gurpreet kataria

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लॉकडाउन से निकलने का एक ही उपाय अभी उत्पादन न किया जाए : गुरप्रीत कटारिया 


पंजाब के प्लाइवुड संचालक गुरप्रीत कटारिया से बातचीत, जब तक दुकान न खुल जाए, तब तक उत्पादन शुरू करना तर्क संगत नहीं


क्या तीन मई को काम शुरू कर रहे हैं ?

तीन मई तक तो कर्फूय है। इसलिए इकाई चल नहीं सकती। अभी तक तो इस दिशा में सोचना भी सही नहीं है। यूं भी जिस तरह का माहौल बन गया, इसमें सबसे पहले तो लोगों को रोटी का प्रबंध करना है। इसके बाद वह कपड़े पर खर्च करेंगे। तब तीसरे नंबर पर मकान आता है। यानी कहने का मतलब यह है कि अभी उत्पादन शुरू करने का कोई लाभ नहीं है। क्योंकि डिमांड ही नही है। इसलिए ऐसा लगता है कि जुलाई से पहले डिमांड नहीं आएंगी। तब तक प्लाइवुड इंडस्ट्री को इंतजार करना चाहिए।

तो तब तक प्लाइवुड संचालक करें क्या?

तब तक इकाई संचालकों को चाहिए कि वह कच्चा माल जैसे कि लकड़ी आदि खरीद लें। इस मौके पर प्लाइवुड संचालकों के लिये सहीं यह है कि वह तैयार माल को मार्केट में खपा दें। दूसरी ओर ज्यादा से ज्यादा लकड़ी खरीद लें। कोशिश यह करनी चाहिए कि लकड़ी सस्ती खरीदी जाये। इससे इंडस्ट्री को जो नुकसान हुआ है,कुछ हद तक उसकी भरपाई हो सकती है। इसके लिए सभी एसोसिएशन की सहमति जरूरी है।

मौजूदा समय में प्लाइवुड इंडस्ट्री कैसे मजबूत हो सकती है ?

इसके लिए सबसे पहले तो कोशिश यह होनी चाहिए कि रॉ मैटिरियल के दाम कम से कम हो। इसके साथ ही तैयार माल के दाम दस से लेकर पंद्रह प्रतिशत तक बढ़ाने चाहिए। तब कहीं जाकर इंडस्ट्री इस नुकसान से उभर सकती है। यूं भी मई से लकड़ी मार्केट में आना शुरू हो जायेंगी। क्योंकि तब तक प्लाइवुड इकाई चलेंगी नहीं,इसलिए लकड़ी थोड़ी सस्ती मिल सकती है। इसके बाद बरसात के सीजन में क्योंकि लकड़ी आती नहीं है। इसलिए इंडस्ट्रिलिस्ट को चाहिए कि इस वक्त वह लकड़ी ज्यादा से ज्यादा खरीद लें। अभी उत्पादन रोकने के पीछे एक और वजह है, वह यह है कि इस वक्त दुकानदारों के पास जो माल पड़ा है, वह बिक जाना चाहिए। इसके बाद अपने आप बाजार में मांग बढ़ेगी। तब उत्पादन शुरू करना ही सही रहेगा।

क्या एमपी, महाराष्ट्र और राजस्थान के बंद होने का असर पड़ सकता है ?

निश्चित ही इसका असर पड़ेगा। लेकिन इसके बाद भी एक संभावना है। वह यह है कि यूपी में प्लाइवुड इकाई के जितने लाइसेंस दिए गए थे, वह एनजीटी ने रद्​द कर दिए है। यूपी की जो बाकी प्लाइवुड इंडस्ट्री है, वह भी अपनी क्षमता का आधा ही उत्पादन कर रही है। इससे जो यह लगता था कि बाजार में मांग से ज्यादा सप्लाई हो जायगी, कम से कम इस स्टेज पर ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है। फिर भी जब तक सभी राज्यों में हालात सामान्य नहीं हो जाते तब तक सभी प्लाइवुड संचालकों को सोच समझ कर कदम उठाना चाहिए।

मजदूरों की स्थिति क्या रहेगी?

