An important and potent channel of monetary policy transmission is the housing market. Weakness in housing demand triggered by higher interest rates is an important contributor to the intended slowdown in overall economic activity.
This is particularly so in economies, where real estate is formalised, and mortgages are 30 per cent to 60 per cent of banking credit. There are several intuitive reasons for this. Not only is housing an important source of economic demand, accounting for 10 per cent to 24 per cent of gross domestic product (GDP), but it is also an important asset for most households. Most importantly, being a long-term asset, its value is highly sensitive to interest rates.

A large part of business capital is competitive in nature and relatively short-lived, so the cost of financing is a relatively small factor while making investment decisions.
As house prices fall back to or below trend, two risks emerge: Slower growth and financial market stress. A 20 per cent price drop would mean a distressed mortgage.
However, housing starts are now 20 per cent below the October 2022 peak, and if patterns seen over the past five decades are a guide, should fall further. Given the seven months, on average, taken to build a house, the number of units under construction, which determine home-building’s contribution to GDP, are now correcting from a record high, and are likely to fall substantially. With sales volumes now the lowest in nearly a decade, home listings with price drops are at a 10-year high and rising.
It is important to look at nominal and real house price trends separately. High inflation, particularly in rents, means nominal house prices need to fall less.
The severity of macroeconomic impact hinges on the extent and pace of correction in housing prices. If they fall gradually, and most of the decline is in real terms and not nominal, financial stability should remain intact even as growth weakens. However, if house prices fall more than 15 per cent in nominal terms, there could be financial stability concerns as well in some major markets.
These concerns are less relevant in India, where the market is recovering from a decade-long downturn, housing is not fully financialised, rental yields matter less, and mortgages are only a sixth of financial assets. However, India would not be immune to weaker global growth and the risk of financial instability.
N.K. Mishra


क्या रियल एस्टेट ब्याज दर के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है?


आवास बाजार मौद्रिक नीति के प्रयास का एक महत्वपूर्ण और अहम माध्यम है। ऊंची ब्याज दरों के कारण आवास मांग में कमी से समग्र आर्थिक गतिविधियों में गिरावट आती है।
विकसित बाजारों में यह बात खासतौर पर सही है जहां अचल संपति कारोबार संगठित है। आवास न केवल आर्थिक मांग का एक अहम जरिया है जो सकल घरेलू उत्पाद में 10 से 24 फीसदी का योगदान देता है बल्कि वह अधिकांश परिवारों के लिए एक संपति भी है। दीर्घकालिक संपति होने के नाते इसका मूल्य ब्याज दरों को लेकर अत्यधिक संवेदनशील है।
दूसरी ओर कारोबारी पूंजी का बड़ा हिस्सा प्रतिस्पर्धी प्रकृति का है और अल्पकालिक होता है। ऐसे में निवेश के निर्णय लेते समय फाइनैंसिंग की लागत अपेक्षाकृत छोटा कारक होती है।
जब कीमतों में दोबारा कमी आई तो दो जोखिम उत्पन्न हुएः धीमी वृद्धि और वित्तीय बाजारों का तनाव। कीमतों में 20 फीसदी गिरावट का अर्थ है कर्ज का संकटग्रस्त हो जाना।
बरहाल, नए शुरू होने वाले मकान, अक्टूबर 2022 के उच्चतम स्तर से 20 फीसदी नीचे हैं और अगर बीते पांच दशकों के रुझान को संकेत माना जाए तो इनमें और गिरावट आएगी। अगर मान लिया जाए कि एक मकान को बनाने में औसतन सात महीने का वक्त लगता है तो निर्माणाधीन मकानों की तादाद जो जीडीपी में मकानों के निर्माण के योगदान को निर्धारित करती है, उनमें अब रिकाॅर्ड स्तर से कमी आ रही है।
वर्तमान कीमतों (नाॅमिनल) और वास्तविक आवास कीमतों के रुझान पर अलग से नजर डालना महत्वपूर्ण है। उच्च मुद्रास्फीति, खासकर किरायों में इजाफंे का अर्थ यह है कि नाॅमिनल आवास कीमतें कम गिरेंगीं।
व्यापक आर्थिक प्रभाव की गंभीरता आवास की कीमतों में सुधार की सीमा और गति पर निर्भर करती है। यदि वे धीरे-धीरे गिरते हैं, और अधिकांश गिरावट वास्तविक रूप में है और नाममात्र की नहीं है, तो विकास कमजोर होने पर भी वित्तीय स्थिरता बरकरार रहनी चाहिए। हालांकि, अगर घर की कीमतों में मामूली रूप से 15 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आती है, तो कुछ प्रमुख बाजारों में वित्तीय स्थिरता की चिंता भी हो सकती है।
ये चिंताएं भारत में कम प्रासंगिक हैं, जहां बाजार एक दशक लंबे मंदी से उबर रहा है, आवास पूरी तरह से वित्तीयकृत नहीं है, किराये की पैदावार कम मायने रखती है, और बंधक वित्तीय संपत्तियों का केवल छठा हिस्सा है। हालांकि, भारत कमजोर वैश्विक विकास और वित्तीय अस्थिरता के जोखिम से मुक्त नहीं होगा।

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