इस बार के आम केंद्रीय बजट 2024-25 तीन महत्वपूर्ण संकेत दे रहा है। अब वित्त मंत्रालय सलाह पर ध्यान दे रहा है। इससे नीतिगत निर्णय बदले भी जा रहे हैं।

पहला बदलाव व्यापार और शुल्क नीति में हुआ है। 2016 से केंद्रीय बजट संरक्षणवादी नीति से प्रेरित था। शुल्क दरों में इजाफा किया जाता था। हम फिर से उस दौर में लौटते दिख रहे थे, जहां बजट में अलग अलग समूहों और स्थानीय उद्योगों की मांग पर शुल्क दरों में बदलाव किया जाता रहा। इससे लाभ कमाने के लिए जोड़तोड़ के प्रयास को प्रोत्साहन मिला। इससे लेकिन स्थानीय उपभोक्ताओं के लिए सामान महंगा हो जाता था। इसका यह अर्थ भी है कि भारतीय कंपनियां अंतरराष्ट्रीय कीमतों की दौड़ में शामिल होने के लिए संघर्ष कर रही हैं।

इस बजट में ऐसे संकेत हैं कि अब संरक्षणवाद शायद खत्म होने की ओर बढ़ रहा है। वित्त मंत्री ने अपने भाषण में साफ कहा कि निर्यात में होड़ करने की क्षमता बढ़ाने का लक्ष्य है। लेकिन आम लोगों और उपभोक्ताओं के हितों का भी ध्यान रखना मुख्य लक्ष्य होगा।

वित्त मंत्री ने यह वादा भी किया कि अगले बजट से पहले दरों के ढांचे की व्यापक समीक्षा की जाएगी ताकि उन्हें कारोबार के लिहाज से सहज और उचित बनाया जा सके। यह सकारात्कमक सुझावों के लिए आमंत्रण भी है, कि कम और स्थिर शुल्क दर उपभोक्ताओं और निर्यातकों दोनों के लिए महत्त्वपूर्ण है।

दूसरा बदलाव प्रत्यक्ष कर नीति में नजर आया। बजट भाषण में कर नीति के सरलीकरण को लक्ष्य के रूप में अपनाने की बात कही गई। आय कर अधिनियम की समीक्षा का वादा किया गया ताकि निश्चितता बढ़ाई जाए और मुकदमेबाजी में कमी आए। इसके लिए तथा शुल्क दरों की समीक्षा के लिए छह महीने का समय तय किया गया।

अंतिम बदलाव भी महत्त्वपूर्ण है और वह इस सरकार की समग्र आर्थिक नीति की दिशा के बारे में है। मौजूदा सरकार की सबसे सिद्धांतों के बिना नीतियों का चयन टुकड़ों में होता है। वे एक दूसरे के विपरीत भी हो सकती हैं। सामूहिक सोच के इस अभाव के कारण सरकार ने निर्यात को बढ़ावा देने का प्रयास किया और आयात को कम करने का लक्ष्य रखा। उसने देशव्यापी स्तर पर श्रम कानूनों में सुधार किए बिना विनिर्माण को बढ़ावा देने की कोशिश की। इससे नियमन तो मजबूत हुए, लेकिन नियामकों को कमजोर कर दिया।

बहरहाल, वित्त मंत्री ने अगले दौर के सुधारों का वादा किया जिसका लक्ष्य बहुत ही व्यापक है। यह एक नई अर्थ नीति के ढांचे पर आधारित होंगे जो आर्थिक विकास को लेकर समग्र दृष्टिकोण पेश करेंगे।


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