लेमिनेट में कुछ मार्केटिंग तरीके से डिस्ट्रीब्यूटर परेशान
- अगस्त 7, 2024
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बाजार में इन दिनों क्या स्थिति है?
2024 की शुरूआत से ही बाजार लगातार सुधर रहा है। हालांकि यह हमारी चाहत के अनुरूप नहीं हुआ है, लेकिन पिछले दो सालों के मुकाबले काफी बेहतर स्थिति है। आने वाले दिनों में सरकारी निवेश बढ़ने से यथास्थिति कायम रहने की पूरी संभावना है।
यह जरूर है कि प्रतिस्पर्धा बढ़ने से हमारे खर्च बढ़े हैं और लाभ कम हुआ है। लेकिन इससे हमें अपनी व्यक्तिगत कार्यप्रणाली को समझने और भविष्य के लिए अपने आपको तैयार करने का समुचित अवसर भी मिला है।
क्या सभी कुछ ठिक ठाक चल रहा है?
इन दिनों कुछ लेमीनेट कंपनियां डिस्ट्रब्यूटर्स नियुक्त करने के अलावा सीधे भी मार्केटिंग कर रही है। इस वजह से डिस्ट्रीब्यूटर के पास जो माल पड़ा है, उसकी लागत बढ़ गई है जिससे स्टॉक रखना लाभदायक नहीं रहा। यह डिस्ट्रीब्यूटर के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। कंपनियां अब जैसे जैसे उन्नत होती जा रही है, वैसे वैसे पूरी तरह से कामर्शियल होती जा रही हैं। यह उन्नति अच्छि है, लेकिन इस प्रक्रिया में डिस्ट्रीब्यूटर और प्रमुख डीलर की अनदेखी हो रही है। ज्यादातर कंपनियां अब डिस्ट्रीब्यूटर फ्रेंडली नहीं रही है। कंपनियों को कॉरपोरेट के तरीके से चलाया जा रहा है। लेकिन हमारा व्यापार आज भी रिलेशनशिप से चलती है। इस आधारभूत सरंचना को दर किनार किया जा रहा है।
कंपनी अपनी सेल बढ़ाने के लिए डिस्ट्रीब्यूटर को टारगेट भी दे रहे हैं, इसके साथ ही छोटे डीलर को भी उन्ही रेटों पर सीधे माल बेच देते हैं। ये कंपनियां अपने डिपो से किसी को भी माल दे देती है। खासतौर पर बड़ी कंपनियां ऐसा कर रही है। समस्या यह है कि डिस्ट्रीब्यूटर के पास फिर अलग से क्या आकर्शण होगा जो रिटेलर उनके पास रूकेगा। इस तरह तो स्टॉक अधिक रखना घाटे का सौदा बन जाएगा। इसके अलावा, कंपनियां कई बार अपने टारगेट पूरे करने के लिए किसी को भी माल देने का दबाव डालती है। यह नहीं देखा जाता कि भुगतान समय पर आएगा या नहीं। इस तरह की दिक्कतों से लेमीनेट बेचने में इन दिनों हम दो चार हो रहे हैं।
यह समस्या कब से महसूस कर रहें हैं
तकरीबन एक साल से यह ट्रेंड देखने में आ रहा है। ज्यादा आउटलेट खुल गए हैं। इसलिए अब हम कोशिश कर रहे हैं कि अखिल भारतीय स्तर पर एक डिस्ट्रीब्यूटरर्स की एसोसिएशन बनाएं। ताकि हम कंपनियों तक अपनी बात पहुंचा सकें। इसे लेकर दिल्ली में एक बैठक जल्द करनी है।
आप इसकी वजह क्या मानते हैं?
