वैश्विक व्यापार का बदलता दौर
- नवम्बर 28, 2023
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विश्व व्यापार गंभीर बदलाव के दौर से गुजर रहा है। अमेरिका और यूरोपीय संघ की सरकारों ने व्यापार नीति की बजाय औद्योगिक नीति पर जोर देना शुरू कर दिया है। वे विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के नियमों का पालन करने की बजाय स्थानीय उत्पादन और रोजगार को प्राथमिकता दे रही हैं।
अमेरिकी सरकार तो गैर-अनुपालन डब्ल्यूटीओ शुल्क लगा रही है और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए अच्छी-खासी सब्सिडी दे रही है। यूरोपीय संघ भी नई आयात बाधाओं को जायज ठहराने के लिए पर्यावरण सुरक्षा को मुद्दा बना रहा है। आर्थिक स्थिरता और राजनीतिक प्रभुत्व जोखिम होते हैं खुले व्यापार के। यह एक नई दिशा है।
अमेरिका ने शुरू में कंपनियों के मुनाफे को बढ़ाने के लिए विनिर्माण को आउटसोर्स करने को बढ़ावा दिया। जिसके अनुसार कारोबारों को लाभ को ही सबसे अधिक तरजीह देनी चाहिए। हालांकि इसके अप्रत्याशित परिणाम हुए और चीन दुनिया के विनिर्माण केंद्र के रूप में उभरने लगा।
चीन को अमेरिकी टेक्नोलॉजी और सैन्य प्रभुत्व के लिए खतरा मानते हुए अमेरिका ने इसके जवाबी प्रयास शुरू किए। चीन के अनेक आयात पर ऊंचे आयात शुल्क लगा दिए, लेकिन चीन पर लगाम कसना ही एकमात्र रणनीति नहीं थी। इसके साथ-साथ अमेरिका ने व्यापक पैमाने पर पुर्नऔद्योगीकरण कार्यक्रम की शुरुआत भी की, जिसमें घरेलू उत्पादन के लिए प्रोत्साहन शामिल थे। जिस अमेरिका ने 1970 से 2015 तक औद्योगिक नीति के मुकाबले खुले व्यापार को प्राथमिकता दी थी, उसके रुख में यह एक बहुत बड़ा बदलाव है।
यूरोपीय संघ भी पीछे नहीं रहा। अकेले वर्ष 2023 में उसने पांच महत्त्वपूर्ण नियमन लागू किए जिनमें मुख्य था वन कटाई नियमन और कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मेकैनिज्म से जुड़ा कानून। इन नियमों के कारण कृषि और औद्योगिक सामान के वैश्विक व्यापार पर विपरीत असर पड़ने की आशंका है। यूरोपीय संघ अपने किसानों और उद्योगों को अरबों डॉलर की सब्सिडी देता है जबकि दूसरे देशों द्वारा दी गई सब्सिडी की जांच कराना चाहता है।
इन बदलती परिस्थितियों में भारत कैसे अपने हितों को सुरक्षित कर सकता है। तमाम खामियों के बावजूद इस नई विनिर्माण व्यवस्था में भारत को महत्त्वपूर्ण देश के रूप में उभरने की संभावना है जिसे अमेरिका का समर्थन है।