Role of Technology in businesses

कर परिवर्तन की जो यात्रा जीएसटी से आरंभ हो कर डायरेक्ट टैक्स तक पहुंच गयी है, कर विभागों की तकनीकी आधारित डिजिटल व्यवस्था के विकास में दिख रही है।

अप्रत्यक्ष कर की आवश्यक रिपोर्टिंग ढांचा ने यह निर्दिष्ट किया है कि सभी करदाताओं को एक निर्दिष्ट प्रारूप में तय-समय में डाटा जमा करना होगा। एकाधिक स्रोतों से डेटा निकालने वाले ग्राहकों को इसे शीघ्रतापूर्वक और समय-समय पर फ़ॉर्मेट करना होता है, क्योंकि यह इनवोइसिंग, इनपुट क्रेडिट मैचिंग और कर रिटर्न फ़ाइलिंग जैसे प्रक्रियाओं को सुविधाजनक बनाने के लिए आवश्यक है।

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प्रत्यक्ष कर भुगतानों के मामले में, तकनीक का महत्वपूर्ण योगदान है। क्योंकि कंपनियों द्वारा किए जाने वाले 90 प्रतिशत भुगतानों में किसी न किसी भी प्रकार की कर कटौती (टीडीएस) की आवश्यकता होती है, जो 0.01 प्रतिशत से लेकर 30 प्रतिशत तक हो सकती है, और जटिलता के कारण इसे माइक्रोसॉफ्ट एक्सेल पर करना संभव नहीं है। इसके अलावा, आयकर रिटर्न फाइल करने के कार्य में व्यापक प्रलेखन भी है, जो व्यापार की प्रकृति पर निर्भर करता है, और इसका आकार 100 से 500 से अधिक पन्नों तक हो सकता है।

भारतीय कर विभाग पिछले 7-8 वर्षों में तकनीकीकरण में सबसे आगे रहा है, जिसमें कर पालन और अणुबंध को तय समय में ऑनलाइन, बनाने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। इसमें ई-फाइलिंग, ई-इनवॉइसिंग और फेसलेस कर मूल्यांकन जैसी अनेक पहलें शामिल हैं।

आगामी दिनों में, तकनीक की सहभागिता तेजी से बढ़ती रहेगीः इसका एक स्पष्ट उदाहरण है ओईसीडी द्वारा अनुशंसित पिलर 2 नियम जिससे 250 डेटा बिंदु आवश्यक होंगे।
विस्तृत कवरेज और अनिवार्य विस्तृत रिपोर्टिंग द्वारा बढ़ती हुई विस्तृत ब्यौरों की जांच सीधे कर संग्रह वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान के रूप में दिख रही है।

अंततः प्रत्येक कर लेनदेन के लिए सटीकता, सख्त समयरेखा का पालन और विस्तृत प्रलेखन की आवश्यकता में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है।

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