2047 में विज्ञान और अनुसंधान में भारत को टॉप 3 या 5 में होगा
- जुलाई 12, 2024
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सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार अजय कुमार सूद ने एक साक्षात्कार में कहा है कि 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनने के लिए, विज्ञान और अनुसंधान में तीन अग्रणी देशों में से एक के रूप में उभरना होगा।
इसे लेकर सरकार का दृष्टिकोण क्या है?
सरकार विज्ञान और विज्ञान और प्रौद्योगिकी को लेकर गंभीर है। 2047 को सामने रख कर नीति और पॉलिसी तैयार की जा रही है। इसमें हमारे पास इस लक्ष्य को हासिल करने की रूपरेखा है। कि, सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में विज्ञान नीति में जो हस्तक्षेप किया है वह अचानक नहीं एक उद्देश्य के तहत किया गया है।
वह उद्देश्य क्या है? विज्ञान के क्षेत्र में भारत कहां रहना चाहता है?
हमारे पास वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ साथ एक मजबूत आधार भी है। किसी देश की वैज्ञानिक ताकत को अंतरराष्ट्रीय स्तर मापने के लिए आमतौर पर जो मानक है उसके अनुसार हम औसत से काफी पीछे हैं। यह इसलिए है, क्योंकि विज्ञान में हमारा योगदान हमारे आकार और क्षमता की तुलना में अपेक्षाकृत बहुत ही कम है। इसे अब बदलने का वक्त आ गया है।
इसमें सुधार करना ही पड़ेगा। जीईआरडी (अनुसंधान और विकास पर सामान्य व्यय), प्रति मिलियन जनसंख्या पर शोधकर्ताओं की संख्या, विज्ञान में महिलाओं की संख्या, पेटेंट की संख्या और इसी तरह की अन्य चीजें की ओर ध्यान देते हुए इसे बढ़ाना होगा। हमें शोध करने वालों की गुणवत्ता में भी सुधार करना होगा।
इसके लिए हमें अपने शोधकर्ताओं को सही माहौल, पर्याप्त संसाधन और सही प्रोत्साहन देना होगा। हम यही करने की कोशिश कर रहे हैं।
अतः 2047 के भारत को विज्ञान के क्षेत्र में शिर्ष तीसरे या पांचवें स्थान पर होना चाहिए, बल्कि तीसरे पर यह वह स्थान है जहां हमें होना चाहिए। और इसी उद्देश्य की पूर्त्ति के लिए हम प्रयासरत हैं।
वह लक्ष्य कितना यथार्थवादी है?
यह कोई अकेला लक्ष्य नहीं है। यह दूसरे क्षेत्रों की प्रगति को भी प्रभावित करता है। हमारे विज्ञान और प्रौद्योगिकी उत्पादन में सुधार हमारे आर्थिक विकास से जुड़ा हुआ है।
2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने के हमारे लक्ष्य के लिए यह आवश्यक है। हमें वहां तक ले जाने के लिए जिस प्रकार की आर्थिक वृद्धि जो कि 8 या 10 प्रतिशत या उससे अधिक है, उस तक पहुंचने के लिए भी उन्नत प्रौद्योगिकियों की बेहद जरूरी है। ये प्रौद्योगिकियाँ ही हैं जो आने वाले दशकों में आर्थिक विकास को गति देंगी। इनमें से अधिकांश प्रौद्योगिकियां अभी भी विकसित की जा रही हैं, और भारत के लिए इन क्षेत्रों में मौलिक योगदान देने, नेतृत्व करने और लाभ प्राप्त करने का अवसर है.. एक विकसित भारत को विज्ञान में अग्रणी बनना होगा। और कोई रास्ता नहीं।
वह कौन से उपाय हैं जो हमें उस लक्ष्य तक लेकर जाएंगे?
नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (एनआरएफ) का गठन एक बड़ा निर्णय है जिस पर सरकार भारी भरोसा कर रही है। एनआरएफ हमारी सभी समस्याओं का समाधान तो नहीं करेगा, लेकिन यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है। इसका उद्देश्य विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में अनुसंधान को बढ़ावा देना है, जिससे हमारा शोध का आधार शुरूआती चरणों में ही मजबूत होगा। यह अनुसंधान के लिए बजट उपलब्ध करने के लिए नए संसाधन मुहैया कराने में मदद करेगा।
आजादी के बाद, विश्वविद्यालय के अनुसंधान में भारी गिरावट देखी गई है। हालांकि, उनमें से कई ने शिक्षा प्रदान करने में काफी अच्छा काम किया है। लेकिन किसी न किसी स्तर पर, शोध को शिक्षा से अलग कर दिया गया। जबकि किसी भी अन्य विकसित देश में यह दोनों साथ-साथ चलते हैं। हमारे कुछ शीर्ष संस्थानों जैसे आईआईएसईआर, आईआईटी, आईआईएससी, कुछ चिकित्सा संस्थानों और कुछ अन्य में शिक्षा और शोध के क्षेत्र में काफी अच्छा काम हो रहा है। लेकिन देश के आकार को देखते हुए इनकी संख्या बहुत कम है। इसलिए इसे ठीक करना होगा।
यह अकेले विश्वविद्यालयों की गलती नहीं है। यह बहुत हद तक व्यवस्थागत दोष है। कई विश्वविद्यालयों जैसे कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय, बी.एच.यू., अलीगढ, पंजाब विश्वविद्यालय, यहां तक कि दिल्ली विश्वविद्यालय में भी बहुत शोध पर काफी अच्छा काम होता रहा है। लेकिन उन्हें वे संसाधन नहीं दिये गये जिनकी उन्हें जरूरत थी। अधिकांश राज्य सरकारों के बजट में शोध और इसके विकास के लिए प्रावधान ही नहीं है।
यह कैसे संभव होगा?
हम इन चीजों को बदलने की कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। जब लोग कहते हैं कि हमारे सकल घरेलू उत्पाद का चार प्रतिशत अनुसंधान एवं विकास पर खर्च किया जाए, तो यह अकेले सरकार से नहीं आ सकता है। अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र का समर्थन करने के लिए निजी खर्च को प्रोत्साहित करने के लिए सरकारी खर्च का लाभ उठाया जाना चाहिए। एनआरएफ ऐसी प्रणाली को सक्षम करेगा।
फिलहाल, बिजनेस आरएंडडी का पैसा ज्यादातर घर में ही उपयोग किया जाता है। व्यवसाय अपनी तात्कालिक समस्याओं को हल करना चाह रहे हैं, और यहीं पर उनके संसाधनों को दिशा दी जाती, जिसमें बुराई नहीं है। मजबूत नेटवर्क और पारिस्थितिकी तंत्र के अभाव में व्यवसाय इसी तरह संचालित होंगे।
इसलिए, हम ऐसी दीर्घकालिक साझेदारियाँ बनाने का प्रयास कर रहे हैं जहाँ उद्योग प्रौद्योगिकी विकास का हिस्सा बनें। जब ये प्रौद्योगिकियां परिपक्व हो जाएंगी, तो अवशोषण और तैनाती में उनकी शुरुआत पहले से ही हो जाएगी।
इस हिस्से में हमने अब तक बहुत अच्छा काम नहीं किया है और हमें उम्मीद है कि एनआरएफ इसे बदल देगा।
क्या हम सब कुछ कर सकते हैं?
देखिए, एनआरएफ वैज्ञानिक आधार के विस्तार के बारे में है। लेकिन हमने अपने राष्ट्रीय हित को देखते हुए कुछ प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की पहचान की है, जिन पर हम तेजी से काम करना चाहेंगे। इनमें स्वच्छ ऊर्जा, ऊर्जा सुरक्षा, क्वांटम प्रौद्योगिकियां, अर्धचालक, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, सिस्टम जीव विज्ञान, सटीक दवाएं शामिल हैं। ये ऐसे क्षेत्र हैं जहां हमें तुलनात्मक लाभ हासिल करने और नेतृत्व हासिल करने की जरूरत है।
हम स्वयं तो हर क्षेत्र में तरक्की करें ही, इसके साथ ही विश्व को भी तरक्की के रास्ते पर लेकर जाए, यह विकसित भारत का दृष्टिकोण है।
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