Editorial
- मार्च 7, 2019
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Increment in timber rates is good in itself. It will really bring enthusiasm in farmers to produce & plant the trees. But market is not responding as against the raw materials price increase. This situation is prevailing for a long time. Thus, profit margin of the companies is continuously decreasing.
If the costs are rising and the sale price is not able to meet the minimum cost, then the industry will become unviable.
One of the reasons for the weak prices is that small producers sale their stocks at lower prices. This is also because they have to follow fewer rules. That’s why their costing is less. While the medium or large industries that try to follow the rule, their costing is high.
Tax evasion is also playing a very important role in increasing the cost difference. For a long time, there are reports that trading firms are working on buying and selling bills. Because of that, the number of people working on taxation is increasing. From this, the regulated industrialists are getting affected.
In the past, there was a lot of discussion in the industry that the time for the operation of the work should be reduced so that the total production can be reduced to the level of sales. In this discussion, all the industrialists could not agree.
With this solution, a question will be added whether the reduction in output will bring in reduction in oversupply?
Will this increase the demand in the market?
Causing reduction in production will overhead expenditure increment increase the investment?
But just wait for increasing demand? All these unanswered questions will be answered by time only.
At the moment, there is a need of time to surpass this odd time with complete self-control.
पोपुलर की कीमतों में बढ़ोतरी अच्छी बात है। इससे किसाानों में इसकी फसल लगाने का उत्साह लगातार बना रहेगा। लेकिन बिक्री कीमतें इस अनुपात में नहीं बढ़ना चिंता का विषय है। उद्योग में ये हालात लंबे समय से बने हुए हैं। इससे उद्योग का मार्जिन धीरे-धीरे घट रहा है। उत्पादक कंपनीयों के लाभ में लगातार गिरावट आ रही है।
अगर लागत में बढ़ोतरी का दबाव बना रहा और बिक्री की कीमतें कम से कम खर्च की भरपायी भी नहीं कर पायी तो उद्योग अलाभकारी बन जायेगा।
कमजोर कीमतों की एक वजह यह भी है कि छोटे उत्पादक कम कीमतों पर अपना स्टाक खाली कर लेते हैं। इसकी एक वजह यह भी है कि उन्हें कम नियमों का पालन करना पड़ता है। इसलिए उनकी लागत कम हो जाती है। जबकि मीडीयम या बड़े उद्योग जो नियम से चलने की कोशिश करते हैं, उनकी लागत अधिक होती है।
कर वंचना भी लागत के फर्क को बढ़ाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। काफी समय से इस तरह की खबरे आ रही हैं कि ट्रैडींग फर्में बिलों की खरीद-बिक्री का काम कर रही हैं। जिसकी वजह से सिर्फ टैक्स के दम पर काम करने वालों की संख्या बढ़ रही है। इससे नियीमत उद्योगपति प्रभावित हो रहे हैं।
अभी पिछले दिनों उद्योग में इस बात की काफी चर्चा हुई कि काम के परिचालन का समय घटाया जाए ताकि कुल उत्पादन को कम करके बिक्री मूल्य उचित स्तर पर लाया जा सके। इस परिचर्चा में सभी उद्योगपति एक मत-सहमत नहीं हो सके।
इस समाधान के साथ एक सवाल यह भी जुड़ जायेगा कि क्या उत्पादन कम कर देेने से ओवरसप्लाई में कमी संभव है?
क्या इससे बाजार में मांग बढ़ने की संभावना बनेगी?
उत्पादन में कमी करने से ओवरहेड खर्चों की बढ़ोतरी क्या लागत को और बढ़ा तो नहीं देगी?
लेकिन क्या सिर्फ मांग बढ़ने का ही इंतजार किया जाये? इन सब अनुत्तरित प्रश्नों का उत्तर तो समय ही देगा।
फिलहाल वक्त का तकाजा है कि पूर्ण आत्म नियन्त्रण से इस विषम समय को पार करें।
सुरेश बाहेती
9896436666