Industrialists and progressive farmers will grow plants on government land: new experiment in Punjab
- May 20, 2023
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What are you doing new for Agro Forestry?
A new experiment is being done in Punjab to ensure that sufficient wood is available for plywood. In Punjab, the government has more than 1.5 lakh acres of land, which is not being used in any way. Permission has been sought from the government to make this land available on contract to plywood industrialists and progressive farmers for plantation. Now if this experiment is successful then saplings will be planted on this land. Punjab can become a role model in this direction.
Definitely this is a good experiment; please elaborate a bit more about this.
Now see, the way there is a shortage of wood, new experiments will have to be done. We have requested the Punjab government and the government is working on this. This land will be auctioned, whoever bids more will get the land. Two types of people can get this land. Either who have experience of running a factory for five years, or have five years of nursery experience. An Agro forestry Board will be formed for this. In this, industrialists and farmers will be included along with the officers of the department, Panchayat and Rural Development Department, provision is made in this that small industrialists can also get land as well as big industrialists. Then only it can benefit the entire industry.
We have given a proposal on our part, now it remains to be seen how long it takes for the government to implement it. The government is adopting a positive attitude regarding this. Hopefully, work on this will start soon.
It is also believed that even from 2024 poplar wood will start coming from agro forestry.
It seems, but it’s not happening in reality. The way the market is changing these days, we have to prepare for it. At least Plantations for wood is done in North India. But the problem in South India is that the wood is being grown keeping wood pulp in mind. Palm saplings are being subsidized there. Because of this, there is no attention of farmers for eucalyptus and poplar.
MDF units are growing rapidly. As more the units of MDF comes, the shortage of wood may increase further. Because even young plants can be used in MDF. Plywood seems to have three problems with MDF. The first is that MDF is cheaper than plywood, so cost can be an issue. Another problem is, the growing demand for MDF is eating the market share of plywood. In OEM, the price matters, not the brand. Particle and MDF units of small sizes are coming. Obviously, this will increase the total supply of these products in the market. The third problem may come with raw material.
What do you think about plywood in this environment?
This is a difficult phase in plywood, which may last at least two years. This is a time of change. We have to work carefully in it. Because it is becoming difficult to run the factory. The plywood manufacturer is now struggling to sustain itself in the market. It is becoming difficult to stay in business. An atmosphere of fear has been created. There is loss. Production has reduced by 50 percent. Because many units are closed. Units which are running have reduced the production. The shortage of wood is believed to be a major reason for this.
Did this problem occur suddenly or it is for some other reason?
This problem is also the result of non planning. Manufacturers increased the production capacity watching each other. Too much money was spent on machines. There was a hope that everything would be fine in the future. But this did not happen. The plywood from Nepal has furthered the challenge to whatever was left. It is reaching very cheap. The market which was in the hands of carpenters went into the hands of OEMs.
Carpentry work in the flats has also reduced for carpenters . The interior designer has set up their own small unit. The lesser the role of the carpenter, the more the plywood may face problems in the market.
If there is competition itself in MDF, can plywood get benefit from it?
No, if there is mutual competition within MDF, even then also plywood does not seem to get its benefit. It would not be wrong to say that at present the entire plywood industry is in trouble. Plywood industry is working without license in many States. They deal in business without any proper bill instead of GST. As a result, the cost of production of the goods they produce is low. On the other hand, industrialists who are working by the rules, pay all kinds of taxes, use technical urea, have to bear higher cost of production.
