भारत 2047 के विकसित भारत के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है। ऐसे में भारत के कृषि क्षेत्र पर गहन पुनर्विचार की आवश्यकता है।

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश की करीब 55 फीसदी जनसंख्या कृषि और कृषि आधारित अन्य गतिविधियों में जुड़ी हुई है। इसलिए कहना गलत नहीं होगा कि 2047 के विकसित भारत की जो बात चल रही है, इसमें कृषि क्षेत्र पर चर्चा किए बिना संभव ही नहीं है। क्योंकि विकास और तरक्की का रास्ता खेतों से होकर ही गुजरता है।

कृषि क्षेत्र में अनगिनत चर्चाएं और बहसें लबें समय से हो रही है। लेकिन तार्किक हल नहीं निकल रहा है। अब वक्त आ गया है कि देश के कृषि क्षेत्र और इसके भविष्य के प्रभाव की समीक्षा की जानी चाहिए।

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न्यूनतम समर्थन मूल्य के कानूनी गारंटी की मांग, जलवायु परिवर्तन संबंधी चुनौतियों, कई फसलों की पैदावार में गिरावट व स्थिरता, सीमित संसाधनों के साथ देश की बढ़ती आबादी को भोजन मुहैया कराने की चुनौतियां और डिजिटाइजेशन से कृषि तालमेल कैसे हो, इन विषयों पर विस्तृत चर्चा की जरूरत है।

यह तथ्य है कि हाल के वर्षों में देश में खेती और उससे जुड़ी गतिविधियों की सालाना सकल घरेलु उत्पाद में हिस्सेदारी गिर गई है। खेती पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी आबादी की निर्भरता इस अनुपात में कम नहीं हुई है। इसका परिणाम यह हुआ कि लाखों लोगों को उनकी मेहतन का उचित दाम नहीं मिल रहा है। इन लोगों को कम आमदनी पर कार्य करना पड़ रहा है। बीते वर्षों में इस चुनौती का हल ढूंढ़ना कई अर्थशास्त्रियों व टिप्पणीकारों केे लिए मुश्किल हो गया है।

ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा हो, और लोगों की खेती पर निर्भरता कम हो। इसके लिए गैर कृषि क्षेत्र में पर्याप्त निवेश करने की आवश्यकता है। खेती किसानों के लिए लाभकारी हो, इस दिशा में काम करना होगा।


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