जीएसटी व्यवस्था के तहत मुनाफा नियंत्रण
- अप्रैल 12, 2024
- 0
जीएसटी जब लागू किया गया तो माना गया था कि इसमें कंपनियों का कर में जो छूट मिल रही है व इसके साथ ही उत्पाद की बिक्री पर जो इनपुट जीएसटी वापस आया, इसका लाभ भी अंतिम उपभोक्ता तक बढ़ाया जाएगा।
इस पर नियंत्रण रखने के लिए 2017 में स्थापित किया गया निर्णायक प्राधिकरण, राष्ट्रीय मुनाफाखोरी रोधी प्राधिकरण (एनएए) का कार्यकाल दो साल का था। लेकिन इसे नवंबर 2022 तक दो बार बढ़ाया गया। बाद में यह जिम्मेदारी सीसीआई को दे दी गई।
यह व्यवस्था अलग अलग देशों में लागू जीएसटी व्यवस्था के विपरीत है। ऑस्ट्रेलिया के संदर्भ में यदि हम देखे तो वहां इस व्यवस्था को खत्म कर जीएसटी की शुरुआत करते हुए समान प्रावधान लागू किए गए थे।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने एफएमसीजी से लेकर रियल एस्टेट तक सभी क्षेत्रों में भारतीय उद्योग जगत द्वारा दायर कई रिट याचिकाओं का जनवरी के अंत में निपटारा किया। इसमें मुनाफे को नियंत्रित करने के प्रावधानों की संवैधानिक वैधता बरकरार रखने का आदेश दिया। इसमें कहा गया है कि केंद्रीय जीएसटी अधिनियम की धारा 171 का उद्देश्य, उपभोक्ताओं के कल्याण के सिद्धांतों पर आधारित है।
हालांकि कोर्ट ने इस तथ्य का स्वीकार किया कि ऐसे कुछ उदाहरण हो सकते हैं, जहां मुनाफे पर रोक लगाने के नियमों को मनमाने ढंग से लागू किया गया हो। जैसे संबधित क्षेत्र की कार्यवाही के दायरे को बढ़ा दिया गया हो या ऐसे कुछ वैध कारकों की पहचान में विफल रहा हो। मसलन लागत वृद्धि जो कटौती की भरपाई करता है या क्रेडिट स्थितीयों को कम करता है। कोर्ट ने आगे कहा, कि यदि ऐसा कोई मामला आता हैं उसका आकलन कर निर्णय लिया जा सकता है।
लेकिन दूसरी ओर उद्योग का मानना है कि इससे जहां मुकदमेबाजी को बढ़ावा मिलेगा, वहीं कई तरह के कर-स्लैब परिस्थितियों को जटिल बना रहा है। जिससे भारतीय उद्योग के सामने चुनौतियां बढ़ गई हैं।
मुनाफा निर्धारण करने की चुनौती के अलावा, अतिरिक्त मुनाफे को विक्रय की तारीख से ब्याज और संभावित जुर्माना के साथ चुकाना पड़ सकता है। इस तरह की व्यवसायिक कटौतियों की अनुमति न दिए जाने से, आयकार प्रयोजन के लिए ये वित्तीय प्रभाव दोहरी मार दे सकते हैं।
कई लोग तर्क देंगे कि जीएसटी कार्यान्वयन के लगभग सात वर्षों के बाद, कीमतें बाजार की शक्तियों द्वारा निर्धारित की जानी चाहिए, न कि क़ानून द्वारा। अगले 12-18 महीनों में जीएसटी दरों को तर्कसंगत बनाने की संभावना के साथ, भारतीय उद्योग जगत इन प्रावधानों को लेकर और भी अधिक चिंतित होगा।