कारोबारियों और शेयर बाज़ार में इस बात की बहुत उम्मीद है कि नरेंद्र मोदी का नेतृत्व अपने तीसरे कार्यकाल में भारत को विकसित भारत में बदल देगा। सवाल यह है कि इस तरह के बदलाव को नापने का पैमाना क्या हो।

इसका एक लोकप्रिय संकेत तो सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी), कर राजस्व, शेयर बाज़ार सूचकांक, कॉर्पाेरेट मुनाफे में वृद्धि, निवेश को बढ़ावा आदि हैं। इनमें सुधार शहरी और समृद्ध अल्पसंख्यकों की आर्थिक स्थिति को मजबूती प्रदान करना शामिल है। इस तरह की बातें क्योंकि चर्चा में रहती है, इसलिए कोई भी व्यक्ति स्वतः ही मान लेता है कि ये संकेतक भारत को एक समृद्ध देश में बदल देंगे। लेकिन क्या ऐसा होगा?

पिछले कई वर्षों में, ये सभी संकेत बेहद सकारात्मक रहे हैं। लेकिन क्या उन्होंने प्रति व्यक्ति आय में तेज़ी से वृद्धि की है, जो समग्र समृद्धि के सबसे महत्वपूर्ण संकेतों में से एक है?

यह याद रखना फायदेमंद है कि सरकार के अपने आंकड़ों के मुताबिक, भारत की प्रति व्यक्ति आय या शुद्ध राष्ट्रीय आय 2014-15 में 72,805 रुपए से बढ़कर 2022-23 में 98,374 रुपए हो गई है, जो सिर्फ 3.83 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर है। चूंकि वास्तविक मुद्रास्फीति के प्रभाव को कम करके आंका गया है, इसलिए प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि और भी कम होगी। शिक्षा, स्वास्थ्य, सार्वजनिक परिवहन, प्रदूषण, न्याय प्रणाली आदि को शामिल करते हुए औसत आबादी की जीवन स्थितियों में सुधार नहीं हुआ है। वास्तव में, यहां स्थिति गंभीर है।

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सात साल के धीमे सुधार के बाद आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए, मोदी सरकार ने रेलवे, सड़क, शहरी परिवहन, जल कार्य, ऊर्जा परिवर्तन, रक्षा उत्पादन आदि पर हर साल 11 अरब खर्च किए हैं। इस क्षेत्र में और खर्च करना जारी रखा जाएगा। जिससे लाखों नौकरियों के अवसर पैदा होंगे। इसमें कोई संदेह नहीं कि इससे कॉर्पाेरेट और शेयर बाजार में उछाल आएगा, लेकिन इससे रोजगार में भी वृद्धि होनी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, या इतना नहीं हुआ कि कोई खास फर्क पड़े।

2023 में एक रिपोर्ट में, रियल एस्टेट कंसल्टेंसी, नाइट फ्रैंक ने अनुमान लगाया था कि भारत के शीर्ष आठ शहरों में तेजी से बढ़ता आवास बाजार निर्माण क्षेत्र को 2030 तक अर्थव्यवस्था में लगभग पांचवां योगदान देने जा रहा है। जिसमें 10 करोड़ श्रमिकों को रोजगार मिलेगा। पिछले दो वर्षों में रियल एस्टेट इंडेक्स 200 फीसदी बढ़ा है। इस आर्थिक मजबूती का कितना हिस्सा नीचे तक पहुंचा है?

बेरोजगारी, आय असमानता और मुद्रास्फीति के कारण लोग बुरी तरह से प्रभावित हो रहे हैं। जब तक सरकार इन मुद्दों का समाधान नहीं करती, तब तक राजनीतिक नेतृत्व के साथ या उसके बिना विरोध प्रदर्शन शुरू हो जाएंगे।


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