BIS का गुणवत्ता नियंत्रण आदेशों पर जागरूकता कार्यक्रम
- सितम्बर 12, 2023
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भारतीय मानक ब्यूरो के हरियाणा शाखा कार्यालय ने लकड़ी उत्पादों पर हाल ही में गुणवत्ता नियंत्रण आदेशों पर उद्योग जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया।
कार्यक्रम में प्लाइवुड निर्माताओं ने शंका जाहिर की कि बीआईएस मानक अनिवार्य होने के बाद बने हुए सब स्टैडर्ड प्लाइवुड का क्या होगा। क्या उसे कबाड में फेंकना होगा?
इसके जवाब में BIS के निदेशक एवं प्रमुख सौरभ तिवारी ने बताया कि ऐसा नहीं है। मानक तय करते वक्त यह ध्यान रखा जाएगा कि अलग अलग श्रेणी के मानक अलग अलग होंगे। हमारा उद्देश्य है कि निर्माता को अपने उत्पाद की वाजिब कीमत मिले, लेकिन इसके साथ ही खरीददार को भी उत्पाद मे वह गुणवत्ता मिले जिसकी वह कीमत अदा कर रहा है। इसे ध्यान में रख कर बीआईएस मानक में संशोधन किए जा रहे है।
उन्होने बताया कि ब्लाक बोर्ड IS 1659 के लिए गजट नोटिफीकेसन की तारीख 10 अगस्त 2023 से लायसेंस लेना अनिवार्य कर दिया गया है। जिसमें बड़ी यूनिटों को 6 महीने लघु उद्योग को 9 महीने सुक्ष्म उद्योग के लिए 12 महीने की समय सीमा तय की गई है।
ब्यूरो के निदेशक एवं प्रमुख सौरभ तिवारी ने बताया कि ब्यूरो का एक ऐप है, इस एप पर, कोई भी उपभोक्ता जब भी बाजार से प्लाई खरीदेगा, तो आईएसआई नंबर को स्कैन करके यह पता कर सकता है कि मार्का सही है या फर्जी है। यदि मार्का फर्जी है तो इसकी शिकायत एप से ही की जा सकती है। इसके बाद ब्यूरो ऐसे विक्रेताओं के खिलाफ ठोस कार्यवाही करेगा। उन्होंने सभी निर्माताओं से यह भी अपील की, कि वह बीआईएस लाइसेंस ले लें या गतिमान रखें।
उन्होंने निर्माताओं की आशंका का जवाब देते हुए कहा कि बाजार में यदि फर्जी आईएसआई लगा कर कोई भी उत्पाद बेचता है, तो इसके लिए उपभोक्ताओं को भी जागरूक होना होगा। हालांकि, यह जागरूकता धीरे धीरे आएगी, जब उन्हें यह समझ में आ जाएगा कि गुणवत्ता युक्त उत्पाद से कितना फायदा है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अभी यह गुणवत्ता के मानक तय करने की प्रक्रिया शुरुआती दौर में हैं, एक बार अनिवार्य लायसेंस की प्रक्रिया का पहला चरण पूरा हो जाए, इसके बाद उन उत्पादकों पर भी शिकंजा कसा जाएगा, जो बिना BIS लाइसेंस के कम गुणवत्ता का माल तैयार कर रहें हैं।
कार्यक्रम में हरियाणा प्लाईवुड मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष जे के बिहानी ने कहा कि हरियाणा की प्लाईवुड इंडस्ट्री इन दिनों अत्यंत कठिन दौर से गुजर रही है। आज के दौर में हालात यह है कि यूनिट तेजी से बंद हो रही है। जो चल रही है, अपने आपको बचाने की कोशिस में किसी तरह से काम चला रहे हैं।
उन्होने आगे कहा कि बीआईएस रजिस्टर्ड इकाइयों पर सारे नियम लागू होंगे, लेकिन जो बीआईएस में खुद को रजिस्टर्ड नहीं कराएंगे उन पर मानको की बाध्यता नहीं होगी। इस तरह से तो कम गुणवत्ता की सस्ती प्लाईवुड बाजार पर कब्जा कर लेगी। अगर इन पर नियंत्रण नहीं रखा गया तो मानकों को मानने वाले बाजार से खुद व खुद बाहर हो जाएंगे। जो निर्माता मानकों को अपनाएंगे उन्हे गुणवत्ता का ध्यान रखना होगा, जिससे प्लाईवुड की उत्पादन लागत बढ़ जाती है। अभी उच्च गुणवत्ता को लेकर न तो उपभोक्ता को इतनी समझ है, न ही बाजार इसके लिए तैयार है।
