प्रवासी मजदूर, उद्योग और सरकार की दुविधा

प्रवासी मजदूर, उद्योग और सरकार की दुविधा


देश में कपड़ा और केमिकल उद्योग, भवन निर्माण, खनन व कृषि जैसे अर्थव्यवस्था के प्रमुख सेक्टर मजदूरों बिन ठप्प पड़े हैं। बड़े शहरों से चार्टर हवाई जहाज इनको लाने के लिए नजदीक के एयरपोर्ट भेजे जा रहे हैं। उनका कहना है उत्पादन का पहिया इनके बिन आगे बढ़ ही नहीं सकता। उधर रेलवे के बुकिंग आंकड़ों के अनुसार यूपी व बिहार से मुंबई के लिए जाने वाली 11 में से 8 ट्रेनें 26 से 30 जून तक के लिए पूरी तरह उन प्रवासी मजदूरों से भर गई हैं, जो फिर से काम पर लौटना चाहते हैं। महाराष्ट्र के गृहमंत्री का कहना है कि रोजाना 15 हजार मजदूर लौट रहे हैं। सरकार की अजीब समस्या है कि पीएम ने घर पहुंचे लाखों प्रवासी मजदूरों को घर के पास ही काम देने का वादा किया व ग्रामीण भारत के विकास के लिए 50 हजार करोड़ रुपए से गरीब कल्याण रोजगार अभियान की शुरूआत होने की बात कही। इसके कुछ ही दिनों पहले उन्होंने उद्योगों का आह्वान किया कि वे फिर से उत्पादन शुरू करें और खासकर एमएसएमई सेक्टर के लिए तीन लाख करोड़ रुपए त्रण की अलग से व्यवस्था की। उधर मजदूरों का बड़ा वर्ग बड़े शहरों में वापस जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। यही कारण है कि देश के छः प्रमुख राज्यों यूपी, बिहार, राजस्थान, मप्र, झारखण्ड और छत्तीसगढ़- जहां से श्रमिक औद्योगिक राज्यों में जाते हैं, वहां मनरेगा में काम पाने वालों की संख्या दूनी से पांच गुनी हो गई है। हालांकि इन मजदूरों की आय अपने गृहराज्य में उतनी नहीं है, जिनती उन्हें औद्योगिक नगरों में थी। जाहिर है आने वाले दिनों में उद्यमियों का सरकार पर दबाव होगा कि वह ऐसी योजनाएं न बनाए, जिनसे श्रमिक न तो जी सकें, न मर सकें क्योंकि उससे श्रमिक की प्रतिभा ग्रामीण भारत का विकास करे या न करे, उद्योग खत्म हो जाएंगे और तब भारत की अर्थव्यवस्था चरमराने लगेगी। सरकार के लिए आगे खाई और पीछे कुआं है।