तीन मई बाद प्लाइवुड इंडस्ट्री चलाना तर्क संगत तो नजर नहीं आ रहा: रोहित वशिष्ठ



trikalp laminates

लॉकडाउन के बाद पैदा हुये हालात प्लाइवुड और लेमीनेट उद्योग के लिए खासे चिंता का विषय बने हुये हैं। इससे कैसे निपटा जाए। इसी को लेकर एक सीरिज शुरू की गयी है। इसी क्रम में आज हम बात कर रहे है प्लाइवुड उद्योगपति रोहित वशिष्ठ से जो कि त्रिकल्प लेमिनेट्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर हैं । रोहित वशिष्ठ, विकास मित्तल एवं गौरव मित्तल इस कंपनी के डायेरक्टर हैं ।

  •  तीन मई के बाद प्लाइवुड और लैमिनेट निर्माताओं को क्या करना चाहिए?

देखिये प्लाइवुड और लैमिनेट की जरूरत इंसान की जरूरत में आखिर में आती है। क्योंकि अभी तो उन्हें खाने पीने की व्यवस्था करनी है। अगले दो तीन माह वह फंड जुटायेगा। हर आदमी कहीं न कहीं इस बात को दिमाग में रखेगा कि पांच से छह माह की सेविंग रखनी है। ताकि इस तरह के हालात यदि आये तो वह इससे आसानी से निपट सके। प्लाइवुड और लैमिनेट के लिये अभी डिमांड आने की संभावना कम नजर आ रही है, जब तक लॉकडाउन खुल नहीं जाता इसके बाद भी डिमांड नहीं आती तब तक इंतजार ही करना चाहिये। क्योंकि यह उत्पाद तो यूं भी डेकोरेटिव है, जिस पर खर्च कोई भी तब करता है, जब सब कुछ सामान्य रहे। पब्लिक प्लेस पर भी कोई प्रोजेक्ट नहीं चल रहें है। इसी तरह से पब्लिक फंक्शन भी बंद रहेंगे। अगले दो तीन माह डिमांड आने की संभावना कम है। इसलिए उत्पादन करने का फायदा क्या? यूं भी अभी कच्चा माल भी नहीं आ पा रहा है। इसमें भी कुछ न कुछ समय लगेगा। ऐसे में मई में तो कम से कम उत्पादन शुरू नहीं हो सकता। इधर मजदूर भी चले गये। उन्हें भी आने में समय लगेगा। प्लाइवुड और लैमिनेट इकाई तभी चलाने का फायदा है जब तक पचास प्रतिशत उत्पादन तो हो।

  • क्या ऐसा नहीं है कि हमें खुद को तैयार करके रखना चाहिए?

अभी तो देखा जा रहा है कि अब क्या रणनीति होनी चाहिए। अभी तो सेल्ज और अन्य प्वाइंट को देखा जा रहा है। जब तक रिटेल में बिक्री नहीं होगी तब तक हम करेंगे क्या। अभी तो पॉलिसी की रिव्यू कर रहे है।देख रहे हैं कि क्या किया जाना चाहिए। वेट एंड वाच की स्थिति है। अभी तो कई स्तर पर पैसा भी फंस रहा है। क्योंकि जो पैसा आना था वह पैसा भी नहीं आ रहा है। मध्यम वर्ग के लिए सरकार के पास कोई नीति ही नहीं है। मजदूरों को वेतन देना, इएमआई देने के लिये पैसा कहां से आयेगा?

  •  बाजार में जो पैसा फंसा हुआ है क्या उसकी रिकवरी हो पायेगी?

डिस्ट्रीब्यूटर हों या रिटेलर के स्तर पर अब नया बिजनेस चलाने जैसे हालात बन गए हैं। अभी भी दस प्रतिशत रिकवरी का नुकसान हो सकता है।

  •  क्या कमजोर प्लेयर निकल नहीं जायेंगे क्या?

हां हर स्थिति के फायदे व नुकसान दोनो होते हैं। यह मान लिजिये मई में लॉकडाउन खुल जायेगा तो चार से पांच माह लग जायेंगे कि हम मेन स्ट्रीम में वापस आयेंगे। आज, हम जहां थे, वहां से एक कदम पीछे हो गये हैं। अब इस गैप को कैसे भरा जा सकता है। इसे लेकर ही कोई पॉलिसी बनानी पड़ेगी।

  •  इसके लिए क्या तैयारी करनी होगी?

