”Today, the sentiment of the countrymen is with the products made in India. It is not necessary that the company in Indian, but today every Indian want to adopt products made in India.” Indian industry should make its policy and strategy accordingly, so that it can move forward in the Atma Nirbhar Bharat campaign.

” India, which was once apprehensive of foreign investment, is welcoming all kind of the investment now. India, whose tax policies once used to cause disappointment among investors, now has the world’s most competitive corporate tax and faceless tax system,”

Make in India is certainly part of the Atma Nirbhar Bharat campaign , but this does not preclude a vibrant and growing role of foreign capital indeed, the Make In India policy will include in all project even when they are floated by foreign capital or foreign companies,

The key conditions is such goods should manufactured within the country. It is perhaps this obsession with manufacturing within the border of India that has encouraged the government to raise tariffs. The idea is to provide protection or the so called level playing field to investor in a domestic manufacturing project . It is different matter that such a traffic-based approach does not yield sustainable benefits either for the economy or consumers as this over time would undermine their intrinsic competitiveness and export capability.

It is important to note that the government’s welcome to foreign investment with open arms is only for the manufacturing sector through the Make in India campaign. Foreign investment in the service center or e-commerce companies does not enjoy the same privilege, This seems to be the new deal that the government is seems to be the new deal that the government is offering to the Indian industry.


मेक इन इंडिया अभियान और विदेशी निवेश


आज देश के लोगों की भावना भारत मे निर्मित वस्तुओं के साथ हैं। जरूरी नही है कि कंपनी भारतीय हो, लेकिन आज हर भारतीय चाहता है कि भारत में निर्मित उत्पाद अपनाए। उद्योग जगत इसके अनुरूप नीति और रणनीति बनाए ताकि आत्मनिर्भर भारत अभियान आगे बढ़ सके।

भारत, जो एक समय विदेशी निवेश को लेकर आशंकित रहता था, वह अब हर तरह के निवेश का स्वागत कर रहा है। भारत जिसकी कर नीतियां एक समय निवेशकों की निराशा की वजह थी। अब वह दुनिया का सबसे प्रतिस्पर्धी कॉर्पोरेट कर और फेसलेस कर व्यवस्था वाला देश हैैै।

मेक इन इंडिया, आत्मनिर्भर भारत अभियान का हिस्सा हैं लेकिन यह विदेशी पूंजी की जीवंत और बढ़ती भूमिका को रोकता नहीं है। निश्चित रूप से मेक इन इंडिया नीति में वे परियोजनाएं भी शामिल होंगी जो विदेशी पूंजी या विदेशी कंपनियों द्वारा संचालित होंगी।

प्रमुख शर्त यही है कि ऐसी वस्तु देश में बनी होनी चाहिए। शायद देश की सीमाओं में निर्माण बढाने की चाह ने सरकार को टैरिफ बढाने को प्रोत्साहित किया। मूल विचार है निवेशकों को घरेलू निर्माण परियोजनाओं में सामान अवसर मुहैया कराना। यह बात अलग है कि ऐसा टैरिफ आधारित रूख अर्थव्यवस्था या उपभोक्ताओं को स्थायी लाभ नहीं दिलाता बल्कि लंबी अवधी के दौरान यह उनकी प्रतिस्पर्धी और निर्यात क्षमता पर असर डालता है।

यह बात ध्यान देने लायक है कि सरकार विदेशी निवेश का खुले दिल से स्वागत केवल मेक इन इंडिया अभियान के तहत विनिर्माण क्षेत्र के लिए कर रही है। सेवा क्षेत्र या ई कॉमर्स कंपनियों के विदेशी निवेश को यह सुविधा हासिल नहीं है। यह सरकार की और से उद्योग को नई पेशकश प्रतीत होती है।