Now the dealer wants the goods at the same low price, which is not possible. This is a big problem. Who will stop them? So this is new pressure in the market.
Overall, now plywood manufacturers will have to do new experiments. Only then he can come out of this difficult time and write a story of a bright future.
सरकारी जमीन पर उद्योगपति और प्रगतिशील किसान उगाएंगे पौधेः पंजाब में नया प्रयोग
एग्रोफोरेस्ट्री में नया क्या कर रहे हैं?
प्लाइवुड को पर्याप्त लकड़ी उपलब्ध हो, इसे लेकर पंजाब में नया प्रयोग हो रहा है। पंजाब में सरकार के पास डेढ़ लाख एकड़ से अधिक जमीन है, जिसका किसी भी तरह से प्रयोग नहीं हो रहा है। हमने सरकार से इजाजत मांगी है कि इस जमीन को पौधारोपण के लिए प्लाईवुड उद्योगपतियों व प्रगतिशील किसानों को ठेके पर उपलब्ध करा दें। अब यदि यह प्रयोग सफल हो जाता है तो इस जमीन पर पौधारोपण किया जाएगा। पंजाब इस दिशा में प्रेरणा स्त्रोत बन सकता है।
निश्चित ही यह अच्छा प्रयोग है, इस बारे में थोड़ा और विस्तार से बताएं
अब देखिए जिस तरह सेलकड़ी की कमी आ रही है, इसके चलते प्रयोग तो करने ही होंगे। हमने पंजाब सरकार से आग्रह किया है और सरकार इस पर काम कर रही है। इस जमीन की नीलामी होगी, जो ज्यादा बोली देगा, उसे जमीन मिल जाएगी। यह जमीन दो तरह के लोगों को मिल सकती है। या तो पांच साल फैक्टरी चलाने का अनुभव हो, या फिर पांच साल का नर्सरी का अनुभव हो। इसके लिए एक एग्रोफोरेस्ट्री बोर्ड बनाया जाएगा। इसमें विभाग के अधिकारी, पंचायत व ग्रामीण विकास विभाग के साथ साथ उद्योगपति और किसानों को इसमें शामिल किया जाएगा। इसमें प्रावधान इस तरह से किया गया है कि छोटे उद्योगपति को भी जमीन मिल सके, बड़े उद्योगपति को भी। तभी तो इससे पूरे उद्योग का भला हो सकता है।
हमने अपी ओर सेप्रस्ताव दे दिया है, अब देखना यह है कि सरकार इस पर कितने तेजी से अमल करती है। सरकार इसेलेकर सकारात्मक रूख अपना रही है। उम्मीद है, इस पर जल्दी ही काम शुरू हो जाएगा।
ऐसा भी माना जा रहा हैकि 2024 से तो एग्रोफोरेस्ट्री से भी पोपलर की लकड़ी आना शुरू हो जाएगी
ऐसा लगता है, लेकिन हकीकत में होता दिख नहीं रहा है। जिस तरह से इन दिनों बाजार में बदलाव आ रहे हैं, हमें इसके लिए तैयारी करनी होगी। उत्तर भारत में फिर भी पौधा रोपण हो रहा है। दक्षिण भारत में यह समस्या यह है कि वहां लकड़ी पल्प (लुगदी) को ध्यान में रख कर उगाई जा रही है। वहां पाम के पौधों को अनुदान दिया जा रहा है। इस वजह से वहां सफेदे और पॉपुलर की और किसानों का ध्यान नहीं है।
इधर एमडीएफ तेजी से बढ़ रहा है। जितनी इकाई एमडीएफ की आएगी, इससे लकड़ी की कमी और बढ़ सकती है। क्योंकि एमडीएफ में तो छोटी उम्र के पौधे भी इस्तेमाल हो सकते हैं। एमडीएफ से प्लाईवुड को तीन तरह की दिक्कत आती नजर आ रही है। पहला तो यह हैकि एमडीएफ प्लाइवुड से सस्ता पड़ता है, इसलिए कीमत को लेकर समस्या आ सकती है। दूसरी समस्या यह है, एमडीएफ की बढ़ती मांग प्लाइवुड के बाजार हिस्से को कब्जा रही है। ओईएम में कीमत मायने रखती है, ब्रांड नहीं। पार्टिकल और एमडीएफ के छोटे छोटे यूनिट आ रहे हैं। जाहिर है, इससे बाजार में इनकी आपूर्ति बढ़ेगी। तीसरी दिक्कत कच्चे माल को लेकर आ सकती है।
इस परिवेश में प्लाईवुड को लेकर क्या सोचते हैं
प्लाइवुड मेंयह दिक्कत वाला दौर है, जो अभी दो साल तो कम से कम रह सकता है। यह बदलाव का दौर है। इसमें संभल कर ही काम करना होगा। क्योंकि फैक्ट्री चलाना मुश्किल हो रहा है। प्लाइवुड निर्माता अब बाजार में खुद को बचा कर रखने की जद्दोजहद कर रहा है। काम में बने रहना मुश्किल हो रहा है। डर का माहौल बना हुआ है। नुकसान हो रहा है। 50 प्रतिशत उत्पादन कम हो गया है। क्योंकि बहुत सी यूनिट बंद हो गई। जो चल रही है, उन्होने उत्पादन कम कर दिया है। इसके लिए लकड़ी की कमी बड़ी वजह मानी जा रही है।
क्या यह समस्या अचानक आई या इसकी कुछ और वजह मानी जाए
यह समस्या इसलिए भी आई क्योंकि प्लानिगं नहीं की। एक दसूरे की देखा देखी में उत्पादन क्षमता बढ़ा ली। मशीनों पर ज्यादा खर्च कर दिया गया। एक उम्मीद थी कि भविष्य में सब ठीक हो जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। रही सही कसर नेपाल के प्लाईवुड नेपूरी कर दी। वह बहुत सस्ता पड़ रहा है। कारपेंटर के हाथ मेंजो मार्केट थी वह ओईएम के हाथ में चली गई। फ्लैटों में भी कारपेंटर का काम कम हो गया है।
इंटीरियर डिजाइनर ने अपनी छोटी छोटी यूनिट लगा ली है। कारपेंटर का जितनी भूमिका कम होगी, उतना ही बाजार में प्लाईवुड को दिक्कत आ सकती है।
एमडीएफ में यदि आपसी प्रति स्पर्धा होती है तो इससे प्लाईवुड को लाभ मिल सकता है क्या?
नहीं, एमडीएफ में यदि आपसी प्रतिस्पर्धा होती है तो इसका लाभ भी प्लाईवुड को मिलता नजर नहीं आ रहा है। कहना गलत नहीं होगा कि इस वक्त पूरा प्लाइवुड उद्योग दिक्कत में हैं। कई राज्यों में प्लाइवुड उद्योग बगैर लाइसेंस के काम कर रहे हैं। वह जीएसटी की बजाय बिना बिल के काम कर रहे हैं। इससे हो यह रहा है कि वह जो माल तैयार करते हैं, उसकी उत्पादन लागत कम हो जाती है। दूसरी ओर जो उद्योगपति नियमों के तहत काम कर रहा है, हर तरह का टैक्स देते हैं, टेक्निकल यूरिया प्रयोग करते हैं, उनकी उत्पादन लागत बढ़ जाती है।
अब डीलर चाहता है कि वह भी उसी कम कीमत पर माल दें, जो उनके लिए संभव नहीं है। यह बड़ी समस्या है। उन पर रोक कौन लगाएगा? इसलिए बाजार में यह नया दबाव है।
कुल मिला कर अब प्लाईवुड निर्माता को नए प्रयोग करने ही होंगे। तभी वह इस मुश्किल वक्त से बाहर निकल कर एक सुखद भविष्य की इबारत लिख सकते हैं।