Editorial – May 2022 – Plyinsight
- मई 16, 2022
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A problem for one may prove to be an opportunity for another to solve that problem. Today India has a solution to the problems of global supply chain. China had become the manufacturing king of the world due to its efficiency, productivity, reasonable costs and excellent infrastructure. The whole world was eager to buy Chinese goods. But today the same dependence on China is creating problems for everyone. Now the companies of the world are ready to listen to what we have been saying for years – Make in India.
In the post-independence era, when the emphasis was on self-reliance, India was importing everything from machinery to capital and technology to weapons and even pens at its peak. Our dependence on imports continued to grow in spite of indigenization efforts. We import 85 per cent of our Total Crude oil requirement.
On the one hand, the Green Revolution had relieved the country from pressure of the US, which was doing so while supplying wheat to famine-stricken India in the 1960s. On the other hand, projects related to self-reliance, from electronic chips to solar power panels, mean stronger links to international supply chains and threats to domestic production units as they are dependent on imports.
Remember, how an empire was lost for lack of a nail. The nail could be hammered into the horseshoe and the king could go to war on a horse. Whereas the lack of small electronic chips has put the bulk of the automotive sector in trouble. Tomorrow, a shortage of cobalt or lithium may affect battery production. The shortage of melamine phenol and face veneer can put the plywood and panel and laminate industry in jeopardy.
India’s consumer Durable manufacturing has been affected because the supply of components is stuck in Shanghai port owing to the Covid induced lockdown.
We cannot protect ourselves from the ups and downs of the entire value chain. There is no economy in the world which is completely on its own. Dependence on trading partners is common in the modern economy. The wisdom lies in reducing dependence on a hostile country like China by locating a supplier in our own country, although China is not the sole supplier of most products, but it is most competitive in the world.
In that sense, there are a number of constraints in making manufacturing viable, yet there is a strong need to develop domestic capabilities. Agroforestry can set itself the target of supply of core, face veneer and sawn timber and which is achievable. Apart from this, if the option of importing various chemicals can be fulfilled by domestic manufacturing, then the goal of self-reliance of the country can be fulfilled.
A problem for one may prove to be an opportunity for another to solve that problem. Today India has a solution to the problems of global supply chain. China had become the manufacturing king of the world due to its efficiency, productivity, reasonable costs and excellent infrastructure. The whole world was eager to buy Chinese goods. But today the same dependence on China is creating problems for everyone. Now the companies of the world are ready to listen to what we have been saying for years – Make in India.
But we should not be under any illusion. The current crisis in China is a once in a year situation. So India has a limited amount of time and opportunities to present itself as an alternative to China. Covid and lockdown will end sooner or later in China too. Then the world will forget China’s manufacturing problems in the same way as today people in India have forgotten the devastation caused by Covid last year. As soon as the road and durable Chinese goods start coming back on the market, the world will return to its customs. So investors have to do something today. it’s time to do something.
