Indian Market is a Weapon
- August 28, 2020
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Indian Market is a Weapon
Gulf politics is no longer the same. The reason for this is obvious: India is the third largest oil market in the world. Such a customer is not offended in the market, especially when there is more supply and consumption.
The size of the Indian market is a weapon that is waiting to be used. India is the second largest mobile phone market in the world, it is the third largest market for solar energy devices, the second largest importer of weapons and most consumers of companies like Facebook and (until recently) TIK TOK. The Indian government has hardly used this consumer power before. This was also to an extent because the middle class market was not so large earlier. It is not long when India became the fifth largest economy in the world. Partly because the world has recently started to distance itself from rule-based multilateralism and the scope for bilateral relations.
China has used its market reach to tilt many countries. Recently he did this against Australia and in the past he has tried it on the Philippines, Bolivia and other countries. It reduced imports from India in a phased manner. It has been difficult for India’s technology services companies to work there. Companies in Japan, America and Germany depended on sales in China and Apple, Nike and other brands relied on Chinese suppliers. He also took advantage of it. Now, suffering from Chinese incursion into Ladakh, India has started responding to China in its own language. Whether or not Narendra Modi’s intention to achieve self-sufficiency of manufacturing in key areas is proved according to intentions or not, but it is hurting China. Because at present, the status of China’s export-oriented manufacturing center is already fading due to US pressure and rising costs. Meanwhile, the oil exporting countries kept on giving the Indian Prime Minister the highest honor of their country so that they could be kept happy. Similarly, under President Donald Trump, who specializes in bargaining, the US has also kept up despite the stretch in business matters. This happened because India placed continuous orders for defense equipment and orders for Boeing aircraft. He continued to give the highest honor to his country so that he could be kept happy. Similarly, under President Donald Trump, who specializes in bargaining, the US has also kept up despite the stretch in business matters. This happened because India placed continuous orders for defense equipment and orders for Boeing aircraft. He continued to give the highest honor to his country so that he could be kept happy. Similarly, under President Donald Trump, who specializes in bargaining, the US has also kept up despite the stretch in business matters. This happened because India placed continuous orders for defense equipment and orders for Boeing aircraft.
China can reverse the field of pharmaceutical raw materials and items of strategic use. The same applies to neighboring countries. Barring Bhutan, the trade and defense relations of all neighboring countries are stronger with China. It may be important to open the country’s market to neighboring countries. This will also block the way of others. This game will be two way. This may have angered the domestic business lobby which is happy with the government’s move and was unhappy with the recent free trade agreement with Sri Lanka.
भारतीय बाजार रूपी हथियार
खाड़ी की राजनीति अब पहले जैसी नहीं रही। इसकी वजह जाहिर है: भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल का बाजार है। बाजार में ऐसे ग्राहक को नाराज नहीं किया जाता, खासकर तब जबकि आपूर्ति ज्यादा हो और उसकी खपत करनी हो।
भारतीय बाजार का आकार एक ऐसा हथियार है जो इस्तेमाल किए जाने की प्रतीक्षा में है। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन बाजार है, सौर ऊर्जा उपकरणों का यह तीसरा सबसे बड़ा बाजार है, हथियारों का दूसरा सबसे बड़ा आयातक है और फेसबुक तथा (अभी हाल तक) टिक टॉक जैसी कंपनियों के सर्वाधिक उपभोक्ता यहीं हैं। भारत सरकार ने इस उपभोक्ता शक्ति का पहले शायद ही इस्तेमाल किया हो। ऐसा एक हद तक इसलिए भी था क्योंकि मध्यवर्गीय बाजार पहले इतना बड़ा नहीं था। अभी ज्यादा समय नहीं हुआ जब भारत विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बना। आंशिक तौर पर ऐसा इसलिए क्योंकि अभी हाल में दुनिया ने नियम आधारित बहुपक्षीयता से दूरी बनानी शुरू की है और द्विपक्षीय रिश्तों की गुंजाइश बन रही है।
चीन ने अपनी बाजार पहुंच का इस्तेमाल कई देशों को झुकाने के लिए किया है। हाल ही में उसने ऑस्टे्रलिया के खिलाफ ऐसा किया और अतीत में वह फिलीपींस, बोलिविया और अन्य देशों पर इसे आजमा चुका है। उसने भारत से होने वाले आयात को चरणबद्ध तरीके से कम किया। भारत की प्रौद्योगिकी सेवा कंपनियों के लिए वहां काम करना मुश्किल कर दिया गया। जापान, अमेरिका और जर्मनी की कंपनियां चीन में बिक्री के लिए निर्भर थीं और ऐपल, नाइकी और अन्य ब्रांड चीनी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भर थे। उसने इसका भी फायदा उठाया। अब लद्दाख में चीनी घुसपैठ से पीडि़त भारत ने चीन को उसी की भाषा में जवाब देना शुरू कर दिया है। नरेंद्र मोदी की अहम क्षेत्रों में विनिर्माण की आत्मनिर्भरता हासिल करने की बात इरादों के मुताबिक साबित हो या नहीं लेकिन यह चीन को तकलीफ दे रही है। क्योंकि इस समय अमेरिकी दबाव और बढ़ती लागत के कारण पहले ही चीन का निर्यातोन्मुखी विनिर्माण केंद्र होने का दर्जा फीका पड़ रहा है। इस बीच तेल निर्यातक देश भारतीय प्रधानमंत्री को अपने-अपने देश का सर्वोच्च सम्मान देने में लगे रहे ताकि उन्हें प्रसन्न रखा जा सके। इसी तरह सौदेबाजी में माहिर राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के अधीन अमेरिका ने भी कारोबारी मामलों में खिंचाव के बावजूद साथ बनाए रखा है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि भारत ने रक्षा उपकरणों के निरंतर ऑर्डर और बोइंग विमान के ऑर्डर उसे दिए।
चीन औषधि के कच्चे माल और सामरिक उपयोग की वस्तुओं के क्षेत्र में पलटवार कर सकता है। इन क्षेत्रों में वैश्विक आपूर्ति पर उसका दबदबा है। इसके अलावा भारत को अन्य मोर्चों पर भी सावधानीपूर्वक पेशकदमी करनी होगी। यही बात पड़ोसी देशों पर भी लागू होती है। भूटान को छोड़कर अन्य सभी पड़ोसी देशों के कारोबारी और रक्षा रिश्ते चीन के साथ अधिक मजबूत हैं। देश के बाजार को पड़ोसी देशों के लिए खोलना महत्त्वपूर्ण हो सकता है। इससे दूसरों के रास्ते भी बंद होंगे। यह खेल दोतरफा ही होगा। भले ही इससे वह देसी कारोबारी लॉबी नाराज हो जो आज सरकार के कदमों से खुश है और जो अभी हाल तक श्रीलंका के साथ मुक्त व्यापार समझौते के कारण नाखुश थी।