Vivad se Vishwas: Scheme
- मार्च 21, 2020
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Vivad se Vishwas: Scheme
The Narendra Modi government’s initiative to reduce litigation in direct tax cases has ignited a flicker of hope among taxpayers with 483,000 cases pending in various courts and appellate forums.
If the taxpayer, under the scheme, has lost the case and gone in for an appeal, the assessee can pay 100 per cent of the disputed amount (without penalty and interest) and settle it. This may well result in many taxpayers bringing their disputes to an end and get the tax department off their back. Vivad Se Vishwas may make some headway.
But if a tax payer has won a case and the tax department has gone in for an appeal, then the assessee can pay 50 per cent of the disputed tax amount (without the penalty and interest) and settle the case. Many problems can arise in such situations. Why should a tax payer, after having won the case in a lower forum, agree to pay half the disputed tax amount?
The tax department is known for filing an appeal against any case it loses in tax disputes. The assessee, therefore, may well wonder if the price for not prolonging a dispute is to pay half the disputed amount even though he/she has won the case. The fear is that to achieve that goal it may put undesirable pressure on taxpayers with pending disputes to settle them under this scheme.
But there is no guarantee that this will end the larger problem of tax disputes leading to accumulation of tax arrears.
The tax department, therefore, has to focus more on bringing in a system that does not create disputes and does not allow the disputes to remain unresolved for several years. Vivad Se Vishwas can earn the government a one-time tax revenue bonanza. But this gain (almost like the one-off disinvestment gains are for fiscal consolidation) will not be sustainable unless durable reforms in the taxation system are implemented to prevent disputes and ensure their early settlement.
विवाद से विश्वास : योजना
प्रत्यक्ष कर संबंधी विवादों से जुड़ी मुकदमेबाजी में कमी लाने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार की नई पहल ने करदाताओं के बीच उम्मीद जगाई है। तमाम अदालतों और अपील अधिकरणों में ऐसे करबी 4.83 लाख मुकदमे लंबित चल रहे हैं।
अगर कोई करदाता अपना मुकदमा हार चुका है और उसने अपील की हुई है तो इस योजना के तहत वह विवादित राशि का 100 फीसदी (जुर्माना एवं ब्याज छोड़कर) चुका कर मामले का निपटारा कर सकता है। इस तरह यह योजना कई करदाताओं के लिए विवाद को खत्म कर विभाग से मुक्ति का रास्ता दिखा सकती है। इसका मतलब है कि विवाद से विश्वास की तरफ बढ़ा जा सकता है।
लेकिन अगर कोई करदाता मुकदमा जीत चुका है और उसके खिलाफ कर विभाग ने अपील की हुर्ह है तो इस योजना के तहत वह विवादित रकम का 50 फीसदी (जुर्माने एवं ब्याज के बगैर) भुगतान कर विवाद का निपटान करा सकता है। इस तरह की स्थिति में कई समस्याएं पैदा हो सकती हैं। आखिर निचली अदालत में मुकदमा जीत चुके करदाता को विवादित रकम का आधा हिस्सा चुकाने को क्यों तैयार होना चाहिए?
कर विभाग इस बात के लिए खासा चर्चित है कि किसी भी तरह के कर विवाद में वह हार मिलने पर अपील में चला जाता है। लिहाजा मुकदमे का सामना कर रहे व्यक्ति को यह देखना होगा कि अपील पर लंबे समय तक खिंचने वाली अदालती कार्यवाही का सामना करने से कहीं बेहतर आधी रकम चुकाना है या नहीं। डर है कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए कर विभाग कहीं करदाताओं पर यह अवांछित दबाव न डालने लगे कि वे इस योजना के तहत लंबित मामलों का निपटारा करें।
लेकिन इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि यह कर विवादों की बड़ी समस्या को खत्म कर देगा जिससे बकाया कर संग्रह बढ़ेगा।
हालांकि कर विभाग को एक ऐसी व्यवस्था कायम करने पर ध्यान देना चाहिए जो विवाद न खड़े करती हो और मौजूदा विवादों को कई वर्षाें तक लटकाने की इजाजत न दे। ‘विवाद से विश्वास’ योजना से सरकार को एकबारगी कर राजस्व का पुलिंदा मिल सकता है। लेकिन महज एक बार होने वाले विनिवेश प्राप्तियों की तरह यह लाभ भी तब तक कायम नहीं रहेगा जब तक कराधान प्रणाली में टिकाऊ सुधार नहीं लागू किए जाते हैं और विवादों का जल्द समाधान नहीं तलाशा जाता है।