Hari Kishan Maheshwari has been a veteran in Plywood Trade for last 45 years. With a diploma holder in mechanical engineering, he started working in one of top plywood firms of 1970s, Sarda Plywood Industries. Post 20 years, he joined Century Plyboards as a founding management member and nurtured the distribution for over 16 years. He was one of the key contributors in the brand Century which helped scaling the company to be one of the top plywood brands in India. He retired from Century as Vice President.Since 2010, he has been advising upcoming Plywood and Veneer brands to enable them achieve scale in distribution. Currently he is a mentor and director with Purbanchal Laminates P Ltd assisting the management in Sales and Planning function. At the age of 72, he holds energy of a young sales management professional who is still closely attached with Customers, Channel Partners including Distributors, Dealers, Architects, Interior Designers. He is well known as Hari Babu in the plywood trade.

Do Ply and Panel Industry is heading for a change?
From 1950 to 1990-95, the plywood industry operated on wood extracted from forests in North East India. After 1990 till now, the industry was feeded by agro forestry. It prompted the ply and panel industry spread all over India. But from 2020 onwards, once again the industry is heading for a change in scenario. Change is the law of nature. Change is certain. But how much ready we are for this change? Apart from MDF and particle board, many new products are also fast entering in the market. So don’t we all have to be prepared for it.

What do you predict the future of plywood?
Various changes happens according to the circumstances. Many new products have entered the market, such as MDF and particle board. Their demand is increasing in the market. A significant portion of the demand that is in the market is captured by these products. Their production capacity is continuously increasing. It can be easily inferred from it is that there is a steady demand in the market. Plywood has retained its utility in the market. Even though there are many alternatives of plywood available in the market at present, plywood continues to dominate the market. Because the artisan who are used to work in plywood, it is natural for them to find it easy and comfortable to use plywood.
Low-capacity factories are mushrooming
Small factories have never been a problem for the plywood industry. In the beginning everyone is small, who work under a limited mindset. In the initial phase, their attention is on the marketing of the goods they are full manufacturing. It would not be wrong to say that plywood is still an unorganized industry. However, that’s why small factories are unable to pay attention to the long term strategy. As their market capitalises, they become more organized and self controlled. And naturally focus on other areas.
Do market is disturbed from the rate and quality of small factories?
Many new entrepreneurs were not from the timber break ground from the starting. This takes time to understand the processes of the industry as the operators are not trade professionals. That’s why they fail to pay prime attention to the quality in the initial stage. It naturally disturbs existing producers in the market. Apart from this, they are unable to pay attention towards the availability of raw materials. On the other hand, the shortage of wood is increasing constantly. The timber which was earlier five hundred to seven hundred rupees a quintal, has now reached to Rs 1200. It is increasing the cost of production. Which is causing the problem. Factories are forced to work at less than the production capacity.

What should be the strategy of industry regarding raw material
In order to increase the area of agro forestry, action plan have to be taken for tree plantation in coordination with the farmers. Everyone should make a concerted effort for this. It is a natural phenomena that small units are not able to contribute significantly to the farmers in planting saplings. Larger unit feels quite comfortable for it. It’s natural think by the farmer that they should earn at least that much from wood so that his profit remains infect and there is no loss. Industrialists will also have to think in this direction. Because there is no alternative of wood. Secondly research institute will also have to support. They can also research what kind of wood can be promoted in a particular area. Industrialists can also plant saplings by taking land on long-term lease from farmers. Secondly they can guarantee the rate of wood to the farmers, so that the farmers should be sure that they would get the lowest price for the wood they are growing. This price would be almost the same, what he is getting from other crop. For this, the industrialist will have to come forward and take initiative.

Status of new research in the industry?
We are still far behind world standards in research. At present, if a technology becomes successful abroad, then we adopt the technology. It is needed that we should research fast. New technology should be developed, which suits the national conditions. Because the market is changing rapidly. Until we do not emphasise on research, we cannot establish our dominance in exports.



