Editorial December 22
- December 12, 2022
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So if we talk about the unexpected, then a recession may not happen, and it will happen only when inflation starts declining rapidly.
Economists don’t think too far ahead. They keep their eyes on small developments. In this process they miss the whole picture. That is why they have not been able to predict a single US recession since 1970.
A group of economists is not only predicting a recession in the US next year, but is 60 percent sure it will happen. Now that inflation has hit a four-decade high and central banks are aggressively raising rates, a recession seems inevitable, yet what is inevitable never happens, but unexpected happens.
So if we talk about the unexpected, then a recession may not happen, and it will happen only when inflation starts declining rapidly. Due to this, the Federal Reserve will not tighten further. Emerging China’s economy is also turbulent and is gradually exporting inflation to the whole world.
But right now the US economy seems far from the edge of recession. Weak growth in the first half of this year was exacerbated by the third quarter, when US GDP grew at 2.6% annually. Disposable incomes are keeping pace with inflation, showing a healthy uptick in consumer-buying.
Obviously, in the post-pandemic situation, now the expenditure on travel and tourism has also increased more than before. The private sector is also investing money. Corporate capital expenditure is growing at a rapid pace. The unemployment rate remains at a low of 3.7%. None of this is usually seen in the precursors of a recession.
Labor market turmoil is bound to increase wage inflation, but some analysts are still hopeful that wage gains will also stop now while job openings are shrinking. Also the doors of unexpected happiness are always open. Warm winters or peace in Ukraine will result in a drop in energy bills, which will reduce inflation and boost economic growth.
Especially also because in the world of market and economy the unexpected is permanent. This means that the recession may not be as inevitable as it is being projected.
Suresh Bahety
9050800888
तो अगर अनपेक्षित की बात करें तो हो सकता है कि मंदी नही आए, और यह तभी होगा जब मुद्रास्फीति तेजी से घटने लगेगी।
अर्थशास्त्री लोग बहुत आगे की नहीं सोचते हैं। उनकी नजर छोटेे-छोटे डेवपलमेंट पर रहती है। इस चक्कर में वे पूरी तस्वीर चूक जाते हैं। यही कारण है कि 1970 से अब तक वे एक भी अमेरिकी मंदी का पूर्वानुमान नहीं लगा सके हैं।
अर्थशास्त्रियों का एक समूह न केवल अगले साल अमेरिका में मंदी की आशंका जता रहा है, बल्कि 60 प्रतिशत सुनिश्चित भी है कि ऐसा होकर रहेगा। अब जब मुद्रास्फीति चार दशकों के उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी है और सेंट्रल बैंक आक्रामकता के साथ दरें बढ़ा रहे हैं, ऐसे में मंदी अवश्यम्भावी लगती है फिर भी, जो अवश्यम्भावी है, वह कभी नहीं होता, होता वही है जो अनपेक्षित है।
तो अगर अनपेक्षित की बात करें तो हो सकता है कि मंदी नही आए, और यह तभी होगा जब मुद्रास्फीति तेजी से घटने लगेगी। इसके चलते फेडरल रिजर्व और ज्यादा नकेल नहीं कसेगा। उधर चीन की इकोनॉमी भी डावांडोल है और पूरी दुनिया में धीरे-धीरे मुद्रास्फीति का निर्यात कर रही है।
लेकिन अभी तो अमेरिका की इकोनॉमी मंदी के मुहाने से दूर ही दिखलाई देती है। इस साल के पूर्वार्द्ध में कमजोर विकास की स्थिति तीसरी चौथाई तक समाप्त हो गई थी, जब अमेरिका की जीडीपी 2.6 प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ी। डिस्पोजेबल आमदनियां मुद्रस्फीति के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं, जिससे उपभोक्ता-खरीद में स्वस्थ बढ़त दिखाई दे रही है।
जाहिर है महामारी के बाद वाली स्थिति में अब यात्राओं और पर्यटन पर व्यय भी पहले से अधिक हुआ है। निजी क्षेत्र भी पैसा लगा रहा है। कॉर्पोरेट पुंजी व्यय तेज गति से बढ़ रहा है। बेरोजगारी दर 3.7 प्रतिशत के निचले स्तर पर बनी हुई है। इनमें से ऐसा कुछ भी नहीं है जो कि अमूमन मंदी की पूर्ववेला में दिखलाई देता है।
लेबर मार्केट की तंगहाली वेतन-मजदूरी की मुद्रस्फीति को बढ़ाती जरूर है लेकिन कुछ विश्लेषक अब भी उम्मीद रखे हुए हैं कि अब जब जॉब ओपनिंग्स कम हो रही हैं तो वेतन-मजदूरी की बढ़त भी थमेगी। साथ ही अनपेक्षित खुशियों के दरवाजे भी हमेशा खुले रहते हैं। ऊष्मावान सर्दियां या यूक्रेन में अमन-चैन से एनर्जी-बिलों में गिरावट आएगी, जो मुद्रास्फीति को कम करेगी और आर्थिक विकास को बढ़ावा देगी।
विशेषकर इसलिए भी क्योंकि बाजार और इकोनॉमी की दुनिया में अनपेक्षित ही स्थायी है। इसका यह मतलब है कि शायद मंदी इतनी भी अवश्यम्भावी नहीं, जितना कि बताई जा रही है।
सुरेश बाहेती
9050800888