Is stability essential for the economy?

अब से मई 2024 के बीच विधानसभाओं और लोकसभा चुनाव में भारतीय मतदाताओं के समक्ष कई राजनीतिक विकल्प होंगे। हमारी चिंता यह होनी चाहिए कि हम ऐसे राजनेताओं को ना चुनें जो अर्थव्यवस्था की हालत और खस्ता कर दें। हमारी अर्थव्यवस्था के लिए शायद बेहतर यही है कि केंद्र में यथास्थिति बनी रहे।

विपक्षी दलों ने अपने गठजोड़ को इंडिया नाम दिया है। चिंता की असली वजह यह है कि इस इंडिया का पूरा नाम है- इंडियन नैशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस। यहां डेवलपमेंटल और इन्क्लूसिव यानी विकासात्मक और समावेशी शब्द का इस्तेमाल बताता है कि करदाताओं के पैसे का इस्तेमाल योग्य-अयोग्य सभी नागरिकों को निरूशुल्क तोहफे देने में किया जाएगा।

हमने देखा कि गैर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) दल पुरानी पेंशन योजना को चुन रहे हैं जो सरकारी नौकरियों से सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों को तयशुदा पेंशन देती है जबकि नई पेंशन योजना में कर्मचारियों को तयशुदा योगदान करना होता है। नई पेंशन योजना में पेंशन जीवन भर की नौकरी में एकत्रित राशि पर आधारित होती है, न कि राज्य सरकार द्वारा दी जाती है।

हमने देखा है कि कैसे कर्नाटक में सत्ता में आने की जद्दोजहद में कांग्रेस ने मतदाताओं को पांच गारंटी दीं। इन गारंटियों की बदौलत करदाताओं को सालाना 50,000 करोड़ रुपये से 60,000 करोड़ रुपये का बोझ उठाना पड़ सकता है। संक्षेप में कुछ लोगों को निःशुल्क चीजें देने की कीमत सार्वजनिक बेहतरी को चुकानी होगी।

अब तो कांग्रेस के साथ साथ बीजेपी सहित सभी दल इसे अन्य राज्यों में भी अपनाएगी। सबसे दिक्कतदेह बात यह है कि इंडिया गठबंधन के किसी दल ने आर्थिक मोर्चे पर सुधार को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की।

2014-24 इकलौता ऐसा दशक रहा जहां सरकार ने निरंतर सुधारों का प्रयास किया और किसी आंतरिक या बाहरी कारक के दबाव के बिना। यह तब हुआ जबकि 2014 और 2015 में दो बार सूखा पड़ा तथा 2020-22 में कोविड संकट उफान पर था। हालांकि, नोटबंदी ने अर्थव्यवस्था के उस हिस्से को नुकसान पहुंचाया जो नकदी का इस्तेमाल करता है। हालांकि इसकी वजह से आगे चलकर डिजिटल इकॉनमी ने जबरदस्त जोर पकड़ा।

ऋणशोधन अक्षमता और दिवालिया संहिता हो, वस्तु एवं सेवा कर या गरीबों को सब्सिडी देने की व्यवस्था में लीकेज दूर करना, कॉर्पाेरेट कर दरों में कटौती, रक्षा आपूर्ति की घरेलू खरीद पर जोर देना या उत्पादकता संबद्ध प्रोत्साहन की मदद से विनिर्माण को बढ़ाना, किसी भी सरकार के कार्यकाल में हमने इतने सुधार होते नहीं देखे।

कुल मिलाकर इस नए गठबंधन में जो दल हैं यानी क्षेत्रीय दल यह तय करेंगे कि केंद्र में क्या होगा। इसका नतीजा यह होगा कि राजकोषीय और सुधार के मोर्चे पर इसे कई समस्याएं होंगी। अब तक भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन बेहतर है, लेकिन एक खराब चुनाव नतीजे उसे दोबारा बेपटरी कर देगा। हम 2010 के बाद ऐसा देख चुके हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अभी ऐसा लग रहा है कि राजग इंडिया गठजोड़ से बेहतर साबित होगा। उम्मीद करनी चाहिए कि 2024 में राजनीतिक यथास्थिति बरकरार रहेगी। बिना उसके सुधारों के मोर्चे पर कोई प्रगति नहीं होगी बल्कि इसके उलट हमें कुछ विपरीत हालात का ही सामना करना पड़ सकता है।

इस विषय पर अंतहीन बहस हो सकती है कि मोदी के नेतृत्व में लोकतंत्र को क्षति पहुंची या नहीं लेकिन बिना आर्थिक वृद्धि और प्रगति के भी लोकतंत्र नहीं हो सकता।

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