पिछले छह से नौ महीनों में म्यूल अकाउंट की बढ़ती संख्या को देखते हुए बैंक प्रबंधन ने चालु और सेविंग दोनों तरह के खातों की निगरानी रखनी शुरू कर दी है। जो खाते पहले से चल रहे हैं, उनके लेन देन पर नजर बढ़ा दी गई है।

म्यूल अकाउंट ऐसे खातों को बोला जाता है। इसमें खाताधारक पैसे का लेन देन नहीं करता, बल्कि कोई अन्य व्यक्ति रकम उस खाते में मंगाता है, और निकालता भी है।

इस तरह गैर-कानूनी रकम का लेनदेन उस खाते के जरिये हो जाता है। यह पहली बार है, जब इस तरह से बैंक खातों में बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़े सामने आ रहा है। आम तौर पर बैंकों में फर्जीवाड़ा क्रेडिट कार्ड आदि पर किया जाता रहा है।

आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2022-23 में जमा खातों से जुड़े 551 फर्जीवाड़े हुए थे मगर 2023-24 की पहली छमाही में ही ऐसे 606 मामले सामने आ गए। बैंकरों ने कहा कि इस तरह के खातों की संख्या बढ़नी शुरू हो गई।

ज्यादातर म्यूल अकाउंट चालू बैंक खातों में होते हैं, जो किसी एक व्यक्तिगत के नाम पर होते हैं।

करीब 80-85 फीसदी खाते एक ही व्यक्ति के नाम पर खोले गए थे। ये खाते ज्यादातर ग्रामीण और कस्बाई क्षेत्रों में खोले गए हैं।

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इस तरह के खातों का संज्ञान बैंक प्रबंधन ने लेते हुए ऐसे खातों का रिकार्ड 1997 से चैक करना शुरू किया। तब पता चला कि ऐसे ज्यादातर खाते वित्त वर्ष 2024 में खोले गए हैं। इनमें से ज्यादातर लेन-देन यूपीआई (यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस) के माध्यम से किया गया।

बैंकों का पिछला अनुभव यह था कि अधिकांश धोखाधड़ी बड़ी रकम के साथ होती थी। इसलिए वे बड़े लेन-देन के प्रति अलर्ट थे।

लेकिन यह तर्क इन खातों पर लागू नहीं होता क्योंकि इन खाते में सिर्फ ₹1,500 या ृ2,000 जैसी छोटी-छोटी यूपीआई क्रेडिट मिल रहे हैं। देखने में यह छोटी सी राशि है। इस पर बैंक ज्यादा ध्यान नहीं देते। लेकिन इस तरह की छोटी - छोटी रकम को दिन भर में कई बार में बहुत बड़ी रकम ऐसे खातों में जुटा ली जाती है। फिर इस पूरी रकम को उसी दिन निकाल लिया जाता है। बैंक की भाषा में इसे जीरो वॉशआउट बोला जाता है। इसका मतलब है कि दिन के दौरान सिस्टम में जो भी क्रेडिट आता है वह शाम को निकाल लिया जाता है।

बैंकरों का कहना है कि इस मुद्दे को काफी हद तक सुलझा लिया गया है, लेकिन अभी भी काफी सुधार की आवश्यकता है।


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