देखिये अभी तो इस बारे में कुछ भी कहां नहीं जा सकता। क्योंकि लॉकडाउन खुलने के बाद दस से पंद्रह दिन बाजार का रूख देखा जायेगा।

  • मई में तो मेन सिटी नहीं खुलने वाले हैं

हां यह बात सही है। पचास प्रतिशत बिजनेस तो मेन सिटी में ही होता है। और मई में तो मुख्य बाजार नहीं खुल सकेंगे इसलिए हमारा लक्ष्य तो इस पर निर्भर करेगा कि हम पचास प्रतिशत उत्पादन कर सके। क्योंकि अगले छह माह तक बाजार को देख कर ही शिफ्ट चला सकते हैं। जितनी बाजार में मांग होगी, उतना ही उत्पादन करेंगे। हमें दस से पंद्रह दिन लग जायेंगे सब कुछ जुटाने में क्योंकि मजदुर जुटाना ही मुश्किल काम है। उन्हें वापस लाने में दिक्कत आएगी।

  • अभी भी काफी मजदुर बीच में फंसे हुए हैं

हां हां कुछ मजदुर फंसे है। ओपन होने के बाद जो बाकी मजदुर है वह रुकेंगे नहीं । वह इंतजार कर रहे हैं। कुल मिला कर 1 5 से 30 दिन लगेंगे। इसके बाद माह के अंत तक चलाने की स्थिति में होंगे। इसके बाद भी यूपी के पेपर मिल चलेंगे तो वहां से सामग्री आयेगी। वह चलने चाहिए। क्योंकि अब तो एक तालमेल बनाना होगा। फिर आम राय बनाने के बाद ही इकाई चलाने के बारे में कुछ कहां जा सकता है। सरकार के भी बहुत सारे मापदंड आये, जिन्हे पूरा करना मुश्किल है। कुछ ने इजाजत लेने की कोशिश की। इसमें बहुत का आवदेन रद्​द हो गया।

  • शुरुआत के बाद की रणनीति क्या होनी चाहिये ?

अभी दो से तीन माह तो बाज़ार में पचास प्रतिशत ही काम रहेगा। क्योंकि अभी रिकवरी भी कम आयेगी। सब कुछ तो रिकवरी पर ही निर्भर करता है। यदि रिकवरी कम आयेगी तो डिमांड भी कम रहेगी। अब इसमें जो हमारे सहयोगी है, उनके साथ बैठेंगे, मीटिंग करेंगे। कुछ पॉलिसी बनायेंगे। दोबारा से पुरानी पॉलिसी को रिव्यू करेंगे। क्योकि अब सबकुछ नये हिसाब से रेगुलेट करना होगा। जो हमारे साथ अब चल सकते हैं उन्हें चलाया जायेगा, वह प्राथमिकता में रहेंगे। क्योंकि हम किसी को छोड़ तो सकते नहीं है। हाँ दिक्कत यह भी आ गयी कि नया कुछ भी रिवाइव् नहीं हो सकता है। सारी नयी लॉन्चिंग रूक जाएगी। बाजार उठेगा नहीं तो, नये प्रोडेक्ट के लिए भी संभावना कम रह सकती है। शायद अभी एक और समस्या यह आ सकती है कि इसके साथ साथ प्राइज वार भी आ सकता है।

  • आपका मतलब है कि हमें रेट घटाने पड़ेंगे?

यह देखने की बात है। क्योंकि डिमांड और सप्लाई पर निर्भर करेगा। यदि डिमांड आती है तो सब ठीक है। लेकिन डिमांड नहीं आती तो दिक्कत आयेगी। इंडस्ट्री में गैप बहुत है। ज्यादातर सदस्य नियमों की पालना नहीं करते। सब अपने अपने तरीके से चलते हैं। ऐसे में दिक्कत आती है। लेकिन सबसे बड़ी बात तो यह है कि यह मौका है कुछ नया करने के लिए। कुछ ऐसे कदम उठाने के लिए, जो अभी तक नहीं उठाये गए। क्योंकि इस वक्त बाजार भी तैयार है इस तरह के बदलाव के लिए। देखिये इससे फर्क तो पड़ता है। यदि 90 प्रतिशत तक उद्योगपति नियमों में काम करें तो बाकी के उद्योगपति भी ऐसा करेंगे। इसलिए हम तो हर जगह यह मुद्​दा उठा रहे हैं।

  • फंड का बहाव थम गया है?

बाजार भले ही आज रियेक्ट नहीं कर रहा लेकिन आने वाले दिनों में तो रियेक्ट करेगा ही। हम बेहतर की उम्मीद करते हैं।

अंत में यहीं कह सकते हैं कि यह मुश्किल वक्त है। इसमें जो संयम रखेगा वह बच सकता है जो ऐसा नहीं करेगा उसे दिक्कत आ सकती है। हम यहीं कह सकते हैं कि बाजार के हिसाब से ही काम करना होगा। प्लान वन और प्लान टू पर काम करना होगा। बाजार में कैसे जाना है, इसकी पॉलिसी तो बना ली। सभी इस बारे में सोच रहे हैं। लोगों से बातचीत चल रही है। पॉलिसी हालांकि शत प्रतिशत तो नहीं लागू हो सकती। आज के हिसाब से पॉलिसी बनानी होगी। पुरानी पॉलिसी पर अब टिके रहना मुश्किल है। क्योंकि सप्लायर, डिस्ट्रीब्यूटर्स, रिटेलर सभी एक चेन का हिस्सा है। यहीं कहा जा सकता है कि हम जो उत्पाद खरीद रहे हैं, उसमें हमें कितना मार्जिन मिलता है, वहीं हम आगे दे पायेंगे। अंत में ईश्वर से यही प्रार्थना करते हैं की कोरोना का इलाज जल्द से जल्द आ जाये।