पिछले कुछ सालों में उद्योग में उत्पादन क्षमता काफी बढ़ाई गई है। कई नए प्लांट भी लगे हैं और पुरानी इकाइयों में भी क्षमता बढ़ाई गई हैं। लेकिन कोविड के बाद से ही बाजार काफी सुस्त है। जितनी मार्केट मे सेल है, इससे ज्यादा, उत्पादन हो गया है। बिक्री के लक्ष्य (टारगेट) बहुत ज्यादा बड़े रखे जा रहे हैं। सेल पर प्रेशर बहुत ज्यादा रहता है। पैसा कब आएगा इसका भरोसा नहीं है। इधर हमारे से चेक पहले ही ले लिए जाते हैं। डिस्ट्रीब्यूटर कितना भी ध्यान रख लें, लेकिन इस तरह की जल्दबाजी से नुकसान ही होता है। एमडीएफ में भी रेट गिर रहे हैं। क्योकि उत्पादन बढ़ गया है।
सभी कोई सहज कैसे हो सकते हैं?
क्यूसीओ से ही उम्मीद है कि इसके आने के बाद ही हालात में कुछ सुधार हो सकता है। हालांकि इसमें अभी वक्त है। इधर जिस तरह के राजनीतिक परिदृश्य बन गया, इसमें लगता है कि सरकार भी अब बैकफुट पर है। कडे़ निर्णय शायद ही लिए जा सकें। क्यूसीओ को लेकर कही से, खास कर छोटी यूनिटों से, विरोध हो गया, तो सरकार इसमें और वक्त दे सकती है। अगर किसी पड़ोसी देश ने दबाव बना दिया और उन्हें भी आसानी से लायसेंस प्रदान करने लग जाएंगे, तो शायद इस फब्व् की मूल भावना ही आहत हो जाएगी।
45 दिन के भीतर भुगतान के नियम को आप किस तरह से देखते हैं?
इस नियम की कोई आवश्यकता ही नहीं थी। इससे चीजे आसान होने की बजाय मुश्किल हुई है। कागजों की औपचारिकता बढ़ गयी। उदाहरण के लिए, दस लाख का माल खरीदा, 12 लाख में बेच दिया। एक लाख का यदि भुगतान नहीं किया गया तो खरीदारी दस की बजाय नौ लाख की मानी जाएगी। इससे खाता बही में तो लाभ बढ़ गया। हालांकि अगले साल यह खाता बही से हट जाएगा। लेकिन इससे सीए के खर्च और कागजी कार्यवाही बढ़ जाएगी।
हालांकि इसके लिए डैडम् संगठनों ने सरकार को अपनी आपत्ति जताई, जिसके बाद इसे लेकर वित्त मंत्री ने आश्वासन दिया कि यदि इस नियम में बदलाव करने की मांग होगी तो कर देंगे। लेकिन डैडम् में सभी इसे लेकर एकमत नहीं हैं। कुछ कंपनियां तो डैडम् के प्रमाण पत्र भी कैंसिल करा रहे हैं। इस नियम से फिलहाल न तो पैसा लेने वाला खुश है न देने वाला खुश है। यूं दुसरी ओर देखा जाए तो यह नियम मौलिक रूप से ठीक भी है। इस नियम से एक बार तो कैश फ्लो ठीक हो जाएगा। लेकिन अगली बार ऐसा हो यह जरूरी नहीं है।
केरल और नेपाल के माल का आपके बाजार पर असर?
नेपाल के उत्पाद का असर महाराश्ट्र में अधिक नहीं है। केरल में कई निर्माता अच्छि गुणवत्ता का प्लाईवुड बनाते है। उनका उत्पाद उत्तरी भारत के माल के मुकाबले कुछ सस्ता भी है। जिस वजह से यहां के बाजारों में उनकी मांग बढ़ रही है। केरल से यदि हम माल मंगवाते हैं तो हमें 40 रुपए में पड़ता है, लेकिन यदि कंपनी के माध्यम से मंगाया जाता है तो यही माल 80 रुपए में पड़ता है। कई बड़ी कंपनियंI भी केरल के माल पर अपने़े ब्रांड का ठप्पा लगा कर उपलब्ध करा रही हैं।
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