चीन से व्यापारिक संबंध कितने होने चाहिए?

यदि सीमा पर शांति और सौहार्द नहीं है, तो आप किसी भी पड़ोसी के साथ व्यावहारिक संबंध कैसे रख सकते है? फिर वह चाहे चीन हो या पाकिस्तान। आर्थिक मुद्दे दो बातों पर निर्भर करते हैं। पहला अर्थशास्त्र है, जहां एक ऐसा देश है जिसकी विनिर्माण के तरीकों ने बाकी दुनिया को नुकसान में डाल दिया है। हमें अपने निर्माताओं, विशेष रूप से हमारे एमएसएमई, और हमारे श्रमिक और कामकाजी वर्गों के हितों की रक्षा करने का अधिकार हैं।

मुझे इस बारे में बहुत सारे सवालों का सामना करना पड़ता है कि आप इस वैश्विक दुनिया में संरक्षणवादी क्यों हैं? लेकिन मैं उन कामकाजी वर्ग के हित में जो भी रक्षात्मक उपाय करने होंगे, करूंगा, जिनकी नौकरियां दांव पर लगी हैं। जो लोग इस तरह की बातें करते हैं, वे वास्तविक अर्थव्यवस्था और समाज से जुड़े हुए नहीं हैं।

एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो एमएसएमई के साथ बहुत समय बिताता है, जो अपने जीवन का अधिकांश समय नोएडा में बिताता हैं, में आपको बता सकता हूं कि चीन से माल की डंपिंग को लेकर आज नाराजगी की भावना कितनी मजबूत है। इसलिए हमें जो करना होगा, करेंगे?

दूसरा हैं संवेदनशील क्षेत्र। आज हर देश को राष्ट्रीय सुरक्षा के अनुसार संवेदनशील क्षेत्रों का प्रबंधन करने का अधिकार है। मैं खुली अर्थव्यवस्था के नाम पर अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को ऐसे देश के साथ काम करने के लिए नहीं खोल सकता, जो मेरे क्षेत्र पर दावा कर रहा है। हमारी आर्थिक और राष्ट्रीय सुरक्षा दोनों दांव पर हैं।

चीन से कच्चा माल मांगने वाले एप्पल के बारे में?

एप्पल का प्रदर्शन देखिए। वे शानदार प्रदर्शन कर रहें हैं। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि चाहे एप्पल हो या कोई और, हम अव्यावहारिक लोग नहीं हैं। मुझे गलत मत समझिए। हम चाहते हैं कि भारत में वैश्विक कंपनियां आएं। अगर वैश्विक कंपनियों के पास पहले से विक्रेता और सप्लाई चेन हैं, तो हम अविवेकी नहीं हैं।

Bhutan Tuff GIF

किसी ने नहीं कहा कि चीनी कंपनियां भारत नहीं आ सकतीं। इसके विपरीत, हमने केवल इतना कहा कि हम जांच करेंगे, छानबीन करेंगे, यह समझने की कोशिश करेंगे कि कौन यहाँ किस लिए आ रहा है? मैं वास्तव में एप्पल का ही उदाहरण देना चाहूँगा, जिसका भारत में अच्छा अनुभव रहा हैं, कहीं भी मुश्किल नहीं।

आप भारत के निर्यात की संभावनाओं को कैसे देखते हैं?

मैं वास्तव में निर्यात को अपनी अन्य प्राथमिकताओं में रखुंगा। हमारी कोशिश है कि मेक इन इंडिया को बढ़ावा दिया जाए। हम इस बात को लेकर दृढ संकल्प है कि भारत में अधिक से अधिक भागीदारों और अधिक से अधिक उत्पादों या क्षमताओं के साथ मिलकर उत्पादन किया जाए। यह रघुराम राजन-राहुल गांधी के दृष्टिकोण के विपरीत है कि, जो यह कहते हैं कि हम विनिर्माण करने में असमर्थ हैं।

हम इसमें सक्षम हैं और विनिर्माण करना आवश्यक है। क्योंकि इसके बिना, आपको तकनीक नहीं मिलेगी, आप अपनी तकनीक विकसित नहीं कर पाएँगे। इसलिए, चाहे वह कितना भी कठिन क्यों न हों, हमें विनिर्माण के क्षेत्र में अधिक गंभीरता से उतरना होगा।

सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि हम एक बहुत ही कठिन दुनिया की ओर बढ़ रहे हैं। बस जरा चारों ओर देखें। चाहे वह गाजा हो, लाल सागर हो, अरब सागर हो, हमारी सीमाएँ हों, दक्षिण चीन सागर हो, अमेरिका-चीन ध्रुवीकरण हो, जलवायु परिवर्तन हो... जैसे एक बवंडर बन रहा है। और, बहुत सारे देश लड़खड़ा रहे हैं। इस समय, मुझे लगता है कि यह बिल्कुल जरूरी है कि हमारी नाव का पतवार एक सुरक्षित, अनुभवी, साहसी हाथ में हो।


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