No 'intolerable growth sacrifice’ to tame inflation

A group of Industrialists believe that growth should not be unbearably sacrificed to contain inflation suddenly.

With a cautiously optimistic outlook for the country’s economy, they said the growth prospects for fiscal years 2022-23 and 2023-24 are “rational” even if geopolitical tensions and high commodity prices persist for a long time.

Under pressure from rising inflation, monetary policy-setter MPC has taken a tough stance and the prime lending rate repo has risen to a two-year high of 4.90 per cent in a spam of five weeks with a total hike of 0.90 per cent in two rounds.

“The inflation episode has lasted longer than we expected and may last longer than we estimate, but there is no doubt that inflation can be brought down to the target level in the medium term,” they said.

RBI has set a target of keeping retail inflation in the range of 2 percent to 6 percent.

The Indian economy has barely recovered from the outbreak of the COVID-19 pandemic and we have to be careful not to impose an” intolerable growth sacrifice” in our attempt to “tame inflation” too abruptly.

 

 

 


मुद्रास्फीति के लिए न हो वृद्धि का असहनीय बलिदान


उद्योगपतियों के एक बड़े समूह का मानना है कि मुद्रास्फीति पर अचानक काबू पाने के लिए वृद्धि का असहनीय बलिदान नहीं किया जाना चाहिए.

देश की अर्थव्यवस्था के लिए सतर्क आशावादी दृष्टिकोण रखते हुए उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष 2022-23 और 2023-24  के लिए वृद्धि की संभावनाएं ‘तर्कसंगत’ हैं,  भले ही भू  राजनीतिक तनाव और जिंस की ऊँची कीमतें लंबे समय तक बनी रहें।

बढ़ती मुद्रास्फीति के दबाव में मौद्रिक नीति तय करने वाली एमपीसी ने कठोर रुख अपनाया है और प्रधान उधारी दर रीपो सिर्फ पांच सप्ताह में दो बार में कुल 0.90 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ दो साल के उच्च स्तर 4.90  प्रतिशत पर पहुंच गई है.

उन्होंने कहा, हम जितना समझते थे,  मुद्रास्फीति का प्रकरण उससे अधिक समय तक चला है और शायद जितना हम सोच रहे हैं,  उससे अधिक समय तक चलेगा,  लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि मध्यम अवधि में मुद्रास्फीति को लक्षित स्तर तक लाया जा सकता है.

आरबीआई ने खुदरा मुद्रास्फीति को दो प्रतिशत से छह प्रतिशत के बीच रखने का लक्ष्य तय किया है.

भारतीय अर्थव्यवस्था कोविड-19  महामारी के प्रकोप से मुश्किल से ही उबर पाई है और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि मुद्रास्फीति पर ‘अचानक ‘ काबू पाने की कोशिश में ‘वृद्धि का असहनीय बलिदान’  न हो.

 

 

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