Ply Insight February 23
- फ़रवरी 11, 2023
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Now all the surveys are forecasting 2023 to be more pathetic than the passed (two) years. Perhaps the economists assume that, despite hard work, our efforts are not going to get that much reward. But those who will pass the time patiently, will not only survive, but also see a very spectacular rise in the years to come.
We are not able to imagine, how much the major economic powers of the world are being shaken. Businesses of all the countries like China, America, and Europe etc. are bleeding. After the Corona pandemic, the business systems had collapsed so widely, that it demolished all previous mathematics & ideologies.
Now all the surveys are forecasting, 2023 to be more pathetic, than the passed (two) years. Perhaps the economists assume that, despite hard work, our efforts are not going to get that much reward. But those who will pass the time patiently, will not only survive, but also see a very spectacular rise in the years to come.
Looking at the global conditions, the Indian market is still probably standing firm. Along with the political leadership, the understanding and patience of the entire business class, is the main reason behind this.
The central government has massively increased capital expenditure for the third consecutive year, for the next financial year amid fears of a global economic slowdown. Despite the headwinds of the impending slowdown in western economies, India’s growth is expected to be sustained on the back of increased investment in infrastructure.
Under the PMAY Pradhan Mantri Awas Yojana, the government gives funds to build houses to those people who do not have a pucca house. This amount is 1.20 lakh for plains and 1.30 lakh for hilly areas.
Last year this budget was for Rs 48,000 crore, which has been increased by 66 percent to Rs 79,000 crore this year. All these expenses may not have a direct impact on the plywood and panel market. But when this money will flow in the market, it will have an indirect effect on the entire economy.
The main concern is the lack of demand in the market. Exports must increase, to overcome the situation, over the domestic market. Apart from South India, many business houses in India, have successfully been able to increase their exports. But their number is negligible.
The participation of all small and big brands, and most of the MSME category producers, should have maximum participation in exports, then only our market math will go on its right track.
सुरेश बाहेती
9050800888
अब सारे सर्वेक्षण 2023 को पिछले दो सालों के मुकाबले अधिक तकलीफ देह बता रहे हैं, तो उसके पीछे अर्थशास्त्रीयों, की सोच शायद यही है, कि कड़ी मेहनत के बावजुद श्रम का उतना प्रतिफल नहीं मिलने वाला है। लेकिन जो धैर्यपूर्वक टिके रहेंगे, वह न केवल बचे रहेंगे, बल्कि आने वाले कुछ वर्षोें में बहुत शानदार उत्थान देखेंगे।
हमें अंदाज नहीं हो पा रहा है, कि विश्व की महान अर्थशक्तियां कैसे डावाडोल हो रही हैं। चीन, अमेरिका, यूरोप आदि सभी देशों के व्यापार रक्तरंजित हो रखें है। कोरोना संक्रमण के बाद से व्यापारिक व्यवस्थाएं इतने व्यापक रूप से चरमरा गई थी, कि उसने पिछले सभी गणितों – विचारधाराओं को ध्वस्त कर दिया।
अब सारे सर्वेक्षण 2023 को पिछले दो सालों के मुकाबले अधिक तकलीफ देह बता रहे हैं, तो उसके पीछे अर्थशास्त्रीयों, की सोच शायद यही है, कि कड़ी मेहनत के बावजुद श्रम का उतना प्रतिफल नहीं मिलने वाला है। लेकिन जो धैर्यपूर्वक टिके रहेंगे, वह न केवल बचे रहेंगे, बल्कि आने वाले कुछ वर्षोें में बहुत शानदार उत्थान देखेंगे।
वैश्विक परिस्थितियों को देखते हुए, भारतीय बाजार फिर भी शायद स्थिर खड़ा है। इसके पीछे राजनैतिक नेतृत्व के साथ-साथ, समस्त व्यापारी वर्ग की समझबुझ और धैर्य ही बड़ा कारण है। केंद्र सरकार ने वैश्विक आर्थिक नरमी की आशंका के मद्देनजर, अगले वित्त वर्ष के लिए, लगातार तीसरी बार पुंजीगत खर्च में व्यापक इजाफा किया है। पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं में आसन्न नरमी के प्रतिकुल असर के बावजुद, बुनियादी ढ़ाचे पर निवेश बढ़ाने से, भारत की वृद्धि बरकरार रहने की पूरी आशा है।
च्ड।ल् प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत, सरकार उन लोगों को घर बनाने के लिए राशि देती है, जिनके पक्के घर नहीं है। यह राशि 1.20 लाख मैदानी और 1.30 लाख पहाड़ी इलाकों के लिए है। पिछले साल यह बजट 48,000 करोड़ रू था, जिसे इस साल 66 प्रतिशत बढ़ाकर 79000 करोड़ रू कर दिया गया है। इन सारे खर्च का, संभवतः प्लाईउड और पेनल बाजार पर सीधा असर उतना ना पड़े। लेकिन जब बाजार में यह पैसा आएगा, तो इसका परोक्ष प्रभाव पूरे अर्थतंत्र पर पड़ेगा।
मुख्य चिंता बाजार में मांग की कमी ही है। इसके लिए घरेलु बाजार से इतर निर्यात बढ़नी ही चाहिए। दक्षिण भारत के अलावा भी भारत के कई संस्थान, सफलतापूर्वक अपने निर्यात को बढ़ाने में सफल हुए है। लेकिन इनकी संख्या नगण्य है। छोटे बड़े सभी ब्रांड, और अधिकांश MSME श्रेणी के उत्पादको की भागीदारी निर्यात में ज्यादा से ज्यादा होगी, तभी हमारे बाजार का गणित अपनी सही राह पर चलेगा।
सुरेश बाहेती
9050800888