उद्योग अब पूरी तरह से एग्रोफोरेस्ट्री पर निर्भर हो गया है


क्या प्लाई और पैनल उद्योग बदलाव की राह पर है ?
1950 से 1990-95 तक उत्तर पूर्व भारत में जंगलों से निकली लकड़ी पर प्लाईवुड उद्योग चलता रहा। इसके बाद 1990 से अब तक कृषि वानिकी (एग्रोफोरेस्ट्री) से उद्योग को लकड़ी मिलती रही। जिससे संपूर्ण भारत में प्लाई और पैनल उद्योग का प्रसार हुआ। लेकिन 2020 के बाद से एक बार फिर उद्योग एक परिवर्तन की राह पर है। बदलाव प्रकृति का नियम है। बदलाव तो निश्चित है। लेकिन इस बदलाव के लिए हम कितने तैयार है। एमडीएफ और पार्टीकल बोर्ड के अलावा भी नए नए उत्पाद आ रहे हैं। इसलिए क्या हम सभी को इसके लिए तैयार नहीं होना होगा।
प्लाईवुड के भविष्य को लेकर क्या सोचते हैं?
बहुत सी चीजे परिस्थितियों के अनुसार बदल जाती है। कई नए उत्पाद बाजार में आए हैं, जैसे एमडीएफ और पार्टीकल बोर्ड। इनकी बाजार में मांग बढ़ रही है। जो मांग बाजार में है, उसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा इन उत्पादों को ही जा रहा है। उनकी उत्पादन क्षमता लगातार बढ़ रही है। इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि बाजार में एक स्थिर मांग तो बरकरार है। प्लाईवुड अपनी उपयोगिता बाजार में कायम रखे हुए हैं। हालांकि भले ही इस वक्त प्लाईवुड के कई विकल्प बाजार में उपलब्ध हो, फिर भी प्लाईवुड बाजार में अपना दबदबा बनाए हुए हैं। क्योंकि जो कारीगर प्लाईवुड में काम करने का अभ्यस्त हो चुका है, उसे प्लाईवुड का इस्तेमाल करना आसान और सहज लगना स्वाभाविक है।
कम क्षमता वाली फैक्ट्रियां लगातार बढ़ रही हैं
छोटी फैक्ट्री कभी भी प्लाईवुड उद्योग के लिए परेशानी नहीं रही है। शुरूआत में सभी की यूनिट छोटी ही होती है। जो एक सीमित सोच के तहत काम करते हैं। शुरूआती दौर में उनका सारा ध्यान इस बात पर ही होता हैं, कि जो माल वह तैयार कर रहे हैं, वह बाजार में खप जाए। कहना गलत नहीं होगा कि प्लाईवुड अभी भी असंगठित उद्योग है। हालांकि इसलिए छोटी फैक्ट्री के संचालक लंबे समय की रणनीति पर ध्यान नहीं दे पाते। जैसे जैसे उनका बाजार बढ़ता है, फिर वह संगठित और नियंत्रित होना शुरू होते हैं। और स्वाभाविक तौर पर अन्य क्षेत्रों में अपना ध्यान केंद्रित करते हैं।
छोटी फैक्ट्रियों से बाजार में रेट व गुणवत्ता को लेकर दिक्कत तो आती है?
बहुत सारे नये उद्यमी शुरूआत से लकड़ी उद्योग से जुड़े हुए नहीं थे। जिससे उद्योग की प्रक्रियाओं को समझने में उन्हें समय लगता है क्योंकि संचालक प्रोफेशनल नहीं होते है। इसलिए भी वह गुणवत्ता की ओर शुरूआती चरण में ध्यान नहीं दे पाते। इससे जो पहले से बाजार में निर्माता होते है, उन्हें दिक्कत आती है। इसके अलावा वह कच्चे माल की उपलब्धता कैसे बढ़ाई जाए इस बारे में ध्यान नहीं दे पाते। वहीं दूसरी ओर लकड़ी की कमी लगातार बढ़ रही है। जो टिंबर पहले पांच सौ से सात सौ रुपए किं्वटल था, अब 12 सौ रुपए हो गया है। इससे उत्पादन लागत बढ़ रही है। जिससे दिक्कत आ रही है। कई बार तो फैक्टरी को उत्पादन क्षमता से कम पर काम करना पड़ रहा है।
कच्चे माल को लेकर उद्योग की क्या रणनीति होनी चाहिए
एग्रोफोरेस्ट्री का क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए किसानों के साथ तालमेल बना कर पौधारोपण के लिए काम करना होगा। इसके लिए सभी को मिल कर प्रयास करना चाहिए। एक दिक्कत हमेशा से रही है कि छोटी इकाई पौधा रोपण में किसानों को योगदान नहीं दे पाती है। बड़ी इकाई इस दिशा में काफी सहज महसुस करती है। किसान की स्वभाविक सोच है कि उसे लकड़ी से कम से कम इतनी कमाई तो हो जाए कि उसका मुनाफा बना रहे, नुकसान ना हो। इस दिशा में उद्योगपतियों को भी सोचना होगा। क्योंकि लकड़ी की भरपाई तो लकड़ी से ही हो सकती है। दूसरा रिसर्च इंस्टीट्यूट को भी सहयोग करना होगा। वह यह भी रिसर्च कर सकते हैं कि किस तरह की लकड़ी को क्षेत्र विशेष में बढ़ावा दिया जा सकता है। उद्योगपति यह भी कर सकते हैं कि किसानों से लंबे समय के लिए जमीन ठेके पर लेकर पौधारोपण करें। दूसरा यह भी हो सकता है कि किसानों को लकड़ी के रेट की गारंटी दे दें, जिससे किसानों को विश्वास हो कि वह जो लकड़ी उगा रहे हैं, उसकी निम्नतम कीमत मिलेगी। यह कीमत लगभग उतना तो होगा ही, जितना कि वह दूसरी फसल से ले रहे हैं। इसके लिए फैक्ट्री संचालकों को आगे आना होगा और उन्हें पहल करनी होगी।
नये शोध की क्या स्थिति है?
हम अभी शोध में विश्व मानकों में काफी पीछे हैं। फिलहाल हम बस इतना करते है, कि यदि कोई तकनीक विदेश में कामयाब हो जाती है, तो वहां की तकनीक को हम अपना लेते हैं। जरूरत इस बात की है, कि हमारे यहां तेजी से शोध हो। नई तकनीक विकसित होनी चाहिए, जो यहां की परिस्थितियों के अनुरूप हो। क्योंकि बाजार तेजी से बदल रहा है। जब तक हमारे यहां शोध पर शीर्ष स्तर पर काम नहीं होगा, तब तक हम निर्यात में अपना प्रभुत्व कायम नहीं कर सकते।

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