उड टैकनॉलोजिस्ट्स एसोसियेसन के अध्यक्ष एससी जोली ने कहा कि लाइसेंस लेने वालों पर तो हर वक्त कार्यवाही की तलवार टंगी रहेगी, जबकि जो निर्माता लाइसेंस नहीं लेंगे वह सरेआम कम गुणवत्ता वाली सस्ती प्लाइवुड को बाजार में बेचेंगे। इस पूरे माहौल में कैसे मानकों को पूरा करने वाले निर्माता कामयाब हो सकते है। इस पर विचार किए बिना अनिवार्य बीआईएस मानकों का औचित्य कैसे पूरा हो पाएगा। विदेश से आयातित सस्ते प्लाईवुड की गुणवत्ता पर नियंत्रण कैसे होगा, इस पर भी विचार करना होगा।
इसके साथ ही प्लाईवुड या एमडीएफ बनाने वाले निर्माता का कोई उत्पाद बीआईएस मानक पर खरा नहीं उतरा तो उसके बेचने का तरीका क्या होगा, अन्यथा उत्पादन लागत तो बहुत ज्यादा बढ़ जाएगी, इसे लेकर भी भ्रम की स्थिति है। जब तक यह साफ नहीं हो जाती, तब तक उद्योगपति दुविद्या में रहेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि उत्पादन के दौरान बच जाने वाले कचरे से बनी प्लाई- बोर्ड के निर्माण को भी लेकर भी मानकों में स्पष्टता नहीं है।
ऑल इंडिया प्लाईवुड मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के प्रेसीडेन्ट देविंदर चावला ने कहा कि चर्चा इस बात पर होनी चाहिए कि BIS मानकों से उद्योग मजबूत हो। उद्योगों के लिए यह कठिन समय है। आज भारत में नेपाल, वियतनाम, चीन, थांईलैंड समेत कई देशों से सस्ती प्लाई आ रही है। जो हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती बन रही है। यह देश भारतीय बाजार में सस्ते माल को कम कीमत पर बेच रहे है। एैसे में हम कैसे गुणवत्ता युक्त प्लाईवुड से इसका मुकाबला कर पाएगे। आज रेट सबसे बडा मुद्दा बना हुआ है। बाजार सस्ते प्लाईवुड से भरा हुआ है और ग्राहक इसके पिछे है।
सबसे महत्वपूर्ण बात है कि मानक अभी भी पचास बर्श पहले बने हुए मानकों पर टिका हुआ है, जब जंगलों से परिपक्व लकड़ी से प्लाई बनती थी। अब तो कृशि वाणिकी के तीन से पांच सात वर्शों की लकड़ी से बन रही है। उन्होंने कहा कि बीआईएस के मानक अगर संशोधित नहीं हुए तो उद्योग को पूरी तरह से तबाह कर देंगे, उन्होंने जोड़ा।
वुड टेक्नोलॉजी एसोसिएशन के अध्यक्ष एस.सी. जॉली ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रम नियमित तौर पर होते रहने चाहिए, जिससे निर्माता और अधिकारियों के बीच विचारों का आदान-प्रदान होता रहे। यह उद्योग के लिए अति आवश्यक है।
बैठक के दौरान, प्लाईवुड निर्माताओं ने मांग की कि मरीन प्लाईवुड (आईएस 710) और शटरिंग प्लाईवुड (आईएस 4990) के मानकों में भी संशोधन करने की आवश्यकता है। मानक ऐसे होने चाहिए जो उद्योग उत्पाद के लिए उपयोगी हों। हर कोई गुणवत्ता चाहता है, लेकिन यह तभी संभव है, जब बाजार में व्यापक जागरूकता आए। इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित करना होगा कि प्रतिस्पर्धा के दौर में कैसे उधमी टिक पाता है।
कार्यक्रम का शुभारंभ यमुनानगर के मेयर मदन सिंह चौहान ने किया। उन्होंने कहा कि प्लाईवुड व लकडी उत्पाद के मानकों में बदलाव उद्योगपतियों को विश्वास में लेकर ही होना चाहिए। तभी इसके सार्थक परिणाम सामने आ सकते हैं।
बैठक में प्रणव चंद्रा, अध्यक्ष, यमुनानगर-जगाधरी चौंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री, ने भी भाग लिया।