The circulation of cash decreased as a ratio of GDP

According to the RBI data, the circulation of cash in the country’s economy is increasing and now it has also crossed the figure of Rs 31 lakh crore.

Prime Minister Narendra Modi announced demonetization of Rs 500 and Rs 1,000 on November 8, 2016. After that, new notes of Rs 2,000 and Rs 500 were introduced. While the primary objective of the demonetization exercise was to eliminate black money, another objective was to accelerate digital payments.

The COVID-19 pandemic led to a nationwide lockdown in 2020 and further boosted digital transactions. UPI benefited the most in this. However, the dependence on cash did not decrease. Before the demonetization exercise, the public had Rs 17 lakh crore currencies, which have now increased to about Rs 31 lakh crore.

At present, the share of cash in the total economy, if seen in percentage, is less than the demonetization implemented in the year 2016. While the size of the economy has grown by 1.7 times during this period. Therefore, the total figure of cash circulation should be seen in the right perspective.

The country’s nominal GDP growth rate in FY2016 stood at 10.5 per cent while cash in circulation registered a growth rate of 15.5 per cent. Now this share has come down to 11.8 percent in the latest figures.

It is very wrong that we are comparing the total amount of cash in circulation with the total amount of cash in circulation in the year 2016.


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जीडीपी के अनुपात में नकदी का प्रचलन घटा


आरबीआइ के आंकड़ें के मुताबिक, देश  की इकोनमी में नकदी का प्रचलन बढ़ता जा रहा है और अब यह 31 लाख करोड़ रूपये के आंकड़े को भी पार कर गया हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर, 2016 को 500 और 1,000 रूपये की नोटबंदी की घोषणा की थी। उसके बाद 2,000 और 500 रूपये के नए नोट लाए गए। नोटबंदी की कवायद का प्राथमिकता मकसद काले धन का खात्मा था, वहीं एक और मकसद डिजिटल भुगतान को गति देना भी था।

कोविड-19 महामारी के कारण 2020 में देशव्यापी  लॉकडाउन हुआ और इससे डिजिटल लेन-देन को और बढ़ावा मिला। इसमें सबसे ज्यादा लाभ यूपीआई को हुआ। बहरहाल नकदी पर निर्भरता कम नहीं हुई। नोटबंदी की कवायद के पहले जनता के पास 17 लाख करोंड़ रूपये मुद्रा थी, जो अब बढ़कर करीब 31 लाख करोड़ रूपये हो गई है।

अभी कुल इकोनमी में नकदी की हिस्सेदारी अगर प्रतिशत  में देखी जाए तो यह वर्ष, 2016 में लागू नोटबंदी से कम है। जबकि इस दौरान इकनोमी का आकार 1.7 गुना बढ़ा है। ऐसे में नकदी प्रचलन के कुल आंकड़े को सही परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए।

वित्त वर्ष 2016 में देश  की नामिनल जीडीपी ग्रोथ रेड 10.5 प्रतिशत  थी जबकि प्रचलन में नकदी में 15.5 प्रतिशत  की वृद्धि दर दर्ज की गई थी। अब ताजे आंकड़ों में यह हिस्सेदारी घटकर 11.8 प्रतिशत  रह गई है।

यह बहुत ही गलत है कि प्रचलन में नकदी की कुल राशि  को हम वर्ष 2016 में प्रचलन में नकदी की कुल राशि  से तुलना कर रहे है।


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