The Reserve Bank of India (RBI) has eventually decided to adjust to the evolving economic reality.

RBI Governor Shaktikanta Das rightly noted in his statement: “There is the collateral risk that if inflation remains elevated at these levels for too long, it can de-anchor inflation expectations which, in turn, can become self-fulfilling and detrimental to growth and financial stability.”

Besides, higher prices of edible oil, supply chain disruptions because of a surge in Covid cases in some parts of the world, particularly China, are affecting prices.

The sudden hike of 40 basis points in policy rates by the Reserve Bank of India is somewhat shocking, but such action has become necessary. Inflation rates in India have been beyond the RBI’s upper band of tolerance and the rationale of the move makes sense. At the moment there were only two options. Either the rupee would have been allowed to fall or the current account deficit would have been controlled by raising rates. Both were bad choices, but raising rates was the better option, which will control demand for the time being.

The hike in rates, although expected, was only likely to come through in the June policy review. The quantum of hike (40 bps) in this out-of-turn announcement was also a surprise as the markets expected the RBI to hike by 25 bps.

It would seem the RBI would want to normalize liquidity within the next 12 months, and possibly raise the repo rate above the expected inflation rate.

Real estate and automobiles, which were showing signs of a nascent recovery, will bear the brunt of higher interest rates following the central bank’s rate hike because customers will delay buying new homes and cars as their EMI may be increased.

Home sales and new launches had seen very positive returns in last few quarters. Developers relying on external sources of funds may also feel the heat, as their cost of borrowing will rise with banks expected to raise rates.

The RBI move comes when the real estate industry was just recovering.


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ब्याज दरे बढ़ने से रियल एस्टेट और वाहन क्षेत्र पर असर

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने आखिरकार सामने आ रही आर्थिक हकीकत के साथ संतुलन कायम करने का निर्णय लिया है

आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने अपने वक्तव्य में उचित ही कहा है, इस बात का जोखिम है कि अगर मुद्रास्फीति लंबे समय तक इस ऊंचे स्तर पर बनी रहती है तो, यह मुद्रास्फीति से जुड़ी अपेक्षाओं को बेपटरी कर सकता है जो अपने आप में वृद्धि और वित्तीय स्थिरता के लिए जोखिम पैदा कर सकता है।

खाद्य तेलों की ऊंची कीमतों के अलावा दुनिया के कुछ हिस्सो, खासकर चीन में कोविड के मामलों में इजाफा होने के कारण आपूर्ति श्रृंखला की चुनौतिया कीमतों को प्रभावित कर रही हैं।

हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा एकाएक नीतिगत दरों में 40 आधार अंकों की बढ़ोतरी कुछ चौंकाने वाली है, लेकिन ऐसी कार्रवाई आवश्यक हो गई थी। भारत में मुद्रास्फीति दरें आरबीआई के ऊपरी दायरे को पार कर गई हैं और इस कदम का तर्क समझने योग्य है, फिलहाल दो ही विकल्प थे। या तो रुपये को गिरने दिया जाता या दरें बढ़ाकर चालू खाते के घाटे को नियंत्रित करते। दोनों ही खराब विकल्प थे, लेकिन दरें बढ़ाना ही अपेक्षाकृत बेहतर विकल्प था, जो फिलहाल मांग को नियंत्रित करेगा।

दर में वृद्धि हालांकि संभावित थी, लेकिन इसकी संभावना जून की नीतिगत समीक्षा में जताई जा रही थी। इस घोषणा में दर वृद्धि की मात्रा (40 आधार अंक) भी आश्चर्यजनक है, क्योंकि बाजारों को आरबीआई द्वारा 25 आधार अंक वृद्धि का अनुमान था।

निवेशकों को आगे दरों में अधिक बढ़ोतरी की उम्मीद करनी चाहिए क्योकिं ऐसा लगता है कि आरबीआई अगले 12 महीनों के भीतर नकदी की स्थिति को सामान्य करना चाहता है और संभवत रिपो दर को मुद्रास्फीति की दर से ऊपर बढ़ाना चाहेगा।

ऊंची ब्याज दरों का बोझ भारतीय रियल एस्टेट और वाहन क्षेत्रों पर सबसे ज्यादा पड़ेगा, क्योंकि ग्राहक नए मकानों और कारों की खरीदारी में विलंब करेंगे।

रियल एस्टेट डेवलपरों को आशंका है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा ब्याज दरें बढ़ाने से आवास ऋण दरें बढ़ जाएंगी और इससे ग्राहकों की ईएमआई में इजाफा हो जाएगा।

पांच साल तक किफायती योजनाओं पर जोर दिए जाने की वजह से पिछली कुछ तिमाहियों में आवासीय बिक्री और नई पेशकशों में अच्छी वापसी दर्ज की गई थी। लेकिन इस रीपो दर वृद्धि के साथ साथ निर्माण क्षेत्र में लागत संबंधित महंगाई से आवासीय क्षेत्र की वृद्धि धीमी पड़ सकती है, जो रियल एस्टेट क्षेत्र के लिए अच्छा नहीं होगा।

आरबीआई ने यह कदम ऐसे समय में उठाया है जब रियल एस्टेट उद्योग में सुधार सिर्फ शुरू ही हुआ है।


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