Nirmala Sitharaman started off on the wrong foot, saddled as she was with the unrealistic Budget numbers presented in the 2019 Interim Budget by her predecessor, and by the fudging of the books that hid the real picture. As a first task, she has done a clean-up act: Expenditure that was off the books has been brought into the Budget, and tax refunds now come with a speed and regularity that would have surprised many taxpayers. Budgeting has become a more honest exercise.

Ms Sitharaman has also completed the process of de-personalizing tax assessments by making them digital and transparent. Routine tax administration, long a source of harassment and corruption, is thus far smoother than under her illustrious predecessors. Unfortunately, she has had only partial (therefore inadequate) success with the third big tax issue: closing out the enormous number of tax disputes though a settlement exercise.

The makeover extends to good and services tax (GST), which has so far belied the initial promise held out of raising the tax-GDP ratio over and above providing a boost to GDP itself. By enforcing w-invoicing, linking GST records to Aadhaar, and cross-matching them with income tax filings, she has largely tackled the problems of fake invoicing and tax evasion. This remains a work in progress, though, because GST collections, while in the upswing after four long years, do not yet show a sustained step jump. Although pandemic may be blamed for it. The task will be addressed more fully when the overdue task of rationalizing and reducing the number of applicable rates is taken up, along with reversion to the initially-promised revenue-neutral rate.

Fortune now smiles on the minister. The spurt in tax collections during the April-June quarter, especially in corporation tax, reflects the surge in corporate profitability as large companies have used the pandemic to time costs. Including interest payments.

That personal income tax collection too have improved through the second wave of the pandemic carries its own lesion, since it testifies that the phased and state-wise lockdowns of the last quarter did not have the same destabilizing impact on economic activity that nationwide lockdown did a year earlier.

The result of these trends is that the final government accounts for 2020-21 showed better numbers than the revised estimates presented at Budget time. This may repeat itself with revised estimates presented in February. These are positive initial trends when the overall fiscal situation remains under stress—in part because the minister has chosen to not exercise all the taxation option open to her.


शुरूआती दौर में निर्मला सीतारमण की शुरूआत खराब रही क्योंकि 2019 के बजट में उनका सामना ऐसे आंकड़ों से था जो वास्तविकता से दूर थे। ऐसा उनके पूर्ववर्ती वित्तमंत्री द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों की वजह से था। साथ ही बही खातों में हेरफेर के कारण वास्तविक तस्वीर नजर नहीं आ रही थी। सबसे पहले उन्होंने सफाई का काम कियाः जो व्यय बही खाते से बाहर था उसे बजट में शामिल किया गया और कर रिफंड की गति तेज की गई तथा उसमें नियमितता लाई गई जिसने कई करदाताओं को प्रभावित भी किया होगा। बजट निर्माण की प्रक्रिया पहले से कहीं अधिक ईमानदार प्रक्रिया बन गई है।

सीतारमण ने कर आकलन की प्रक्रिया को डिजिटल और पारदर्शी बनाने की प्रक्रिया भी पूरी कर ली है। सामान्य कर प्रशासन, जो लंबे समय से प्रताड़ना और भ्रष्टाचार का जरिया था, अब वह उनके पूर्ववर्तियों की तुलना में काफी सहज हो चुका है। दुख की बात है कि तीसरे बड़े कर मसले यानी बड़े पैमाने पर उत्पन्न होने वाले कर विवादों को निस्तारण के माध्यम से निपटाने के क्षेत्र में उन्हें आंशिक सफलता ही मिल सकी जो कि अपर्याप्त है।

इसके बाद वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में सुधार की बारी आई जो अब तक उस शुरूआती वादे पर खरा नहीं उतरा जिसमें कहा गया था कि कर-जीडीपी अनुपात में इजाफा होगा और स्वंय जीडीपी को भी गति मिलेगी। ई-इनवाॅइसिंग, जीएसटी रिकाॅर्ड को आधार से जोड़ने और उनका आय कर फाइलिंग से मिलान करने पर जोर देकर उन्होंने फर्जी इनवाॅइसिंग और कर वंचना की समस्या को काफी हद तक सुलझाने का प्रियास किया। हालांकि यह काम अभी चल ही रहा है क्योंकि चार वर्ष के अंतराल के बाद जीएसटी संग्रह में इजाफा तो हुआ लेकिन अब तक इसमें निरंतर स्थाई उछाल नजर नहीं आई है। हालांकि इसमें महामारी भी काफी हद तक जिम्मेदार है। जब लागू होने वाली दरों को तार्किक बनाने और उनकी तादाद कम करने के लंबित काम को हल किया जाएगा तो यह काम ज्यादा समग्रता से पूरा होगा।

अब तकदीर मंत्री पर मेहरबान है। अप्रैल-जून तिमाही के दौरान कर संग्रह में इजाफा खासकर काॅर्पोरेशन कर में इजाफा यह दर्शाता है कि कंपनियों का मुनाफा सुधरा है क्योंकि बड़ी कंपनियों ने ब्याज भुगतान समेत महामारी में लागत कम की है। व्यक्तिगत आय कर संग्रह में भी सुधार हुआ है। हालांकि महामारी की दूसरी लहर अपने साथ कई सबक लेकर आई लेकिन इससे यह भी स्पश्ट हुआ कि चरणबद्ध और राज्यस्तरीय लाॅकडाउन ने अर्थव्यवस्था पर उतना असर नहीं डाला जितना कि गत वर्ष देशव्यापी लाॅकडाउन ने डाला था।

इन सब वजहों से वर्ष 2020-21 में सरकार के अंतिम लेखा के आंकड़े बजट के समय प्रस्तुत संशोधित अनुमान से बेहतर थे। चालू वित्त वर्ष में भी यह सिलसिला दोहराया जा सकता है। वित्तीय हालात में व्याप्त तनाव के बीच यह रूझान इसलिए भी सकारात्मक है क्योंकि मंत्री ने अपने समक्ष मौजूद सभी कर विकल्पों को आजमाने का निर्णय नहीं लिया है।