How should India prepare for Recession?


“There is now a 98% chance of a global recession”, stock markets around the world, including in India, Plunged over the same fears, and many currencies, including the rupee, dipped as soon as the report was released by Ned Davis Research.

The Reserve Bank of India’s (RBI’s) monetary policy committee (MPC) will meet sooner, and consensus estimates point to a 0.5 percentage point (500 basis point or bps) increase. It seems that these fears are real.

Most institutional and private forecasters believe that the forthcoming winter will usher in a long economic winter of slow growth, if not outright contraction.

The Organization for Economic Cooperation and Development (OECD), which released its Interim Economic Outlook Report on September 26, expects global gross domestic product (GDP) to grow at just 2.2% in 2023, 60 bps, one basis point is one hundredth of a percentage point, lower than what it projected in June.

The situation is much worse for advanced economies. The euro area is expected to grow at 0.3% (June forecast was 2%) and the US is expected to grow at 0.5% (June forecast was 1.2%).

How will this affect the Indian economy?

OECD has retained India’s growth estimate for 2022-23 at 6.9%, and S&P at 7.3%.

What should India’s response be?

Pranab Sen, India’s former chief statistician, said economic policy should guard against adventure. We will have to accept that there is going to be a deceleration in the growth rate of the economy as the export engine will slow because of the global slowdown and domestic demand, both from the consumption and investment side, is yet to gather momentum.


IMF's warning on recession 


भारत को मंदी की तैयारी कैसे करनी चाहिए?


“वैश्विक मंदी की अब 98 फीसदी संभावना है”, नेड डेविस रिसर्च के आंकड़ों की धोषणा करते ही भारत सहित दुनिया भर के शेयर बाजार उस डर से डूब गये और रुपया समेत कई मुद्राएं डूब गईं।

भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) जल्द ही बैठक करेंगी और आम सहमति का अनुमान 0.5 प्रतिशत बिंदु (500 आधार बिंदु) की वृद्धि की ओर इशारा करता है। अनुमान है कि ये डर सही हैं।

अधिकांश संस्थागत और निजी पूर्वानुमानकर्ताओं का मानना है कि आगामी सर्दी धीमी वृद्धि की लंबी आर्थिक सर्दी की शुरुआत करेगी यदि एकमुश्त संकुचन ना भी हो।

आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी), जिसने 26 सितंबर को अपनी अंतरिम आर्थिक आउटलुक रिपोर्ट जारी की, को उम्मीद है कि वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 2023 में सिर्फ 2.2 प्रतिशत, 60 बीपीएस की दर से बढ़ेगा, एक आधार बिंदु एक प्रतिशत अंक का सौवां हिस्सा है। जो जून में इसके अनुमान से काफी कम है।

उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के लिए स्थिति बहुत खराब है। यूरो क्षेत्र 0.3 प्रतिशत (जून का पूर्वानुमान 2 प्रतिशत) और अमेरिका 0.5 प्रतिशत (जून का पूर्वानुमान 1.2 प्रतिशत) पर बढ़ने की उम्मीद है।

यह भारतीय अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित करेगा?

ओईसीडी ने 2022-23 के लिए भारत के विकास अनुमान को 6.9 प्रतिशत और एसएंडपी को 7.3 प्रतिशत पर बरकरार रखा है।

भारत की प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिए?

भारत के पूर्व मुख्य सांख्यिकीविद् प्रणब सेन ने कहा कि आर्थिक नीति को जोखिम लेने से बचना चाहिए। हमें यह स्वीकार करना होगा कि अर्थव्यवस्था की विकास दर में मंदी होने जा रही है क्योंकि वैश्विक मंदी और घरेलु मांग में खपत और निवेश दोनों तरफ से कमी के कारण ‘निर्यात इंजन धीमा हो जाएगा‘ जिसे गति मिलना अभी बाकी है।


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