Proposed changes to curb fake Billing

Finance Minister, Nirmala Sitharaman once said that to increase tax collection, the number of taxpayers would have to be increased. The Finance Minister had argued behind this that if the number of taxpayer’s increases, then the tax collection will also increase and eventually the way for reduction in tax rates will also be opened. But can’t the collection be increased in the opposite way? That is, will lower tax rates not lead to more and more taxpayers coming forward to pay? In fact, keeping tax rates low can bring many more benefits and solve many other growing problems. The reduction in consumption expenditure and continued cash flow in the financial system are such problems. In fact they are related to each other.

At present, the situation is that even the taxpayers who have not shown any hesitation in paying the tax are not able to muster the courage to spend more than about 18 percent on the products of everyday use. Consumers are paying cash instead.

Consider an example. People often keep repairing their homes. In this work, three main ingredients are needed in these work. These materials are ply wood, cement and paint. Assume that the repair of the house will cost Rs. 3 lakhs. If the Goods and Services Tax (GST) is to be paid at the rate of 18 per cent, then the total expenditure will be Rs 3.54 lakh. With GST, Rs 3.74 lakh will be spent on the repair of the house, but if the entire payment is made in cash, only Rs 3 lakh will go out of pocket.

The economy of the country has become sluggish due to the Kovid-19 epidemic and its effect is full on the income of the people. The earnings of most people have decreased after the Covid epidemic. In these challenging circumstances, the government cannot expect people to spend more on consumption. How will a customer be able to ascertain whether the shopkeeper is able to pay GST or whether he will put the amount taken in his pocket or pay tax to the government?

The customer can demand the bill from the shopkeeper along with the GST number. But here another problem arises. How to know that the GST number mentioned on the bill which the shopkeeper is paying is correct?

The customer finds himself more comfortable making cash payments. Now let’s look at the result of this whole process. When the government tries to take stock of economic activities, such transactions do not come to the fore. This reads the government to lose the revenue it receives in the form of GST. This also hinders the view of the government’s plan to reduce cash transactions.

As the chairperson of the GST Council, the Finance Minister should encourage the states to bring more and more items in the tax categories below 28% and 18%. Doing so will not only increase tax compliance but also increase tax revenue from higher consumption.


जीएसटी दर कम हो तो बढ़ सकता है कर अनुपालन


वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक बार कहा था कि कर संग्रह बढ़ाने के लिए करदाताओं की संख्या में इजाफा करना होगा। वित्त मंत्री ने इसके पीछे तर्क दिया था कि करदाताओं की संख्या बढ़ेगी तो कर संग्रह भी बढ़ेगा और अंततर: कर दरों में कटौती का रास्ता भी खुल जाएगा। मगर क्या संग्रह इसके उलट तरीके से नहीं बढ़ाया जा सकता है ? यानी क्या कर दरें कम रहने से अधिक से अधिक संख्या में करदाता भुगतान के लिए आगे नहीं आएंगे ?

वास्तव में कर दरें कम रहने के कई और लाभ भी मिल सकते है और कई दूसरी बड़ी समस्याएं भी सुलझाई जा सकती हैं। उपभोग के मद में खर्च में कमी और वित्तीय प्रणाली में नकदी का आदान – प्रदान जारी रहना ऐसी ही समस्याएं है। वास्तव में ये एक दूसरे से जुड़े है।

फिलहाल हालात यह है कि कर भुगतान में किसी तरह की हिचकिचाहट नहीं दिखाने वाले करदाता भी रोजमर्रा में काम आने वाले उत्पादों पर करीब 18 प्रतिशत अधिक खर्च करने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं। उपभोक्ता इनके बदले नकद भुकतान कर रहे हैं।

एक उदाहरण पर विचार करते हैं। लोग अक्सर अपने घरों की मरम्मत करते रहते है। इन कार्य में तीन प्रमुख सामग्री की जरूरत होती है। ये सामग्री प्लाई वुड़, सीमेंट और पेंट हैं। मान ले कि घर की मरम्मत में 3 लाख रूपये मूल्य का सामान लगेगा। अगर वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का भुगतान 18 प्रतिशत दर से करना है तो कुल मिलाकर 3.54 लाख रूपये खर्च होगा।

जीएसटी के साथ घर की मरम्मत पर 3.54 लाख रूपये खर्च आएगा मगर पूरा भुकतान नकद किया जाए तो 3 लाख रूपये ही जेब से जाएंगे। कोविड-19 महामारी से देश की अर्थव्यवस्था सुस्त हो गई है और इसका असर लोगो की आय पर भर हुआ हैं। ज्यादातर लोगो की कमाई कोविड महामारी के बाद कम हो गई है। इन चुनौतीपूर्ण हालात में सरकार लोगों से उपभोग पर अधिक खर्च करने की उम्मीद नहीं कर सकती हैं।

ग्राहक नकद भुगतान करने में स्वयं को अधिक सहज पाता है। अब इस पूरी प्रक्रिया के नतीजे पर गौर करते है। सरकार जब आर्थिक गतिविधियों का जायजा लेने की कोशिश करती हैं तो ऐसे लेनदेन सामने नहीं आ पाते है। इससे सरकार को जीएसटी के रूप में प्राप्त होने वाले राजस्व से हाथ धोना पड़़ता है। नकद लेनदेन कम करने की सरकार की योजना की राह में भी इससे बाधा उत्पन्न होती है।

जीएसटी परिषद की अध्यक्ष होने के नाते वित्त मंत्री को राज्यों को अधिक से अधिक वस्तुओं को 28 प्रतिशत और 18 प्रतिशत से निचली कर श्रेणियों में लाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। ऐसा करने से ना केवल कर अनुपालन बढ़ेगा बल्कि अधिक उपभोग से कर राजस्व में भी इजाफा होगा।