Vaidyanathan Hariharan – Kalpaka Research and Development Foundation
- फ़रवरी 13, 2023
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Sector is struggling due to
break-neck competition and massive spread of substandard products
The Trust-Factor on plywood as a product, is fast diminishing, due to continuous dumping of substandard products into the market.
What changes you feel in Market behaviour?
Plywood sector is going through a lot of organizational, infrastructural and consumer-based changes over the past 5 years. As more and more people are becoming aware of quality aspects and the need to purchase quality material, the pressure is increasing on plywood industries to make better quality products.
However, the organised players – small & big, are struggling to maintain profitability due to break-neck competition from unorganised players and massive spread of substandard products in the market, at throw away prices.
How does it effect?
As responsible industrial citizen, we must realise that such unscrupulous practices will only dent our own sector. The Trust-Factor on plywood as a product, is fast diminishing, due to continuous dumping of substandard products into the market.
With ever increasing credit expectations and payment cycles, along with stiff competition in prices, it is important for manufacturers in the sector, to remain reliable and trustworthy, with consistent quality and business relationships.
Timber availability for Plywood industry?
Farmers are very wise and intelligent people. We are all living peacefully and satisfactorily only because of them, and their prudence. They are the best judge about the market dynamics. They are much more aware of the pro and cons of the statistics than us.
So, I personally believe we need not worry about raw material requirements, as farmers would quickly adjust their farming practices to accommodate timber requirements too, in the coming years.
Yes, there will be short term shortages and resulting panic among the industry regarding timber raw material, as many large size MDF & plywood plants are being planned. But I believe any shortage of raw materials would be over the short term, and farmers would quickly ‘feed us’ with required timber, as they have always fed us with food & cereals, since eons.
Any coordination between farmers and industrialists to boost Agro forestry?
At present, I do not see much coordination between farmers and industrialists directly. In India, we have a systematic approach based on tradesmen, in every field. This is not limited to timber sector alone.
Business happens more by Trust, than by paper-work. Since ancient times, we have always dealt with others in society based on trust, relationship-building and our basic cultural ethos. This makes Indian raw materials market very unique. Any change of structure in the market would take time to evolve and is a lengthy process which will have its own organisational problems too.
However, it is inspiring to see some big companies have also started their own systems of Agroforestry planning. But the general system of timber trading in India is here to stay. And we need not worry much about it. As i have said earlier, our farmers/annadatas are much more wise & intelligent than us. And I have full confidence in their ability to feed us what we need, in the way they chose as appropriate.
Timber prices?
Regarding timber price, it is always market dependent as well as veneer yield dependent. Even without discussing with each other there is a general consensus within the industry and farmers about the pricing that can be achieved for timber used in the plywood and panel industries. Both the industries and farmers understand, respect & appreciate this fact. So the timber prices have been decided on a mutual ‘silent’ consensus I would say.
Conclusion?
Government should incentivise small and medium panel and plywood industries and protect against imports of finished plywood panels which are jeopardising survival of small units. Plywood is one of the few remaining industry sectors which can provide large scale employment opportunities to the semi skilled and unskilled labour in the country. This must be taken into serious consideration when the governance makes policies for this sector.
Positive and facilitating policies with regard to reduction of chemical costs, freight costs and other administrative costs would make Indian Plywood & Panel sector more competitive with respect to export possibilities and better utilisation of timber and making quality products.
गला काट प्रतिस्पर्धा और घटिया उत्पादों के प्रसार से
उद्योग में संघर्श बढ़ रहा
बाजार में घटिया उत्पादों की निरंतर डंपिंग के कारण प्लाइवुड तेजी से एक उत्पाद के रूप में विश्वास खो रहा है।
बाजार की वर्तमान परिस्थितियों में परिवर्तन
प्लाइवुड उद्योग क्षेत्र पिछले 5 वर्षों में बहुत सारे संगठनात्मक, ढांचागत और उपभोक्ता-आधारित परिवर्तनों से गुजर रहा है। जैसे-जैसे अधिक से अधिक लोग गुणवत्ता के पहलुओं और गुणवत्तापूर्ण सामग्री खरीदने की आवश्यकता के बारे में जागरूक होते जा रहे हैं, वैसे-वैसे प्लाईवुड उद्योगों पर बेहतर गुणवत्ता वाले उत्पाद बनाने का दबाव बढ़ रहा है।
हालांकि, संगठित खिलाड़ी – छोटे और बड़े, असंगठित खिलाड़ियों से गला काट प्रतिस्पर्धा और बाजार में घटिया उत्पादों के बड़े पैमाने पर प्रसार के कारण लाभप्रदता बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
यह कैसे फर्क डाल रहा है?
