Household incomes better, caution prevails
- नवम्बर 25, 2021
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India’s Index of Consumer Sentiments generated by CMIE using its Consumer Pyramids Household Survey rose 2.1 per cent in October 2021. This was the fourth consecutive month that the index increased. Sentiments have been improving since July 2021, after the second wave of the Covid-19 Pandemic abated.
While this is a smart increase in sentiments, the index is still substantially lower than its pre-pandemic level.
Consumer sentiments need to improve to levels higher than the pre-pandemic level for the Indian economy to get astride a sustainable economic growth path. This appears still quite distant. Given that private final consumption expenditure accounts for a substantial 59 per cent of GDP, a faster improvement in consumer sentiments is important to ensure a sustainable recovery in growth. Incomes are improving . this is a beginning that needs to transcend to higher spending, this transition from income to spending or intentions to spending is turning out to be sluggish.
Change in household incomes is one of the five components of the Index of Consumer Sentiments.
Households have similarly displayed caution when it comes buying non-durables.
The festive season seems to have had almost no impact on the willingness to buy consumer non-durables.
More than half the households feel that this is a worse time to buy consumer non-durables compared to a year ago.
This caution has persisted in October in spite if a continued improvement on the income and income-expectations front.
परिवारों की आय में इजाफा मगर सतर्कता बरकरार
भारत में उपभोक्ताओं का मिजाज भांपने वाला सूचकांक अक्टूबर में सुधार का संकेत दे रहा है। सीएमआईई के कंज्यूमर पिरामिड्स हाउसहोल्ड सर्वे के अनुसार उपभोक्ता धारणा सूचकांक अक्टूबर में 2.1 प्रतिशत अधिक रहा। लगातार चैथे महीने इस सूचकांक में तेजी दर्ज हुई। कोविड-19 की दुसरी लहर के बाद जुलाई 2021 से उपभोक्ताओं की धारणा मजबूत हो रही है। जून 2021 के स्तर से यह सूचकांक 24.5 प्रतिशत उछला है। हालांकि यह तेजी उत्साह बढ़ाने वाली जरूर है, मगर सूचकांक कोविड के पूर्व के स्तर की तुलना में अब भी काफी कम है।
भारतीय अर्थव्यवस्था में निरंतरता बनी रहने के लिए उपभोक्ताओं की धारणा में महामारी पूर्व के स्तर की तुलना में ऊंचे स्तरों तक सुधार होना जरूरी है। फिलहाल यह मुमकिन होता नहीं दिख रहा है। देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) एक हिस्से के तौर पर कुल उपभोग में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी 59 प्रतिशत है जिसे देखते हुए उपभोक्ताओं की धारणा में तेजी से सुधार जरूरी है। सूचकांक में सुधार होने से ही अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर हिचकोले नहीं खाएगी। आय में जरूर सुधार हो रहा है। यह अभी शुरूआत है और जब आय बढ़ेगी तभी व्यय बढ़ेगा। मगर आय से लेकर व्यय तक की राह सुस्त लग रही है। पारिवारिक आय में बदलाव उपभोक्ता धारणा सूचकांक के पांच पहलुओं में एक है।
बढ़ी आय से अंदाजा लगाया जा सकता है कि भविष्य में यह और कितनी बढ़ सकती है और लोग गैर-जरूरी वस्तुओं पर कितनी रकम खर्च कर सकते हैं। धारणा में सुधार अर्थव्यवस्था की वृद्धि की दिशा का एक मोटा संकेत देता है। अगर उपभोक्ताओं की धारणा मजबूत होती है तो गैर जरूरी वस्तुओं पर व्यय बढ़ता है। गैर-जरुरी वस्तुओं पर उपभोक्ताओं का व्यय अर्थव्यवस्था की आर्थिक वृद्धि दर में बदलाव लाता है।
अक्टूबर में भविष्य की आय को लेकर उम्मीद बढ़ी है। आय में बढ़ोतरी की तुलना में भविष्य में आय बढ़ने की अपेक्षाएं थोड़ी कम रहीं।
गैर-उपभोक्ता वस्तुएं खरीदने में परिवारों में थोड़ी हिचकिचाहट और सतर्कता दिखी।
त्योहारों के दौरान भी उपभोक्ताओं में गैर-उपभोक्ता वस्तुएं खरीदने की ललक नहीं दिखी।
आधे से अधिक परिवारों का मानना है कि गैर-उपभोक्ता वस्तुएं खरीदने के लिए मौजूदा समय एक वर्ष पहले से भी बदतर है।
आय में वृद्धि और भविष्य में आय बढ़ने की उम्मीदों के बाद भी अक्टूबर में लोगों में यह सतर्कता दिखाई दी।