Epidemic : Restrictions and their Value
- April 30, 2021
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When the hard times started last year, we were wrestling to calm down. Frustration was prevailing all around while we were locked in closed doors. Inspite of fear, we were acquiring strength to struggle. Could not imaging how time eloped, talking about vaccine and medicine. It is a hard fact, all precautions vanished with unlocking.
Who was aware that final was yet to come. We are all combined with each other, nothing can we do alone. It is not enough to take care of ourselves, it relates to protecting others also.
People have been emotionally exhausted following physical distance for many months and it was accompanied by financial stress. Everyone is eager to capitalize on every business opportunity to bring income back to the old level. It will happen at a cost of precautions.
Companies should also keep in mind the possibility that governments will lockdown again. It would be prudent to look at the lessons from the previous experience of the lockdown and on the basis of this, one can be better prepared for such situations in future as well.
Companies should assume that the economic stresses related to Kovid-19 will not end soon and it will continue to hover over the new financial year. The practice of working from homes outside the fixed office structure was no exception, it would be an ongoing part of the modern workplace. Therefore, there is a need to define procedures according to the working environment. Companies should try to run a special campaign to vaccinate their families, besides their employees and customers, because this is the right way to restore normalcy.
Working with social distance, adult immunization campaigns and door temperature screening are a permanent part of the new era.
For policy-makers sitting within the government, strict lockdown is like a security theater but it is left behind in the analysis of capital gains. The test figures are exaggerating the second wave. It is far better to make the use of common health equipment like masks compulsive.
Infectious diseases bring countless lessons. When the global epidemic will come to an end, then only we will know what has been changed – in our lives, inside and outside. It is time to be alert.
When it was accessible to breathe in the open air, opportunities were available at every moment to further enhance the green nature, there was plenty of time to maintain and save our health, then the focus was somewhere else. Restrictions are reminding them of their value. Time has come for the learning again. Must learn.
Just as it is our right to earn money but if there is any loss, then it has to be taken easily. The market should not be blamed for it. There is only one cure for all problems – growth. Economists have assumed that the Indian economy will overtake China in the next 15–20 years. India can do this because it is a democratic country and this is its biggest strength.
Suresh Bahety
9050800888
महामारी : बंदिशें और उनकी कीमत
जब मुश्किल का दौर शुरू हुआ था, तब तक कसमसाहट थी। घर में बंद होने के कारण एक छटपटाहट। भय था, लेकिन छूट निकलने की इच्छा कहीं अधिक प्रबल थी। लाॅकडाउन के पहले-दूसरे चरण गिनते हुए कभी वैक्सीन की बात करते, कभी दवा की, कब समय गुजर गया, पता ही नहीं चला फिर अनलाॅक होते ही सारे गम हवा हो गए।
लेकिन दौरे-इम्तेहां अभी बाकी था, यह कौन जानता था। हम कड़ियों से आपस में जुड़े हैं, अकेले कुछ भी नहीं हैं। जो हैं, सब मिलकर, साथ में हैं। अपनी परवाह ही काफ़ी नहीं है, दूसरों की रक्षा भी उससे जुड़ी है।
लोग कई महीनों से शारीरिक दूरी का पालन करते-करते भावनात्मक तौर पर थक चुके है और इसके साथ आर्थिक तनाव भी है। आय को पुराने स्तर पर लाने के लिए हर कोई हर कारोबारी मौके को भुनाने के लिए लालायित है। यह एहतियातों की एक कीमत पर हुआ है।
कंपनियों को इस संभावना को भी ध्यान में रखना चाहिए कि सरकारें फिर से लाॅकडाउन कर देंगी। लाॅकडाउन के पिछले अनुभव से मिले सबक पर गौर करना समझदारी होगी और इसके आधार पर भविष्य में भी ऐसी हालात के लिए कहीं बेहतर ढंग से तैयार रहा जा सकता है।
कंपनियों को यह मानकर चलना चाहिए कि कोविड-19 से जुडे़ आर्थिक तनाव जल्दी खत्म नहीं होंगे और नए वित्त वर्ष पर भी इसका साया मंडराता रहेगा। दफ्तर के तय ढांचे से इतर घरों से काम करने का चलन महज अपवाद नहीं था, यह आधुनिक कार्यस्थल का एक अनवरत अंग होगा। लिहाजा उस कामकाजी परिवेश के हिसाब से प्रक्रियाएं भी निर्धारित करने की जरूरत है। कंपनियों को अपने कर्मचारियों और ग्राहकों के अलावा उनके घरवालों के टीकाकरण के लिए खास अभियान चलाने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि सामान्य स्थिति की बहाली का यही सही रास्ता है।
दूर रहते हुए काम करना, वयस्क टीकाकरण अभियान एवं दरवाजों पर तापमान की स्क्रीनिंग नए दौर का स्थायी भाव है।
सरकार के भीतर बैठे नीति-निर्माताओं के लिए सख्त लाॅकडाउन लगाना सुरक्षा रंगमंच जैसा है लेकिन पंुजीगत लाभ के विश्लेषण में यह बहुत पीछे छूट जाता है। परीक्षण आंकड़े दूसरी लहर को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहे हैं। मास्क जैसे आम स्वास्थ्य उपकरण के इस्तेमाल को बाध्यकारी बनाना कहीं बेहतर है।
संक्रामक रोग अनगिनत सबक लेकर आते हैं। वैश्विक स्तर पर आई महामारी जब विदा होगी, तब हम जानेंगे कि क्या कुछ बदल गया- हमारे जीवन में, हमारे भीतर-बाहर। यह सजग रहने की चेतावनी देता समय है।
खुली हवा में सांस लेना जब सुलभ था, हरी-भरी प्रकृति को और संवारने के मौके हर पल मौजूद थे, सेहत को संभालने-सहेजने का भरपूर समय था, तब ध्यान कहीं और था हमारा। बंदिशें याद दिला रही हैं उनकी कीमत। समय फिर सिखने वाले रूख में आ चुका है। सीखना जरूर होगा।
जिस तरह पैसे कमाना हमारा हक है, उसकी तरह यदि कभी नुकसान होता है तो उसे भी सहजता से लेना है। इसके लिए बाजार को दोषी नहीं ठहराना चाहिए। सभी समस्याओं का एक ही इलाज है-ग्रोथ। अर्थशास्त्रियों ने माना है कि अगले 15-20 साल में भारतीय अर्थव्यवस्था चीन से आगे निकल जाएगी। भारत ऐसा कर सकता है क्योंकि यह लोकतांत्रित देश है और यही इसकी सबसे बड़ी ताकत है।