Economy back on track
- June 23, 2022
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Undoubtedly, the central government’s schemes contribute a lot to the economy, but at the same time the states’ own economic plans also give momentum to it. For the economy to grow continuously, it is necessary that the citizens of the country should avoid adopting the jugaad culture. This culture thrives on the avoidance of rules and regulations. This can save people’s time or money, but due to this, the economy suffers somewhere.
The cost of logistics in our country is much higher than in all other economies of the world. At present, the system of sending goods by trucks needs a lot of improvement.
The central government has implemented the smart city scheme, but it is not showing any significant effect. With the chaotic development in the cities, encroachment is increasing. Due to this the traffic moves slowly and pollution increases. This increases the stress in people’s life, which affects their health. All these have far-reaching effects on the economy.
The state governments are directly responsible for improving the conditions of the cities, but they keep quite due to vote bank politics. They have to understand that merely building some flyovers in the name of development is not going to work. Experts believe that India’s economy has the potential to run at eight-nine percent for the next decade and a half. It can be easily reached up to 11-12 percent, but in this the state governments as well as the common citizens will have to contribute. Common people have to understand that a new dimension can be given to the economy only by following the rules and regulations. When the common citizen tries to escape from the benefits-laws, it has a negative effect on the economy.
Even after the economy affected by Covid is back on track, the crisis is not over yet. The epidemic is raising its head anew in China along with all the rich and especially western countries of the world. India’s economy is largely dependent on the global economy, so it is natural to be affected by the conditions of other countries. Due to the deepening of corona infection in China, there has been a shortage of sea containers. This is also affecting the economy of India.
In order to keep the economy growing at the rate of eight-nine percent for a long time, India had made several plans to reduce dependence on Chinese goods, but they do not seem to be working so far. India will have to manufacture maximum items of its own needs while reducing imports from China. Simultaneously, it will have to expand its reach to the market where China dominates. This can also reduce the dependence of the world community on China. If this can be done, then surely the time will come for India. If so, all possible measures should be taken for this.
पटरी पर लौटती अर्थव्यवस्था
निसंदेह अर्थव्यवस्था में केंद्र सरकार की योजनाओं का बहुत बड़ा योगदान होता है, लेकिन इसी के साथ राज्यों की अपनी आर्थिक योजनाएं भी उसे गति प्रदान करती है। अर्थव्यवस्था लगातार बढ़े, इसके लिए यह जरूरी होता है कि देश के नागरिक जुगाड़ संस्कृति अपनाने से बचें। यह संस्कृति कायदे कानुनों से बचने के फेर में पनपती है। इससे लोगों का समय या पैसा तो बच सकता है, पर इसके कारण कहीं न कहीं अर्थव्यवस्था को नुकसान होता है।
अपने देश में लॉजिस्टिक की लागत विश्व की तमाम अन्य अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में कहीं अधिक है। वर्तमान में ट्रकों से माल भेजने की जो व्यवस्था है, उसमें अभी बहुत सुधार की आवश्यकता है।
केंद्र सरकार ने स्मार्ट सिटी योजना को लागू अवश्य किया है, पर इसका कोई खास असर देखने को नहीं मिल रहा है। शहरों में अराजक विकास के साथ अतिक्रमण बढ़ रहा है। इसके कारण ट्रैफिक धीमे चलता है और प्रदूषण बढ़ता है। इससे लोगों के जीवन में तनाव बढ़ता है, जो उनकी सेहत पर असर डालता है। इन सबका दूरगामी प्रभाव अर्थव्यवस्था पर पड़ता है।
शहरों की स्थितियां सुधारने का सीधा दारोमदार राज्य सरकारों पर है, लेकिन वे वोट बैंक की राजनीति के कारण हाथ पर रखकर बैठी रहती हैं। उन्हें समझना होगा कि विकास के नाम पर कुछ फ्लाईओवर बना देने भर से काम चलने वाला नहीं है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की अर्थव्यवस्था अगले एक-डेढ़ दशक तक आठ-नौ प्रतिशत की दर से चलने की क्षमता रखती है। इसे आराम से 11-12 प्रतिशत तक पहुंचाया जा सकता है, लेकिन इसमें राज्य सरकारों के साथ-साथ आम नागरिकों को भी अपना योगदान देना होगा। आम लोगों को यह समझना होगा कि कायदे-कानूनों पर चलकर ही अर्थव्यवस्था को एक नय़ा आयाम दिया जा सकता है। जब आम नागरिक फायदे-कानूनों से बचने की कोशिश करता है तो इससे अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ता है।
कोविड से प्रभावित अर्थव्यवस्था के पटरी पर आने के बाद भी संकट अभी पूरी तरह टला नहीं है। विश्व के तमाम संपन्न और खासकर पश्चिमी देशों के साथ चीन में महामारी नए सिरे से सिर उठा रही है। भारत की अर्थव्यवस्था काफी हद तक वैश्विक अर्थव्यवस्था पर निर्भर है, इसलिए अन्य देशों की स्थितियों का असर उस पर भी पड़ना स्वाभाविक है। चीन में कोरोना संक्रमण गहराने के कारण समूद्री कंटेनर की किल्लत हो गई है। इसका भी असर भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है।
अर्थव्यवस्था लंबे दौर तक आठ-नौ प्रतिशत की दर से बढ़ती रहे, इसके लिए भारत ने चीनी वस्तुओं पर निर्भरता कम करने की तमाम योजनाएं बनाई थी, लेकिन वे अभी तक कारगर साबित होती नहीं दिख रही हैं। भारत को चीन से आयात कम करने के साथ अपनी जरूरत की अधिकतम वस्तुओं का निर्माण खुद करना होगा। इसी के साथ उसे उस बाजार तक अपनी पहुंच बढ़ानी होगी, जहां चीन का दबदबा है। इससे विश्व समुदाय की चीन पर निर्भरता को भी कम किया जा सकता है। यदि ऐसा किया जा सके तो निश्चित तौर पर आने वाला समय भारत का होगा। ऐसा ही हो, इसके लिए हर संभव उपाय किए जाने चाहिए।