जिम्मेदार औद्योगिक नागरिक के रूप में, हमें यह महसूस करना चाहिए कि इस तरह की बेईमान प्रथाओं से हमारे अपने क्षेत्र को ही नुकसान होगा, क्योंकि बाजार में घटिया उत्पादों की निरंतर डंपिंग के कारण प्लाइवुड तेजी से एक उत्पाद के रूप में विश्वास खो रहा है।
लगातार बढ़ती क्रेडिट अपेक्षाओं और भुगतान चक्रों के साथ-साथ कीमतों में कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण, इस क्षेत्र के निर्माताओं के लिए यह महत्वपूर्ण हो जाता है, कि वे लगातार गुणवत्ता और व्यावसायिक संबंधों के साथ भरोसेमंद और विश्वास करने लायक बने रहें।
प्लाईवुड उद्योग के लिए लकड़ी उपलब्धता – वर्तमान परिदृश्य
किसान बहुत समझदार और ज्ञानी लोग होते हैं। हम सब उन्हीं की, और उनकी सूझ-बूझ की वजह से ही चैन और संतोष से जी रहे हैं। वे बाजार की गतिशीलता को सबसे अच्छी तरह जानते हैं। वे इन पहलुओं के बारे में हमसे कहीं अधिक जानते हैं।
इसलिए, मेरा व्यक्तिगत रूप से मानना है कि हमें कच्चे माल की आवश्यकताओं के बारे में चिंता करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि किसान आने वाले वर्षों में लकड़ी की आवश्यकताओं को समायोजित करने के लिए अपनी कृषि पद्धतियों को भी जल्दी से परिवर्तित और समायोजित कर लेंगे।
हां, लकड़ी (कच्चे माल) को लेकर अल्पावधि में कमी और इसलिए घबराहट होगी, क्योंकि कई बड़ी एमडीएफ और प्लाईवुड संयंत्रों की योजना बनाई जा रही है। लेकिन मेरा मानना है कि कच्चे माल की कोई भी कमी अल्पावधि में होगी, और किसान जल्दी से आवश्यक लकड़ी की हमें आपूत्र्ति कर देंगें। क्योंकि उन्होंने हमें युगों से हमेशा भोजन और अनाज खिलाया है।
किसानों और उद्योगपतियों के बीच कृषि वाणिकी को बढ़ावा देने के लिए कोई समन्वय।
फिलहाल मुझे किसानों और उद्योगपतियों के बीच सीधे तौर पर ज्यादा तालमेल नजर नहीं आता। भारत में, हमारे पास हर क्षेत्र में व्यापारियों के आधार पर एक व्यवस्थित दृष्टिकोण है। यह केवल लकड़ी क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है।
बिजनेस पेपर वर्क से ज्यादा आपसी विश्वास से होता है। प्राचीन काल से ही हम समाज में दूसरों के साथ भरोसे, संबंध-निर्माण और अपने बुनियादी सांस्कृतिक लोकाचार के आधार पर व्यवहार करते आए हैं। यह भारतीय कच्चे माल के बाजार को बहुत अनूठा बनाता है। बाजार में संरचना के किसी भी परिवर्तन को विकसित होने में समय लगेगा और यह एक लंबी प्रक्रिया है जिसकी अपनी संगठनात्मक समस्याएं भी होंगी। हालांकि, उत्साहवर्द्धक बात यह भी है कि कुछ बड़ी कंपनियों ने एग्रोफोरेस्ट्री प्लानिंग के अपने सिस्टम भी शुरू किए हैं।
लेकिन भारत में लकड़ी के व्यापार की सामान्य व्यवस्था बनी रहेगी। और हमें इसके बारे में ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है। जैसा कि मैंने पहले कहा है, हमारे किसान/अन्नादाता हमसे कहीं अधिक बुद्धिमान और चतुर हैं। और मुझे उनकी क्षमता पर पूरा भरोसा है कि वे अपने तरिके से हमारी जरूरतों को पूरा करने की क्षमता रखते हैं।
लकड़ी की कीमतें?
लकड़ी की कीमत हमेशा बाजार के साथ-साथ विनियर की उपज पर भी निर्भर करता है। यहां तक कि एक-दूसरे के साथ चर्चा किए बिना भी उद्योग और किसानों के बीच प्लाईवुड और पैनल उद्योगों में उपयोग की जाने वाली लकड़ी के लिए मूल्य निर्धारण के बारे में एक आम सहमति है। उद्योग और किसान दोनों इस तथ्य को समझते हैं, सम्मान करते हैं और इसकी सराहना करते हैं। तो मैं कहूंगा कि लकड़ी की कीमतें आपसी ’चुप’ सहमति से तय की गई हैं।
निष्कर्ष
सरकार को छोटे और मध्यम पैनल और प्लाईवुड उद्योगों को प्रोत्साहित करना चाहिए और तैयार प्लाईवुड पैनलों के आयात से रक्षा करनी चाहिए जो छोटी इकाइयों के अस्तित्व को खतरे में डाल रहे हैं। प्लाइउड उन कुछ बचे हुए उद्योगों की श्रैणी में आता है जो काफी बड़ी मात्रा में कुशल और अकुशल कारीगरों को समायोजित कर सकता है। इस तथ्य को सरकार को अपनी नीतियां बनाते वक्त जरूरी ध्यान में रखनी चाहिए।
सकारात्मक और सुविधाजनक ऐसी नीतियां बनाने की आवश्यकता है, जिनसे केमीकल, किराया और संगठनात्मक खर्च कम हों पायें। ताकि भारतीय प्लाइउड और पेनल उद्योग लकड़ी की बेहतर खपत करते हुए गुणवत्ता पूर्ण प्लाइउड बनाने और निर्यात करने में प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम हों।