The current conflict and situation is a challenge for India

भूराजनीतिक परिस्थितियां और बाजार से जुड़े घटनाक्रम भारत के आर्थिक दृष्टिकोण के लिए जोखिम बनकर उभरे हैं।

भूराजनीतिक नजरिये से देखें तो इजरायल-हमास के बीच छिड़ी लड़ाई जारी है। इसमें और तेजी आने की अनिश्चितता बनी हुई है। अगर पश्चिम एशिया में छिड़ा संघर्ष बढ़ता है तो कच्चे तेल की कीमतों में और इजाफा हो सकता है।

भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल रुपये को स्थिर रखने के लिए किया है जबकि ईंधन की खुदरा कीमतें अपरिवर्तित हैं। रिजर्व बैंक की डॉलर की बिकवाली टिकाऊ तरलता को कम कर रही है और तेल विपणन कंपनियां पेट्रोल और डीजल के मामले में अंडर रिकवरी से जूझ रही हैं।

नीति निर्माता इन बचावों को कब तक कायम रख पाएंगे यह इस बात पर निर्भर करेगा कि झटके कितने गहरे और कितने लंबे चलने वाले हैं। अगर ये झटके अल्पकालिक हुए तो सुरक्षा बरकरार रह सकती है। बहरहाल, अगर झटके लंबे खिंचे तो कुछ बदलाव दिखेंगे।

उदाहरण के लिए रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा हस्तक्षेप के जरिये भारत की मुद्रा को बचाने की जितनी कोशिश करता है, मुद्रा भंडार में उतनी कमी आएगी। नकदी की तंगी की वजह से घरेलू ब्याज दरों में ऊपरी दबाव बन सकता है।

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इसी तरह निरंतर ऊंची तेल कीमतों का बोझ अगर ग्राहकों पर नहीं डाला गया तो वे राजकोषीय दबाव को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करेंगी।

बहरहाल अगर ये बाहरी दबाव लंबे समय तक कायम रहे और/अथवा ये बढ़े तो यह बात वृद्धि को प्रभावित करेगी। ऊंची तेल कीमतें व्यापार शर्तों पर असर डालेंगी। ज्यादा अनिश्चितता, कमजोर रुझान और सख्त मौद्रिक हालात निवेश के लिए सही नहीं माने जाते।

हमें अच्छे समय में, बुरे समय के झटकों से निपटने की तैयारी रखनी चाहिए। मौद्रिक नीति को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वास्तविक दरें बचत और निवेश की जरूरत को संतुलित करें तथा मुद्रास्फीति लक्ष्य के करीब हो। नियामकीय मानकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऋण निर्माण उत्पादक वजहों से हो, न कि केवल खपत के लिए।

भारत वैश्विक प्रभावों से अछूता नहीं रहेगा ऐसे में नीतिगत चपलता, विवेक और लचीलापन बहुत अहम होंगे।

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