Commercial banks controlling money creation
- May 21, 2023
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A central bank is the term used to describe the authority responsible for policies that affect a country’s supply of money and credit. The world’s oldest central bank, the bank of Swedan, was established in 1668. The Bank of England was created in 1694. Napoleon Bonaparte had set up the Banque de France in 1800. Our Reserve Bank of India (RBI) is relatively young-born in April 1935.
One common misconception is that banks act simply as intermediaries, lending out the deposits that savers place with them. Another is that the central bank determines the quantity of loans and deposits in the economy by controlling the quantity of central bank money- the so – called “money multiplier” approach. In that view, central banks implement monetary policy by choosing a quantity of reserves.
The fact is that the commercial banks create money – in the form deposits, by giving new loans. When a bank gives a loan, for example to someone taking out a mortgage to buy a house, it does not typically do so by giving her limitless money. Instead, it credits her bank account with a bank deposit of the size of the mortgage. At that moment, new money is created. For this reason, some economists have referred to bank deposits as “fountain pen money”, created at the stroke of bankers’ pens when they approve loans.
In essence, most of the money in circulation is created, not by the printing presses of the central bank, but by the commercial banks themselves. Banks create money whenever they lend to someone in the economy or buy an asset from consumers. While the central bank does not directly control the quantity of either base or broad money, it is still able to influence the amount of money in the economy by setting monetary policy.
T. Bandhopadhyay
धन सृजन को नियंत्रित करते वाणिज्यिक बैंक
केंद्रीय बैंक वह शब्द है जिसका उपयोग उन नीतियों के लिए जिम्मेदार, प्राधिकरण का वर्णन करने के लिए किया जाता है जो किसी देश की मुद्रा और जमा धन की आपूर्ति को प्रभावित करते हैं। दुनिया के सबसे पुराने केंद्रीय बैंक, बैंक आॅफ स्वीडन की स्थापना 1668 में की गई थी। बैंक आॅफ इंगलैंड 1694 में बनाया गया था। नेपोलियन बोनापार्ट ने 1800 में ‘बैंक डी फ्रांस‘ की स्थापना की थी। हमारा भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अपेक्षाकृत नया है और अप्रैल 1935 में इसकी स्थापना हुई थी।
एक सामान्य भ्रांति यह है कि बैंक सामान्य रूप से मध्यस्थों के रूप में कार्य करते हैं और बचतकर्ताओं की जमा राशि को ही अन्य लोगों को उधार देेते हैं। दुसरी गलत धारणा यह है कि केंद्रीय बैंक, वास्तव में केंद्रीय बैंक की मुद्रा की मात्रा को नियंत्रित करके अर्थव्यवस्था में ऋण और जमा की मात्रा निर्धारित करता है जो तथाकथित तौर पर ‘मनी मल्टीप्लायर‘ दृष्टिकोण है। उस दृष्टिकोण के लिहाज से केंद्रीय बैंक, आरक्षित नकदी की मात्रा चुनकर मौद्रिक नीति पर अमल करते है।
तथ्य यह है कि वाणिज्यिक बैंक मुद्रा का सृजन करते हैं और यह नए ऋण देकर और बैंक जमाओं के रूप में होता है। जब एक बैंक ऋण देता है तब यह किसी को असीमित पैसा नही देता है और उदाहरण के तौर पर घर खरीदने वाले व्यक्ति से गिरवी रखवाया जाता है। यह गिरवी चीजों की मात्रा के आधार पर बैंक जमा को उसके बैंक खाते में डालता है। इसी समय एक नई मुद्रा का सृजन हो जाता है। इस कारण से, कुछ अर्थशास्त्रियों ने बैंक जमा का संदर्भ ‘फाउटेंन पेन मनी‘ के रूप में दिया है जिसका सृजन बैंकरों द्वारा ऋण की मंजूरी देने के साथ ही हो जाता है।
संक्षेप में, प्रचलन की अधिकांश मुद्रा का सृजन केंद्रीय बैंक के प्रिंटिंग प्रेस में छपने से नहीं बल्कि वाणिज्यिक बैंकों द्वारा होता है। बैंक जब भी अर्थव्यवस्था में किसी को उधार देते हैं या ग्राहकों से संपत्ति खरीदते हैं तब वे मुद्रा का सृजन करते हैं। केंद्रीय बैंक सीधे तरीके से जमाओं वाली मुद्रा या ऋण मुद्रा की मात्रा को नियंत्रित नहीं करते हैं लेकिन फिर भी यह मौद्रिक नीति निर्धारित करके अर्थव्यवस्था में मुद्रा की मात्रा को प्रभावित करने में सक्षम हैं।