Editorial 2021

 

The time has come for us to acquire the ability to lead the world in Hi-Technic and technology.

Banyans do not grow in pots; we have to break our pots to become banyans.



To make the nation self-reliant one has to acquire the latest technical research and technology. The initiative taken by the government for ‘Make-in-India’ will have to be taken advantage of. Self-reliance in technic and technology will not only keep us away from the symbols of slavery, but also become so powerful that no one can threat our supremacy. Be it the creation of Tejas and Brahmos or the success of Chandrayaan mission, India is continuously moving ahead in this field as well.

Research and innovation are necessary to avoid dependency on other nations in the means of national interest. The use of technology is increasing continuously in the country. The program of Digital India has spread technology to every nook and corner of the country. The success of the Aadhaar program and the ease of the people towards digital payments has shown the country’s will in this area. It needs to be strengthened further. The time has come for us to acquire the ability to lead the world in Hi-Technic and technology.

We Indians have a habit of forgetting. After a span our sense of nationalism falls asleep. It is easy to wake a sleeping person, but if he is not sleeping, he is lying down with his eyes closed, then how to wake him up? This is a cause for great concern. In the last 75 years, many people who care only for themselves have been born in the country and those who care about the country have become less.

Everyone talks about becoming a banyan tree, but they all are growing in pots. Banyans do not grow in pots; we have to break our pots to become banyans. These are pots of wrong thinking, not having a good attitude towards others, of negativity and criticality in everything.

Banyan becomes the one who thinks good for everyone, works for everyone. Those who do not see the negative, there is positive energy in them.

Let us take a pledge in this nectar period that we will move forward with a positive spirit, take pride in our heritage, uproot every sign of slavery, every symbol and join hands in the progress of the country with unity, organization and discipline. Will contribute everything possible. If every Indian takes this pledge, then when India is celebrating the 100th anniversary of independence, at that time we will be in a position to lead the world and regain the glorious spirit of Jagadguru.

सुरेश बाहेती
9050800888



समय आ गया है कि हम तकनीक और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विश्व का नेतृत्व करने की क्षमता हासिल करें।

गमलों में बरगद नहीं उगा करते, बरगद बनने के लिए अपने गमले तोड़ने पड़ते है।



राष्ट्र को आत्मनिर्भर बनाने के लिए नवीनतम तकनीक और प्रौद्योगिकी को प्राप्त करना होगा। सरकार ने मेक इन इंडिया की जो पहल की है, उसका लाभ उठाना होगा। तकनीक और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता से हम लगातार गुलामी के प्रतीकों से दूर हटेंगे ही, साथ ही इतने शक्तिशाली भी हो जाएंगे कि हमारी तरफ कोई आंख उठाकर देख भी नहीं सकेगा। तेजस और ब्रह्योस का निर्माण हो या चंद्रयान मिशन की सफलता, भारत लगातार इस क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है। 

शोध और नवाचार इसलिए आवश्यक हैं कि वह स्थिति ही न आए कि हमें राष्ट्रहित साधन में अन्य राष्ट्रों पर निर्भर रहना पड़े। देश में तकनीक का प्रयोग लगातार बढ़ रहा। डिजिटल इंडिया के कार्यक्रम ने तकनीक का विस्तार देश के कोने-कोने तक पहुंचा दिया है। आधार कार्यक्रम की सफलता और डिजिटल पेंमेंट के प्रति लोगों की सहजता ने इस क्षेत्र में देश की इच्छाशक्ति को दिखाया है। इसे और मजबूत करने की आवश्यकता है। समय आ गया है कि हम तकनीक और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विश्व का नेतृत्व करने की क्षमता हासिल करें। 

हम भारतवासियों को भूलने की आदत है। थोड़ी-थोड़ी देर में हमारा राष्ट्रबोध सो जाता है। सो चुके आदमी को उठाना आसान है, लेकिन अगर वह सो नहीं रहा है सिर्फ आखें बंद करके लेटा है तो उसको कैसे उठाएं ? यह बहुत बड़ी चिंता का कारण है। विगत 75 वर्ष में सिर्फ अपनी चिंता करने वाले लोग देश में बहुत पैदा हो गए और दश की चिंता करने वाले कम हो गए। 

बरगद बनने की बात सब करते हैं, लेकिन वे सब उगते गमलों में है। गमलों में बरगद नहीं उगा करते, बरगद बनने के लिए अपने गमले तोड़ने पड़ते है। ये गमले हैं – गलत सोच के, दूसरों के प्रति अच्छा भाव न रखने के, हर चीज में नकारात्मकता और आलोचनात्मकता के। 

बरगद वही बनता है जो सबके लिए अच्छा सोचते है, सबके लिए काम करता है। जो नकारात्मक नहीं देखते है, उसी में सकारात्मक ऊर्जा रहती है। 

आइए इस अमृत काल में यह संकल्प लें कि हम सकारात्मक भाव से आगे बढ़ेंगे, अपनी विरासत पर गर्व करेंगे, गुलामी के हर चिन्ह को, हर प्रतीक को उखाड़ फेकेंगे तथा एकता, संगठन और अनुशासन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर देश की प्रगति में अपना हरसंभव योगदान देंगे। 

यदि प्रत्येक भारतवासी ने यह प्रण ले लिया, तो जब भारत स्वाधीनता की 100वीं वर्षगांठ मना रहा होगा, उस समय हम विश्व को नेतृत्व देने की स्थिति में होंगे और जगद्गरू के यशस्वी भाव को पुनः प्राप्त करेंगे।

सुरेश बाहेती

9050800888