जीएसटी में मुनाफा खोरी विरोधी मामले
- अगस्त 9, 2024
- 0
जीएसटी कानून के तहत यदि दरों में कुछ कमी आती है, तो इसका फायदा उपभोक्ता को मिलना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता हैं तो उपभोक्ता इसके लिए ट्रिब्यूनल भी जा सकते हैं। जीएसटी लागू होने से कई उत्पाद व सेवाएं सस्ती हो जाती है। लेकिन कुछ कंपनियां, विक्रेता या सेवा प्रदान करने वाले इसका लाभ उपभोक्ताओं को नहीं देते।
इस पर रोक लगाने के लिए नवंबर 2017 में एक ट्रिब्यूनल की स्थापना की गई। जिसे राष्ट्रीय मुनाफाखोरी विरोधी प्राधिकरण कहते हैं। इसे 1 दिसंबर, 2022 को सीसीआई में शामिल कर लिया गया।
ट्रिब्यूनल ने हिंदुस्तान यूनिलीवर, पतंजलि, जुबिलेंट फूडवर्क्स, रेकिट बेंकिजर, फिलिप्स, जिलेट इंडिया, प्रॉक्टर एंड गैंबल होम प्रोडक्ट्स और कई अन्य सहित 100 से अधिक कंपनियों को जुर्माना लगा दिया। क्योंकि उन्होंने इसका लाभ उपभोक्ताओं को नहीं दिया। अब यह कंपनियां ट्रिब्यूनल के निर्णय के खिलाफ उच्च न्यायालय पहुंच गयी।
जब कंपनियों को उच्च न्यायालय से राहत नहीं मिली तो उन्होंने उच्चतम न्यायालय की शरण ली। जहां अभी मामले लंबित है। कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि सिर्फ जीएसटी से कीमतों में बदलाव नहीं आता। इसके दूसरी ओर बाजार में कई दूसरी वजह से कीमतें कम हो सकती है। जीएसटी की शुरुआत में मुनाफाखोरी पर रोक लगाने के लिए प्रावधान जरूरी थे। इनकी अवधि भी पांच साल रखी गयी थी। लेकिन बाद में इसे बढ़ा दिया गया है।
स्वाभाविक तौर पर, वस्तुओं और सेवाओं का मुल्य निर्धारण बाजार द्वारा स्वतः होना चाहिए ना कि किसी कानून के द्वारा। मौजूदा विवादों के निपटारे के लिए समयसीमा निश्चित होनी चाहिए। क्योंकि ऐसा होने से व्यवसाय में जो अनिश्चितता है वह दूर हो सकती है।
भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग सीसीआई ने 1 दिसंबर, 2022 से सिर्फ 27 मामलों का निपटारा किया है। जबकि करीब 140 मामले अभी भी निर्णय के लिए लंबित हैं।
इसके अलावा, 184 मामले विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित हैं, जहां प्राधिकरण के आदेश को चुनौती दी गई थी।
👇 Please Note 👇
Thank you for reading our article!
If you don’t received industries updates, News & our daily articles
please Whatsapp your Wapp No. or V Card on 8278298592, your number will be added in our broadcasting list.