हमें भले ही खुद को खुश करने के लिए कितना भी दावा करें कि हम विश्वगुरू है। लेकिन हमारे पास ऐसा कुछ दिखाने के लिए नहीं है। चीन जब ऐसा ही दावा करता है, उसके पास अपने दावे को पुष्ट करने के लिए बहुत कुछ है। चीन की प्रति व्यक्ति आय भारत की तुलना में $2,600 के मुकाबले $12,150 हो गई है। इसने महाशक्ति का दर्जा प्राप्त कर लिया है, जो केवल अमेरिका के बाद दूसरे स्थान पर है।

चीन पर एक समय यह आरोप लगते रहे कि वह पश्चिमी की तकनीक चुराता है। अब वही चीन सौर और पवन ऊर्जा, बैटरी और इलेक्ट्रिक कारों सहित कई क्षेत्रों में वैश्विक तकनीकी नेता बन गया है। ऑस्ट्रेलियाई सामरिक नीति संस्थान ने अभी रिपोर्ट दी है कि चीन ने रक्षा, अंतरिक्ष, एआई, उन्नत सामग्री और क्वांटम प्रौद्योगिकी में 44 में से 37 तकनीकों में अमेरिका से आगे है।

चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव नीति बीआरआई ने महाद्वीपों में सड़कों, रेलवे और पाइपलाइनों का अब तक का सबसे बड़ा नेटवर्क बनाया है। भारत के पास ऐसा कुछ भी नहीं है। विकासशील देशों को आर्थिक मदद देने में चीन ने पश्चिम को पीछे छोड़ दिया है। कई अफ्रीकी देश जो कभी अमेरिका की लाइन पर चलते थे, अब आर्थिक संबंधों के कारण चीन की लाइन पर चल रहे हैं।

चीन का मॉडल राजनीतिक निरंकुशता को प्रतिस्पर्धी बाजारों और विशिष्ट क्षेत्रों को बढ़ावा देने के लिए औद्योगिक नीति के साथ जोड़ता है। इसने विभिन्न क्षेत्रों को सब्सिडी दी है जिसका उद्देश्य अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाना है। जिससे दुनिया में सबसे सस्ती कीमतों को भी और ज्यादा कम किया जा सके। हर प्रांत अपनी कंपनियों को सब्सिडी देता है, जिससे जबरदस्त घरेलू प्रतिस्पर्धा पैदा होती है, जो कीमतों को कम करती है और तेजी से प्रौद्योगिकी उन्नयन को बढ़ावा देती है। इससे चीन में हर साल लाखों इंजीनियर तैयार करने वाले विश्वविद्यालय को मजबूती मिलती है।

चीन के मॉडल का आर्थिक हिस्सा इतना सफल साबित हुआ है कि अब पश्चिम इसकी नकल कर रहा है। अमेरिका ने वैश्वीकरण के कारण खोए उद्योगों को वापस लाने के लिए हमेशा मुक्त व्यापार की पूर्ववर्ती अमेरिकी विचारधारा को छोड़ना उच्च टैरिफ लगाना शुरू किया। उच्च टैरिफ की आड़ में उन्होंने रणनीति के तहत चुनिंदा चीनी वस्तुओं को निशाना बनाया।

अमेरिका की यह कोशिश विश्व अर्थव्यवस्था को तोड़ने वाली साबित हो रही है। यह अर्थव्यवस्था मुक्त व्यापार और निवेश प्रवाह की विशेषता थी। आईएमएफ ने चेतावनी दी है कि यह कोशिश विश्व विकास को धीमा कर देगा। पश्चिम ने सोचा कि चीन को विश्व व्यापार में एकीकृत करने से यह पश्चिम की तरह बन जाएगा। इसके बजाय, चीन ने इसका इस्तेमाल अपने स्वयं के मॉडल को आगे बढ़ाने के लिए किया है, जिसे वह स्पष्ट रूप से बेहतर बताता है। इसने क्षेत्र दर क्षेत्र व्यापार और औद्योगिक वर्चस्व हासिल किया है। इसे अब एक रणनीतिक खतरे के रूप में देखा जाता है। पश्चिम ने प्रौद्योगिकी हस्तांतरण पर रोक लगा रखी है।

अमेरिका चीन से पीछे होना नहीं चाहता है दोनों इतने करीब से जुड़े हुए हैं कि अलग होना दोनों के लिए विनाशकारी होगा।

इसके बजाय, यह आर्थिक संबंधों को जोखिम से बचाने का प्रयास करता है, रणनीतिक प्रवाह को रोकता है, लेकिन वाणिज्यिक प्रवाह को अनुमति देता है।

बाकी दुनिया क्या सबक सीख रही है। एशिया में, वियतनाम ने आश्चर्यजनक सफलता के साथ चीनी मॉडल की सबसे बारीकी से नकल की है। इसने चीन को छोड़ने वाली सबसे अधिक कंपनियों को आकर्षित किया है, और जीडीपी और निर्यात में सबसे तेजी से बढ़ने वाला एशियाई देश बन गया है। चीन के बीआरआई ने अन्य एशियाई देशों में बुनियादी ढांचे को काफी बढ़ावा दिया है। पाकिस्तान मुश्किल में है, लेकिन बच जाएगा।

भारत भी चीनी आर्थिक मॉडल की नकल कर रहा है। सरकार का कहना है कि मुक्त व्यापार अपनी सीमा तक पहुँच गया है, और इसलिए पिछले पाँच वर्षों से टैरिफ बढ़ा रहा है। इसने चिप निर्माण जैसे कुछ क्षेत्रों के लिए 50 प्रतिशत तक की सब्सिडी की पेशकश की है। इसका पीएलआई चीनी औद्योगिक नीति का एक रूपांतर है जिसका उद्देश्य समान है महत्वपूर्ण क्षेत्रों को शुरूआती दौर में सब्सिडी देकर इतना मजबूत कर देना है कि पाँच वर्षों के भीतर अर्थव्यवस्था का लक्ष्य प्राप्त कर इतनी मजबूती प्रदान कर ली जाए कि आगे सब्सिडी की आवश्यकता न हो।

हालांकि इस पर अभी भी अंतिम फैसला नहीं हुआ है। लेकिन यह कोशिश भारतीय उद्योग को नेहरूवादी युग में घकेलने जैसी है। तब भी ज्यादातर घरेलू उद्योगों को सब्सिडी देने के प्रयास विफल ही रहे थे। अब फिर से उस मॉडल पर काम हो रहा है। लकिन क्या नए सब्सिडी वाले उद्योग चीनी उद्योगों की तरह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बन जाएंगे। शायद ही ऐसा संभव हो।