा बाजार तलाशना चाहिये। किसान के पास पैसा पहुंचेगा, क्योंकि फसल की कटायी हो रही है। वहां से अर्थव्यवस्था चलेगी। वहीं से अर्थव्यवस्था मूव करेगी। इसके लिए डार्क नहीं सोचना चाहिए। इसलिए जब भी सरकार मौका देगी, हमें तुरंत काम शुरू करना चाहिए। हम इंडस्ट्रियलिस्ट है, हमारा काम है यूनिट चलाना। क्योंकि और थोड़ा बहुत नुकसान होगा, वह बर्दाश्त करेंगे। मजदूरों को मोटिवेट करना चाहिए।

लेबर की दिक्कत को कैसे दूर कर सकते हैं? इसकी क्या रणनीति होनी चाहिए ?

देखिये लेबर को समझाना होगा। उन्हें मोटिवेट करना चाहिये। यह मोटिवेशन सिर्फ पैसे से नहीं आयेगा। बातचीत करनी होगी। उन्हें समझाना होगा। क्योंकि मजदूर किसी भी यूनिट के लिए बेहद जरूरी है। उन्हें अपने साथ जोड़ कर रखना होगा। इस दिशा में कोई जितना काम करेगा, उतना ही उन्हें फायदा होगा। काम करना उनके लिए उतना ही आसान हो जायेगा।

आप पूरी क्षमता पर यूनिट चला पायेंगे?

यदि आर्डर है तो चलाना चाहिए। बंद करके नहीं रखना चाहिये। यदि डिमांड है तो इसे पूरा करना चाहिए। जो मैट्रो में बेच रहे हैं, उनके लिए दिक्कत है। जो इधर उधर बेच रहे हैं, वह आर्डर निकाल ही लेंगे। यूं भी यूनिट यदि चलाते हैं तो ही फंड का आवागमन होगा। यदि यूनिट बंद कर दी, तो फंड भी रूक सकता है। इसलिए यूनिट चलाना चाहिये। सकरात्मक सोच रखें।

एक बात लोगों की सोच में है कि जो खुदरा इंडस्ट्री मसलन होटल, रेस्टोरेंट आदि अगर नहीं खुलती, तो इसका असर अर्थव्यवस्था पर आयेगा ?

हां इसका असर तो पड़ेगा ही। लॉकडाउन भी खुल जाता है ,तो भी होटल में रहने का रिस्क अभी कोई नहीं लेगा। कोई बाहर निकलेगा ही नहीं। क्योंकि जब तक वहां विश्वास नहीं हो जाता, तब तक बात नहीं बनेगी। सेफ्टी होनी चाहिये। एक बार विश्वास बनना चाहिये। फिर भी सभी सिस्टम चलना चाहिये। क्योंकि यूनिट का चलना ही समझदारी है।

पैसे का फ्लो रूक गया है,बड़ी संख्या में उद्योगपतियों के सामने समस्या यह है कि उन्हें फंड की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है ।

हां यह समस्या तो आयेगी। लेकिन इससे निपटना होगा। यहीं असली चैलेंज है। इससे निपटने की रणनीति हम सब को बनानी होगी। जिससे उद्योगपति को भी दिक्कत न आये, उनके स्टाफ को भी दिक्कत न आये। कोई ऐसा फार्मूला निकालना होगा।