Suresh Bahety || 9050800888
किसी एक की समस्या किसी दूसरे के लिए उस समस्या को सुलझाने का अवसर सिद्ध हो सकती है। आज भारत के पास ग्लोबल सप्लाई चैन की समस्याओं का समाधान है। चीन अपनी दक्षता, उत्पादकता, उचित लागतों और बेहतरीन बुनियादी ढांचे के चलते दुनिया का मैन्युफैक्चरिंग किंग बन गया था। पूरी दुनिया चीनी माल खरीदने के लिए आतुर हो गई थी। लेकिन आज चीन पर वही निर्भरता सबके लिए मुश्किलें खड़ी कर रही है। अब जाकर दुनिया की कंपनियां उस बात को सुनने के लिए तैयार हैं, जिसे हम वर्षों से कह रहे हैं – मेक इन इंडिया।
आजादी के बाद के दौर में जब आत्मनिर्भरता पर जोर दिया जा रहा था तब उसके चरम दौर में भारत मशीनरी से लेकर पूंजी और तकनीक से लेकर हथियार और यहां तक कि कलम भी आयात कर रहा था। स्वदेशीकरण के प्रयासों के बावजूद आयात पर हमारी निर्भरता बढ़ती रही। तेल की बात करें तो हम अपनी जरूरत का 85 फीसदी आयात करते हैं।
एक ओर जहां हरित क्रांति ने देश को अमेरिका के दबाव से निजात दिलाई थी जो सन 1960 के दशक में अकाल से जूझ रहे भारत को गेंहूं की आपूर्ति करते हुए ऐसा कर रहा था। तो दूसरी ओर इलेक्ट्रॉनिक चिप्स से लेकर सौर ऊर्जा पैनलों तक आत्मनिर्भरता से जुड़ी परियोजनाओं का अर्थ है अंतरराष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखलाओं से मजबुत संबंध और घरेलू उत्पादन इकाइयों के लिए खतरा क्योंकि वे आयात पर निर्भर हैं।
याद करें कैसे एक कील की कमी से एक साम्राज्य गंवा दिया गया। कील को घोड़े की नाल में ठोका जा सकता था और राजा घोड़े पर बैठकर युद्ध में जा सकता था। जबकि छोटी इलेक्ट्रॉनिक चिप्स की कमी ने भारी भरकम ऑटोमोटिव सेक्टर को परेशानी में डाल दिया है। कल को कोबाल्ट या लिथियम की कमी से बैटरी उत्पादन प्रभावित हो सकता है। मेलामाइन फेनोल और फेस विनीयर की कमी प्लाइवुड और पैनल तथा लेमीनेट उद्योग को संकट में डाल सकता हैं।
चीन में कोविड बढ़ने से लॉकडाऊन लगने से शंघाई आदि पोर्ट का काम काज बाधित होने के कारण सभी तरह के कल पुर्जो की आपूर्ति रूकने से टिकाऊ उपभोक्ता उत्पादो के निर्माण में दिक्कतें आ रही हैं।
हम खुद को पूरी मूल्य श्रृंखला के उतार-चढ़ाव से नहीं बचा सकते। दुनिया में कोई अर्थव्यवस्था ऐसी नहीं है जो पूरी तरह अपने बलबूते पर हो। व्यापारिक साझेदारों पर निर्भरता आधुनिक अर्थव्यवस्था में आम है। समझदारी इसमें है कि अपने देश में आपूर्तिकर्ता तलाशकर चीन जैसे शत्रु देश पर निर्भरता घटाई जा सके हालांकि अधिकांश उत्पादों में चीन इकलौता आपूर्तिकर्ता नहीं है, लेकिन वह प्रतिस्पर्धी कीमत वाला अवश्य है।
उस लिहाज से देखें तो विनिर्माण को व्यवहार्य बनाने में कई तरह की दिक्कतें है फिर भी घरेलू क्षमताएं विकसित करने की गहन आवश्यकता है। कृषि वाणिकी से अपने लिए कोर, फेस वीनीयर एवं इमारती लकड़ी की आपूर्ति का लक्ष्य तय किया जा सकता है, जो संभाव्य है। इसके अलावा विभीन्न केमीकलों के आयात का विकल्प अगर घरेलु निर्माण से पूरा हो सके तो देश की आत्मनिर्भरता का लक्ष्य पूरा किया जा सकेगा।
किसी एक की समस्या किसी दूसरे के लिए उस समस्या को सुलझाने का अवसर सिद्ध हो सकती है। आज भारत के पास ग्लोबल सप्लाई चौन की समस्याओं का समाधान है। चीन अपनी दक्षता, उत्पादकता, उचित लागतों और बेहतरीन बुनियादी ढांचे के चलते दुनिया का मैन्युफैक्चरिंग किंग बन गया था। पूरी दुनिया चीनी माल खरीदने के लिए आतुर हो गई थी। लेकिन आज चीन पर वही निर्भरता सबके लिए मुश्किलें खड़ी कर रही है। अब जाकर दुनिया की कंपनियां उस बात को सुनने के लिए तैयार हैं, जिसे हम वर्षों से कह रहे हैं – मेक इन इंडिया।
लेकिन हमें किसी भुलावे में नहीं रहना चाहिए। चीन का मौजूदा संकट वर्षो में एक बार निर्मित होने वाली परिस्थिति है। इसलिए भारत के पास खुद को चीन के विकल्प के रूप में पेश करने के लिए सीमित मात्रा में समय और अवसर हैं। कोविड और लॉकडाउन देर – सबेर चीन में भी खत्म होंगे। तब दुनिया चीन की मैन्युफैक्चरिंग समस्याओं को उसी तरह भूल जाएगी, जैसे आज भारत में लोग भूल गए पिछले साल कोविड ने क्या तबाही मचाई थी। जैसे ही रास्ता और टिकाऊ चीनी माल फिर से बाजार में आने लगेगा , दुनिया अपनी परिपाटी पर लौट आएगी। इसलिए निवेशकों को आज ही कुछ करना होगा। कुछ करने का सही समय है।
सुरेश बाहेती || 9050800888