देखिये जिस दिन लॉकडाउन खत्म होगा, उसी दिन लेबर अपने अपने घरों की ओर रवाना हो जायेंगी। ऐसे में चाहिए यह कि लेबर को घर जाने दिया जाना चाहिए। वह पहली मई को निकल जाए, 30 मई या जून के पहले सप्ताह में आ जाए। यूं भी ज्यादातर लेबर घर चली गयी। अभी एक माह तक वेट एंड वॉच की स्थिति होनी चाहिए। अभी बायलर चलाने से बचना चाहिये। इससे यह फायदा होगा कि एक तो लकड़ी सस्ती मिल जायेगी, दूसरा मार्केट में मांग बढ़ने से प्लाइवुड का यदि रेट बढ़ जाता है, तो जो नुकसान है उसकी भरपायी हो सकती है। हम पंजाब में इस मसले पर आवाज उठाने जा रहे है। एसोसिएशन में यह मामला उठाया जायेगा। हमें आल इंडिया स्तर पर एक बैठक करनी चाहिए। इसमें हर किसी के विचार को शामिल किया जाए। जिससे इस समस्या से निकलने का कोई साझा कार्यक्रम तैयार किया जा सके।

 सरकारी कांसेप्ट भी ऐसा रहेगा कि मई में प्लाइवुड इकाई न चले?

हमें चलानी ही नहीं चाहिए। हमें यहीं कहना चाहिए कि हम मई में इकाई नहीं चलायेंगे। इससे बाजार में यह संदेश जायेंगा कि हम सभी एक है। इसके लिए मई में यह संदेश दे देना चाहिए कि हम प्लाइवुड के दस से 15 प्रतिशत रेट बढ़ा कर ही इकाई चलायेंगे। इससे होगा यह कि बाजार भी बढ़े रेट के लिए तैयार हो जाएगा। इससे हम बाजार में यह बात भी रख सकते हैं कि इस बार लॉकडाउन की वजह से रेट बढ़ाने पड़ रहे हैं। इससे होगा यह कि कस्टमर भी तैयार हो जायेगा। एक माह में हम यह करने में सक्षम हो पायेंगे।

क्या इसका नेगटिव संदेश नहीं जाएगा ?

नहीं ऐसा नहीं है, क्योंकि बंद फैक्टरी में हम सब खर्च वहन कर रहे हैं। 18 माह से प्लाइवुड इंडस्ट्री घाटे में चल रही है। क्योंकि पॉपलर के रेट बढ़ रहे हैं। हम पहले ही नुकसान में हैं। हम यदि लकड़ी खरीद को इस तरह से करें कि कच्चा माल सस्ता मिल जाए तो यह इंडस्ट्री के लिए फायदे की बात हो सकती है। इसके लिए सभी प्लाइवुड संचालकों को सर्वसम्मति से निर्णय लेना चाहिए।

प्लाइवुड के एक्सपोर्ट की क्या संभावना है?

अब कोरोना की वजह से चीन के माल पर अंतरराष्ट्रीय बाजार ज्यादा नहीं टिक जाएगा। निश्चित ही हमें इस दिशा में काम करना चाहिए कि हम अपने प्लाइ को अंतरराष्ट्रीय बाजार में उतार सके। हमें भी अब सोचना होगा कि चीन से जो कच्चा माल हम मंगाते थे, उसे अब मंगाना बंद कर दिया जाना चाहिए। यदि पचास प्रतिशत भी ऐसा हो गया तो भारतीय प्लाइवुड की मांग बढ़ सकती है।

हमारे रेट कम है, इसके बाद भी एक्सपोर्ट में हम क्यों नहीं टिक पा रहे ?

इसका सीधा कारण यह कि चीनी सरकार वहां की प्लाइवुड एक्सपोर्ट को सपोर्ट करती है। चीनी एक्सपोर्ट में देश के हिसाब से क्वालिटी तय करते है। यदि अमेरिका में माल जाना है तो गुणवत्ता बेहतर कर देते हैं। यदि भारत में आ रहा है तो वह गुणवत्ता कम कर लेते हैं। यहां तक की वह कम रेट पर भी माल निर्यात कर देते हैं।